नई दिल्ली: भारत अब जल्द ही एयरबस सी-295 मिलिटरी ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट से लैस हो जाएगा. खास बात यह है कि यह विमान भारत में भी बनाया जाएगा. इसके लिए वडोदरा में टाटा एयरक्राफ्ट कॉम्प्लेक्स तैयार है, जिसका उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और स्पेन के प्रधानमंत्री पेड्रो सांचेज कर रहे हैं. भारत के पास ऐसे कुल 56 एयरक्राफ्ट होंगे, जिनमें से 16 विमान एयरबस से आयात किए जाएंगे और 40 भारत में बनेंगे. इन्हें टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स लिमिटेड के टाटा एयरक्राफ्ट कॉम्प्लेक्स में ही बनाया जाएगा. आइए जान लेते हैं इस एयरक्राफ्ट की ताकत और किन-किन देशों के पास ये एयरक्राफ्ट है.
साल 2021 में भारत और एयरबस के बीच 56 सी-295 विमानों का सौदा हुआ था. इस सौदे की कुल कीमत 2.5 बिलियन डॉलर है. समझौते के वक्त टाटा समूह के मानद चेयरमैन रतन टाटा मौजूद थे. इनमें से 16 विमान एयरबस बनाकर स्पेन से भारत भेजेगी. बाकी विमान नोएल टाटा की अगुवाई में बनेंगे. वडोदरा में पहला एयरक्राफ्ट साल 2026 तक तैयार हो जाएगा और सभी विमान 2031 तक बन जाएंगे. इसके बाद टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स अगले 25 सालों तक भारतीय वायुसेना के इन विमानों की देखरेख करेगी.
90 के दशक में कासा (CASA) C-295 था नाम
एयरबस सी-295 को 90 के दशक में विकसित किया गया था. तब इसे कासा सी-295 (CASA C-295) के नाम से जाना जाता था. कासा सी-295 ने 28 नवंबर 1997 को अपनी पहली उड़ान भरी थी. यह एक मीडियम टैक्टिकल ट्रांसपोर्ट विमान है, जिससे सामान से लेकर जवानों तक को एक स्थान से दूसरे स्थान पर आसानी से पहुंचाया जा सकता है. इससे एक बार में नौ टन सामान या 71 जवानों को ढोया जा सकता है. ट्रांसपोर्ट के अलावा इसका इस्तेमाल पैराशूट ड्रॉपिंग, इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल इंटेलिजेंस, मेडिकल निकासी और समुद्री गश्त के लिए डिजाइन किया गया है.
इसके नाम में C CASA से लिया गया है. 2 का मतलब है इसमें 2 इंजन है. 95 का मतलब है यह अधिकतम 9.5 टन का पेलोड उठा सकता है. इस तरह इसका नाम C-295 हो गया.
दुनिया के 37 देशों में C295 एयरक्राफ्ट का इस्तेमाल किया जा रहा है. फोटो: Francisco J. Olmo/Europa Press via Getty Images
हवा में ही की जा सकती रीफ्यूलिंग
इस विमान में दो प्रैट एंड व्हिटनी टर्बोप्रॉप इंजन लगे होते हैं, जिनसे एयरक्राफ्ट 30 हजार फीट तक की ऊंचाई तक जा सकता है. यह 481.52 किमी प्रति घंटा की गति से उड़ान भरता है. सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसके जरिए हवा में ही फिक्स्ड विंग वाले एयरक्राफ्ट और हेलीकॉप्टर में रीफ्यूलिंग की जा सकती है. 1500 किलो वजनी रिमूवेबल रीफ्यूलिंग सिस्टम से लैस इस विमान में तीन अतिरिक्त फ्यूल टैंक, एक ऑपरेटर कंसोल और 100 फीट लंबी होज ड्रम यूनिट रहती है.
छोटे रनवे से उड़ान भरने में सक्षम
यह विमान शॉर्ट टेक-ऑफ़ और लैंडिंग में सक्षम है. केवल 320 मीटर की दूरी में टेक-ऑफ़ और 670 मीटर की दूरी में लैंडिंग की क्षमता के चलते यह छोटे रनवे के लिए काफी मुफीद है. यह लगातार 11 घंटे तक उड़ान भरने में सक्षम है. इसके पीछे लगे रैम्प डोर से सैनिकों या सामान को तेजी से चढ़ाया या उतारा जा सकता है. आटो रिवर्स क्षमता के चलते यह 12 मीटर चौड़े रनवे पर 180 डिग्री तक मुड़ सकता है.
इन देशों के पास है C-295
दुनिया के 37 देशों में इस एयरक्राफ्ट का इस्तेमाल किया जा रहा है. इसमें इजिप्ट, पोलैंड, इंडोनेशिया, भारत, कनाडा, मेक्सिको, ब्राजील समेत 37 देश हैं. साल 1999 में स्पेन की ही वायु सेना ने सबसे पहले सी-295 में दिलचस्पी ली और साल 2000 में नौ सी-295 एयरक्राफ्ट का ऑर्डर दिया था. स्पेन के बाहर पहली बार पोलैंड की वायु सेना ने ऐसे आठ एयरक्राफ्ट के लिए साल 2001 में ऑर्डर दिया. इसके दो साल डिलीवरी शुरू की गई. 2006 और 2007 में दो-दो और सी-295 एयरक्राफ्ट के लिए पोलैंड ने ऑर्डर दिया. जून 2012 में पांच और विमान का सौदा किया जो उसे 2013 के अंत तक मिल भी गए.
मिस्र के पास 21 एयरक्राफ्ट का बेड़ा
इंडोनेशिया ने भी सी-295 का ऑर्डर दिया और उसे सितंबर 2012 में पहला एयरक्राफ्ट मिल गया. अब यह इंडोनेशिया की वायु सेना का अहम हिस्सा है. मिस्र ने अक्तूबर 2010 में सी-295 का ऑर्डर दिया और 2021 तक उसके पास ऐसे 21 विमानों का बेड़ा तैयार हो चुका था.