आनंद अकेला की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट
सीधी। सीधी बस हादसे को तीन दिन बीत चुके हैं। इस दुःखद बस हादसे में अब तक 51 से ज्यादा मौते हो चुकी है वहीं दो लोगों के शव अभी भी नहीं मिल पाए हैं। जबकि सात जिंदगियां स्थानीय लोगों की त्वरित मदद से बच गई। इन रक्षकवीरों ने बताया कि महज तीन इंच की ऊंचाई कैसे 51 लोगों को असमय मौत के मुंह में धकेल दिया।
सीधी के सरदा गांव में जिस वक्त बस नहर में गिरी उस समय नहर के किनारे महेश बंसल मौजूद थे। वो नहर से कुछ मीटर की दूरी पर बैठे थे। जैसे ही तेज से धमाके की आवाज हुई महेश बंसल नहर के पास पहुंचे, तब तक बस नहर में समा चुकी थी। इसी वक्त वहां पास में रह रहे युवा जगवंदन लुनिया और रामपाल भी दौड़ते हुए उनके पास पहुंचे। कुछ ही देर में महेश और जगवंदन को नहर में ऊपर की तरफ आते हुए दो लोग दिखे। जिसमें एक महिला व एक पुरुष थे। महेश और जगवंदन व रामपाल ने हाथ देकर दोनों को बाहर निकाला। महेश ने जिस शख्स को सहारा देकर बाहर निकाला था, वह बस का ड्राइवर बालेंद्र जयसवाल था। महेश और जगवंदन जब तक इन दोनों लोगों को बाहर निकालते तब तक कुछ लोग दूर तक नहर के पानी के तेज बहाव में आगे जा चुके थे। इनमें से नहर में डूब रहे सुरेश गुप्ता को शिवारानी ने पानी में कूदकर बचाया था।
सबसे पहले बस का पता लगाकर अंदर गये महेश बंसल
प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि करीब 25 फीट गहरी नहर में बहाव काफी तेज था। नहर के अंदर बस कहां हैं किसी को दिख नहीं रही थी। उस वक्त महेश और उसके बाद जगवंदन पानी की तेज धार के बीच करीब 20 फिट नीचे गए और बस का पता लगाया। दोनों ही बिना आक्सीजन सिलेंडर के पानी के अंदर गए थे। उस वक्त तक राहत एवं बचाव कार्य की टीम नहीं पहुंची थी। महेश बंसल ने नेशनल फ्रंटियर से बातचीत में बताया कि पानी का बहाव बहुत तेज था और बस के ऊपर से करीब 12 फिट पानी बह रहा था। महेश ने बताया कि उन्होंने सबसे पहले बस के बोनट में जाकर रस्सी बांधी, उनके इस काम में जगवंदन ने मदद की। बस के आगे का शीशा टूट चुका था। सुबह का वक्त था मौसम भी ज्यादा खुला था इस कारण बस के अंदर की स्थिति साफ नहीं दिख रही थी।
प्रशासन के साथ मिलकर अकेले 38 लाशें बस से निकाली
महेश बंसल ने बताया कि घटनास्थल पर सबसे पहले डायल 100 की गाड़ी आई, इसके पश्चात् प्रशासन की टीम आई। कुछ समय पश्चात् पास स्थित प्लांट से क्रेन मशीन आई। पर पानी का बहाव ज्यादा होने के कारण क्रेन के मशीनमैन ने बस को खींचने से मना कर दिया। तब महेश बंसल बिना आक्सीजन सिलेंडर के बस के अंदर जाकर कई लाशें निकाली। फिर जैसे-जैसे पानी कम होता गया वैसे-वैसे बचाव अभियान चलता रहा। महेश बंसल ने बताया कि वो प्रशासन की टीम के साथ शाम छह बजे तक मात्र अंडरवियर में शवों को बाहर निकालने के अभियान में जुटे रहे।
हादसे की वजह एक छोटा सा जंपर
सीधी बस दुर्घटना के मुख्य वजह सड़क पर एक छोटा सा करीब तीन इंच का जंपर था। महेश ने बताया कि सीधी की तरफ से जिगना के लिए बस काफी तेज गति से आ रही थी। हादसास्थल के पास सड़क उखड़ी हुई थी। जहां सड़क उखड़ी थी वहां एक छोटा से जंपर था। तेज गति से आ रही बस जैसे ही जंपर पर पहुंची उसके बाद बहुत तेज की आवाज आई। जिसके बाद बस अनियंत्रित होकर जंपर से लगभग 25 मीटर दूर नहर में जा समाई। पानी के बहाव के कारण बस जहां नहर में गिरी थी उससे बहकर करीब 20 मीटर दूर तक जाकर नीचे बैठ गई। बस जैसे ही नहर में समाई थी बस के आगे के शीशे टूट चुके थे जिस कारण कुछ यात्री बाहर निकल सके थे। यह वही लोग थे जिन्हें उन्होंने बचाया था।
आखिर क्यों गुमनाम हैं महेश बंसल व जगवंदन लूनिया?
दुर्घटनास्थल पर सबसे पहले पहुंचने और मदद करने वाले महेश बंसल और जगवंदन लूनिया व रामपाल लूनिया मीडिया व जनप्रतिनिधियों की नजर में क्यों गुमनाम हैं? स्थानीय लोगों के मुताबिक दोनों ही देर शाम तक राहत एवं बचाव कार्य में प्रशासन की मदद करते रहे। जान जोखिम में डालकर राहत एवं बचाव कार्य में जी जान से जुटने वाले महेश और जगवंदन की प्रशासन कब सुध लेगा।
कौन हैं महेश बंसल?
महेश बंसल सरदा गांव में रहता है उसके पिता सुदर्शन बंसल विकलांग है। महेश के चार बच्चे हैं। वह मजदूरी करके अपना और अपने परिवार का भरण पोषण करता है।
कौन हैं जगवंदन लूनिया?
दुर्घटनास्थल पर घायलों को बचाने वाला जगवंदन लूनिया नहर के किनारे घर में रहता है। उसकी उम्र करीब 17 साल है और वह शिवारानी लूनिया के चाचा का लड़का है।
क्या कहते हैं अधिकारी?
बस दुर्घटना के दौरान जितने भी लोगों ने राहत एवं बचाव कार्य में प्रशासन की मदद की उन सब की पहचान की जा रही है। प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के दिशानिर्देश के अनुसार राहत एवं बचाव कार्य के दौरान सहयोग करने वाले सभी लोगों चिह्नित कर सम्मानित किया जाएगा।
रवींद्र चौधरी, जिला कलेक्टर, सीधी