नेशनल फ्रंटियर, उमरिया। स्वास्थ्य विभाग और वहां पनप रहा भ्रष्टाचार एक सिक्के के दो पहलू हैं। शायद यह कहना मुनासिब होगा, की जिले में भ्रष्टाचार को याद किया जाए तो इसके वेदी में सवार जिला चिकित्सालय का नाम लोगों के जेहन में सबसे पहले आता है। यही नहीं यहां नियमों से खेलना तो आम हो चला है। यहां अजब-गजब मामले हमेशा सुर्खियों में रहता है। बता दें कि स्वास्थ्य महकमा हमेशा से सुई की नोक पर रहा है, कभी अपने कारनामों से, तो कभी कागजी हेरफेर के लिए जमकर मशहूर हो चुका है। अब एक नया मसला समाने आया है, जब राष्ट्रीय मिशन संचालक ने संविदा कर्मचारी जवाहर विश्वकर्मा की सेवा समाप्त कर दी। उन पर आरोप है, कि उन्होंने बिना काम के ही अपनी पत्नी के नाम पर लाखों रुपए का भुगतान किया है। मजे की बात तो यह है, कि जब तक मलाई मिलती रही तब तक स्वास्थ्य महकमे के मुखिया भष्ट्राचार से किनारा बनाये हुए थे, मगर जैसे ही तलवार जवाहर के गले तक पहुंची तो उनने ऐसी कन्नी काटी कि जिस जवाहर के दम पर साहब ने ऐश किये हैं, उसी के खिलाफ प्रतिवेदन दे दिया। जबकि विभाग के मुखिया की सहमति के बगैर एक नये पैसे का भ्रष्टाचार जानकारों को अपच हो रहा है। उनका मानना है, कि सीएमएचओ की इन कारनामों की भनक न हो यह सम्भव नहीं है।
सप्लाई से लेकर भुगतान तक कि निभाई जिम्मेदारी!:
इस कारनामें की जांच कराई गई, तो यह मामला सामने आया कि संविदा कर्मचारी जवाहर विश्वकर्मा की पत्नि के नाम दर्ज फर्म सिराज इंटरप्राइजेज को बिना टेंडर के काम दिया गया। और बिना सप्लाई के बिल लग गये। और तो और स्वयं ही सत्यापन कर बिलों का लाखों रुपए में भुगतान कर दिया गया। सूत्रों के मुताबिक़ इस बात की भनक मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी को होने के बाद भी उन्होंने कोई एक्शन नही लिया और मलाई में हाथ फेरते रहे। जबकि माना यह जा रहा है, कि भुगतान के समय सीएमएचओ के हस्ताक्षर भी हुए होगें।किंतु भ्रष्टाचार की नदी में गोता लगाने के लिए सभी आतुर थे, और जब अपनी पर बनी तो भ्रष्टाचार की जानकारी न होने की बात ईमानदारी से कह किनारा कर लिए।
जुलाई में खरीदी और जिम्मेदारों की दिसंबर में खुली नींद!:
प्रतिवेदन अनुसार वर्ष 2021 जुलाई में उक्त खरीदी आदेश जारी किया गया, जिन कामों और सामग्री का बिल लगाया गया, वह सामग्री भंडार गृह में थी ही नही। और न ही रजिस्टर में इंद्राज किया गया। इस बात की जानकारी भंडार गृह प्रभारी ने दिसंबर 2021 में सीएमएचओ को दी, इसके पहले न तो जिम्मेदार ने जानकारी ली और न ही भंडार गृह से कोई पत्र लिखा गया, जबकि अगर सामग्री नही मिली थी, तो इस बाबत पत्राचार होना चाहिए था। साहब ने पहले ही भुगतान कर अपना हिस्सा किनारे कर लिया और जब जवाहर फंसा तो हर आदेश पर पर्दा डाल दिया।
तो क्या सीएमएचओ पर होगी कार्यवाही?:
जिस तरह से शासकीय राशि को अपनी गाढ़ी कमाई समझकर खाते से आहरण और भुगतान का खेला हुआ, उसमें कई जिम्मेदार हासिये पर माने जा रहे हैं। लेकिन एक संविदाकर्मी की सेवा समाप्त की गई, जबकि सीएमएचओ और अन्य तक इसकी आंच अभी तक नहीं पहुंची। बहरहाल जो भी हो सरकार के करोड़ों रुपये के गोलमाल में उमरिया का स्वास्थ्य महकमा हमेशा से आगे रहा है, कई बार सुविधाओं के नाम पर टेंडर तो निकाले जाते हैं, मगर वह पेमेंट किसे और कहां हो रही है, इसकी जानकारी चुनिंदा कर्मचारियों को ही रहती है।लिहाजा जवाहर विश्वकर्मा की सेवा समाप्त कर दी गई, और फ़िलहाल जांच जारी है।