भारतीय नववर्ष का प्रारम्भ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही माना जाता है और इसी दिन से ग्रहों, वारों, मासों और संवत्सरों का प्रारंभ गणितीय और खगोल शास्त्रीय संगणना के अनुसार माना जाता है। आज भी जनमानस से जुड़ी हुई यही शास्त्रसम्मत कालगणना व्यावहारिकता की कसौटी पर खरी उतरी है। इसे राष्ट्रीय गौरवशाली परंपरा का प्रतीक माना जाता है।
विक्रमी संवत किसी संकुचित विचारधारा या पंथाश्रित नहीं है। हम इसको पंथ निरपेक्ष रूप में देखते हैं। यह संवत्सर किसी देवी, देवता या महान पुरुष के जन्म पर आधारित नहीं, ईस्वी या हिजरी सन की तरह किसी जाति अथवा संप्रदाय विशेष का नहीं है। हमारी गौरवशाली परंपरा विशुद्ध अर्थो में प्रकृति के खगोलशास्त्रीय सिद्धातों पर आधारित है और भारतीय कालगणना का आधार पूर्णतया पंथ निरपेक्ष है।
प्रतिपदा का यह शुभ दिन भारत राष्ट्र की गौरवशाली परंपरा का प्रतीक है। ब्रह्म पुराण के अनुसार चैत्रमास के प्रथम दिन ही ब्रह्मा ने सृष्टि संरचना प्रारंभ की। यह भारतीयों की मान्यता है, इसीलिए हम चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नववर्षारंभ मानते हैं।
आज भी भारत में प्रकृति, शिक्षा तथा राजकीय कोष आदि के चालन-संचालन में मार्च, अप्रैल के रूप में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही देखते हैं। यह समय दो ऋतुओं का संधिकाल है। इसमें रातें छोटी और दिन बड़े होने लगते हैं। प्रकृति नया रूप धर लेती है। प्रतीत होता है कि प्रकृति नवपल्लव धारण कर नव संरचना के लिए ऊर्जस्वित होती है। मानव, पशु-पक्षी, यहां तक कि जड़-चेतन प्रकृति भी प्रमाद और आलस्य को त्याग सचेतन हो जाती है। वसंतोत्सव का भी यही आधार है। इसी समय बर्फ पिघलने लगती है। आमों पर बौर आने लगता है। प्रकृति की हरीतिमा नवजीवन का प्रतीक बनकर हमारे जीवन से जुड़ जाती है।मुख्य वक्ता के रूप में सीधी के वरिष्ठ अधिवक्ता श्री महेंद्र शुक्ला जी ने अपने उद्गार व्यक्त किये।
वरिष्ठ अधिवक्ता माधव प्रसाद पाण्डे जी ने भी अपने ओजस्वी विचार प्रकट करते हुए कहा – इसी प्रतिपदा के दिन आज से 2080 वर्ष पूर्व उज्जयनी नरेश महाराज विक्रमादित्य ने विदेशी आक्रांत शकों से भारत-भू का रक्षण किया और इसी दिन से काल गणना प्रारंभ की। उपकृत राष्ट्र ने भी उन्हीं महाराज के नाम से विक्रमी संवत कह कर पुकारा। महाराज विक्रमादित्य ने आज से 2080 वर्ष पूर्व राष्ट्र को सुसंगठित कर शकों की शक्ति का उन्मूलन कर देश से भगा दिया और उनके ही मूल स्थान अरब में विजयश्री प्राप्त की।
साथ ही यवन, हूण, कुषाण, पारसी तथा कंबोज देशों पर अपनी विजय ध्वजा फहराई। उसी के स्मृति स्वरूप यह प्रतिपदा संवत्सर के रूप में मनाई जाती थी और यह क्रम पृथ्वीराज चौहान के समय तक चला।
महाराजा विक्रमादित्य ने भारत की ही नहीं, अपितु समस्त विश्व की सृष्टि की। सबसे प्राचीन कालगणना के आधार पर ही प्रतिपदा के दिन को विक्रमी संवत के रूप में अभिषिक्त किया।
वरिष्ठ अधिवक्ता रमाकांत तिवारी जी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए बताया कि इसी दिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान रामचंद्र के राज्याभिषेक अथवा रोहण के रूप में मनाया गया। यह दिन ही वास्तव में असत्य पर सत्य की विजय दिलाने वाला है। इसी दिन महाराज युधिष्टिर का भी राज्याभिषेक हुआ और महाराजा विक्रमादित्य ने भी शकों पर विजय के उत्सव के रूप में मनाया।
आज भी यह दिन हमारे सामाजिक और धार्मिक कार्यों के अनुष्ठान की धुरी के रूप में तिथि बनाकर मान्यता प्राप्त कर चुका है। यह राष्ट्रीय स्वाभिमान और सांस्कृतिक धरोहर को बचाने वाला पुण्य दिवस है। हम प्रतिपदा से प्रारंभ कर नौ दिन में छह मास के लिए शक्ति संचय करते हैं, फिर अश्विन मास की नवरात्रि में शेष छह मास के लिए शक्ति संचय करते हैं।
परिषद के अध्यक्ष श्री प्रकाश मिश्रा ने अपने उद्बोधन में बताया कि इतिहास में वर्ष प्रतिपदा के दिन से ही
ब्रह्म पुराण के अनुसार ब्रह्मा द्वारा सृष्टि का सृजन ,
मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम का राज्याभिषेक
माँ दुर्गा की उपासना की नवरात्र व्रत का प्रारम्भ
युगाब्द (युधिष्ठिर संवत्) का आरम्भ तथा उनका राज्याभिषेक
उज्जयिनी सम्राट- विक्रमादित्य द्वारा विक्रमी संवत् प्रारम्भ
शालिवाहन शक संवत् (भारत सरकार का राष्ट्रीय पंचांग) का प्रारम्भ
महर्षि दयानन्द द्वारा आर्य समाज की स्थापना का दिवस
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार का जन्मदिवस
सिख परंपरा के द्वितीय गुरु अंगद देव जी के जन्म दिवस
सिंध प्रान्त के प्रसिद्ध समाज रक्षक वरूणावतार संत झूलेलाल का प्रकट दिवस के रूप में समाज में मनाया जाता रहा है।
कार्यक्रम के अंत मे जिला महामंत्री द्वारा कार्यक्रम में आये समस्त अतिथियों का आभार प्रकट कर शांति पाठ किया गया ।
कार्यक्रम में प्रमुख रूप से विद्याकान्त मिश्रा अधिवक्ता,वरिष्ठ अधिवक्ता शंकर दयाल शुक्ला,, अधिवक्ताआदित्य प्रताप शुक्ला, अधिवक्ता राकेश चतुर्वेदी, आनंद प्रकाश गुप्ताअधिवक्ता शुशील उपाध्याय,अधिवक्ता दिवाकर सिंह ,राजेन्द्र जायसवाल अधिवक्ता, प्रदीप कुमार सोनी उपाध्यक्ष अधिवक्ता परिषद, धर्मेंद्र शुक्ला अधिवक्ता,मुनीस शुक्ल ,कृष्ण शरण शुक्ल अधिवक्ता आदि वरिष्ठ अधिवक्ता उपस्थित रहे ।