विकाश शुक्ला/उमरिया। भारत में बीते वर्ष से अब तक न जाने कोविड ने कितने परिवारों को बेसहारा और बेघर कर दिया है। बल्कि इस कोरोना महामारी में कितने अपने असमय ही अलविदा कह गए। इसी का दूसरा वैरियंट एक बार पूरे देश में कोहराम मचाये हुए हैं। जहां देश के कोने कोने से आ रही भयावह तश्वीरें रोंगटे खड़ी कर देती हैं। कोरोना महामारी के इस भयावह काल में संक्रमण के डर से रिश्तों की डोर दम तोड़ते खूब नजर आ रही हैं। लेकिन विपरीत हालात में जिंदगी के खतरे के साये में इंसानियत की मिशाल पेश करने वाला एक सुखद समाचार उमरिया जिले से है। बीते वर्ष 2020 में कोरोनाकाल के दौरान हुए लॉकडाउन में एक अजनबी महिला भटकर उमरिया जिले के बीजापुरी गांव में आ गई थी। उक्त महिला बीजापुरी गांव के फूलचंद बर्मन को बदवहाश हाल में गांव की स्कूल में मिली थी। आखिरकार दर बदर भटकते बीजापुरी गांव पहुंची 55 वर्षीय महिला की पहचान तारा बाई ग्राम थुमाना जिला धनुषा जनकपुर (नेपाल) के रूप में हुई जहां उसे उसके परिजनों को सौंप दिया गया है।
दर बदर भटकते लॉकडाउन में पहुंची थी तारा :-
दरअसल श्रीमती तारा बाई यादव 55 वर्ष मूलतः नेपाल राष्ट्र की रहने वाली है। थुमाना गांव जनकपुरी में तीन बच्चों का परिवार है। भारत नेपाल स्थित इस गांव में तीन साल पहले कोशी त्रासदी हुई थी। तारा इस आपदा में फंसकर अपने गृह गांव से अलग हो गई। कुछ दिन बिहार की तरफ बिताए। फिर लॉकडाउन में भटकते हुए डिंडौरी सीमा से लगे गांव बिलासपुर चौकी के बीजापुर आ पहुंची। जिले में मार्च के महीने में लॉकडाउन लगा हुआ था। स्थानीय स्कूल में वह बदहवाश पड़ी रहती थी। वृद्धा के शरीर में पत्थर व मारपीट के निशान थे। चूंकि वह नेपाल की मैथली भाषा के अलावा संचार का कोई अन्य साधन नहीं जानती थी। लिहाजा उसकी पहचान व समस्या जानने में खासी दिक्कत हुई। लोग मानसिक विक्षिप्त समझकर घृणा करते थे। तब गांव में फूलचंद की पत्नी इंद्रकली बर्मन से उसकी हालत देखी नही गई । उसे घर में लेकर आई गई। खाना खिलाकर परिवार के सदस्यों की भांति रहने लगी। तारा भी छोटे बच्चों को पाकर खुश थी। लेकिन अपने बच्चों की याद में अक्सर आधी-आधी रात को उठकर बैठ जाती। बिलख बिलख का रोती रहती थी। गांव वालों ने इसकी सूचना बिलासपुर पुलिस चौकी, ढीमरखेड़ा जिला कटनी थाने में दी। बावजूद इसके कोरोना संक्रमण चरम पर होने के चलते कोई सुनवाई नहीं हुई।
नहीं समझ पा रहे थे बोली :-
नेपाल की मैथली भाषा से अंजान स्थानीय ग्रामीणों ने मदद के नजरिए से बिना जाति, धर्म पूछे लगभग सालभर अपने घर में रखा। देखरेख व घाव के इलाज किया। पीडिता की भाषा से अंजान होने के बाद भी उसकी वतन वापसी का बीड़ा उठाया। कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव ने मामले को संज्ञान में लेकर नेपाल में जनकपुर डिस्ट्रिक मजिस्ट्रेट से बात कर तारा बाई की पहचान कर ग्राम थुमाना जिला धनुषा जनकपुर नेपाल भेजने का रास्ता प्रशस्त कर दिया। आखिरकार 22 अप्रैल को घर वापसी के लिए दो भतीजे उमरिया आ गए।
बेटी की विदाई के तरह ग़मगीन हुए लोग :-
22 अप्रैल गुरूवार को जैसे ही यह खबर बीजापुरी गांव में लगी। फूलचंद बर्मन के घर गुरूवार को पूरा गांव उमड़ पड़ा। तारा बाई केवल नेपाली मैथली भाषा ही बोलती थी। फिर भी वह इंद्रवती के घर समेत गांव के लोगों का उसके साथ अटूट रिश्ता जुड़ चुका था। हर किसी की आंखों में उसके सकुशल घर लौटने की खुशी थी। उसने भी अपनी सुरक्षित वापसी की उम्मीदें छोड़ दी थीं लेकिन चैत्र रामनवमी का पवित्र समय उसके जीवन में मां सीता की नगरी जनकपुरी में वापस पहुंचाने का निमित्त बनी। दोपहर करीब एक बजे घर के सदस्यों ने एक-एक कर तारा से भेंट की। सभी का प्रेम व अपनापन देख नेपाली महिला की आंखे भर आईं। मानवता व उम्मीद की जीत होने पर सभी की आंखों से अश्रु धार बहने लगे। ऐसा माहौल था मानों ब्याहता बेटी को विदाई दी जा रही हो। एक पल के लिए अफसर भी ग्रामीणों के निरूस्वार्थ अटूट प्रेम को देखकर दंग रहे गए। नेपाल से आए परिवारिक सदस्य व सामाजिक कार्यकर्ता सरोज कुमार राय ने माता सीता की नगरी जनकपुरी का स्मृति चिन्ह भेंट किया।
कोरोना महामारी से सुधरे हालातों के बीच हुआ सम्पर्क :-
जैसे ही लॉकडाउन के बाद बीते माह दिसंबर-जनवरी में हालात सुधरे। स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता व पंचायत के माध्यम से यह बात कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव तक पहुंची। उन्होंने महिला एवं बाल विकास विभाग को उसके पुर्नवास की जिम्मेदारी सौंपी। जनकपुर नेपाल के कलेक्टर से बात की। पत्राचार व पहचान पुख्ता होने के बाद गुरूवार को तारा का भतीजा शंभू कुमार यादव व वीरेन्द्र यादव बीजापुर गांव लेने आ पहुंचे। इस दौरान नेपाल में सामाजिक कार्यकर्ता सरोज कुमार राय ग्रोइंग नेपाल फाउंडेशन काठमांडू ने कड़ी का काम किया। सरोज कुमार राय, ग्रोइंग नेपाल फाउंडेशन काठमांडू नेपाल ने बताया कि एक गरीब असहाय महिला की भाषा से अंजान होने के बाद भी जिस तरह सालभर उमरिया मध्य प्रदेश के लोगों ने घर के सदस्य की भांति ख्याल रखा। घर पहुंचाने प्रयासरत रहे। विदाई के समय सबकी आंखो में आसू देखकर भारत देश के लोगों का अटूट प्रेम दर्शाता है। नेपालवासियों की तरफ से नेक कार्य के लिए जितनी तारीफ की जाए कम है।
यह कहा कलेक्टर ने :
जिले के कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव ने कहा कि एक बाहर की महिला को बिना उसकी भाषा व पहचान जाने, गांव वालों ने उसे सालभर अच्छे से रखा। उसके लिए चिंताग्रस्त रहे। यहां तक की उसकी विदाई में उनकी आंखों से अश्रु की धार बही, इससे बड़ा मानवता का प्रमाण और कहां मिलेगा। पूरी टीम के इस प्रयास से अन्य लोगों को भी समाज में सकारात्मकता का प्रोत्साहन मिलेगा।