विकाश शुक्ला/उमरिया। बांधवगढ़ से आज फिर एक बुरी खबर आई, जहां एक बाघिन ने दम तोड़ दिया। बाघों की नगरी में लगातार हो रही बाघों की मौत का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है, वहीं हो रही बाघों के मौत को रोकने में नाकामयाब प्रबंधन की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में है। बीते दो दिनों पहले 10 वर्षीय (अंदाजन उम्र) बाघिन टी 66 का रेस्क्यू कर उपचार किया गया था, जिसके बाद उसे बहेरहा इनक्लोजर में रखा गया था। आज उसी बाघिन की मौत की खबर ने चिकित्सकीय कार्य मे लगे चिकित्सक दल पर भी प्रश्न चिन्ह लगा दिये हैं। लिहाजा जिस तरह से बाघों की मौत हो रही है, उसको रोक पाने में प्रबंधन कोई ठोस कदम भी नहीं उठा पा रहा है।
क्या है मामला
बाघिन टी 66 के पिछले दाहिने पैर में गंभीर चोंट होने की वजह से देशमुख पशु चिकित्सा विश्वविद्यालय जबलपुर की संचालक डॉक्टर सहित 4 सदस्यीय दल द्वारा बीते 26 नवंबर शुक्रवार को घायल मादा बाघिन T66 का खितौली बीट के कक्ष RF 501 में ट्रेंक्यूर्लाइज कर रेस्क्यू किया गया। ऑपरेशन करने के बाद मादा बाघिन को ऑब्जेर्वेशन हेतु बहेरहा इन्क्लोजर में रखा गया। जहां लगभग 48 घण्टे के भीतर रविवार को बाघिन की मौत हो गई। प्रबंधन के प्रेस नोट के अनुसार दावा है, कि डाक्टर की सलाह अनुसार भोजन देने का प्रयास किया गया, लेकिन वह खाने में असमर्थ रही। और उसी वजह से आज 28 नवंबर को बाघिन की मृत्यु हो गई। जिसको NTCA के प्रोटोकॉल में शव विच्छेदन की कार्यवाही चिकित्सकीय दल द्वारा कर शव को जलाकर नष्ट कर दिया गया।
डॉ नितिन के ट्रंकुलाइज पर खड़े हुए सवाल..!:
खबर है कि बांधवगढ़ में लगातार हो रही बाघों के मौत की एक बड़ी वजह डॉक्टर नितिन गुप्ता के उपचार की असफलता मानी जा रही है। सूत्रों की माने तो बाघों को ट्रंकुलाइज करने में अनुभव विहीनता होने के कारणों से इनका ट्रंकुलाइज करना बाघों के लिए काल बन जाता है। बावजूद इसके कई प्रबंधन बदल गए, लेकिन बाघों के उपचार के लिए एक अनुभवी डॉक्टर की तलाश नहीं हो पाई। जानकारों की माने तो यदि चिकित्सकीय कार्य मे अनुभव नहीं होने से ही हमेशा उसका खामियाजा अक्सर बाघों को उठाना पड़ता है।
ट्रंकुलाइज दवा की मात्रा संदेहास्पद..!:
जानकारों का दावा है, कि ट्रंकुलाइज करने में दवा के मात्रा का खेल होता है, जिसके अनुसार एंटीडोड दिया जाता है। उपचार हेतु ट्रंकुलाइज करने से पहले बाघों के उम्र, वजन और उसके लंबाई चौड़ाई का अंदेशा जताते हुए, उसके अनुसार दवा देकर ट्रंकुलाइज किया जाता है।लेकिन जानकारों के जताए अंदेशे अनुसार यह माना जा रहा है, की ट्रंकुलाइज करने के दौरान ही दवा ज्यादा मात्रा में ओव्हरडोज देने की वजह से बाघिन टी 66 ने दम तोड़ा।
प्रबन्धन का दावा खाना छोड़ चुकी थी बाघिन:
जिस तरह से प्रबंधन की ओर से जानकारी आई है, उसमें कई झोल सामने आए। एक माह से दर्द से कराह रही बाघिन को समय रहते और पहले उपचार देना और लेटलतीफी उपचार के बाद में 2 दिनों से बाघिन द्वारा भूख से मरना प्रबंधन की सबसे बड़ी लापरवाही परिलक्षित हो रही है। यदि समय रहते उसका उपचार अनुभवी डॉक्टर के ट्रंकुलाइज के द्वारा कर किया जाता, तो सम्भवतः बाघिन टी 66 की मौत नहीं होती।
इनका कहना है –
रेस्क्यू के दौरान से ही वह खा नहीं रही थी, पांव में इंजुरी होने के कारण शिकार नहीं कर पा रही थी, पांव का इलाज करने के बाद में उसे खाने के लिए दिया गया, लेकिन उसने कुछ भी नहीं खाया।
– लवित भारती, उप संचालक, बीटीआर उमरिया