नेशनल फ्रंटियर ब्यूरो
उमरिया। बांधवगढ टाईगर रिजर्व में अनियमित्ताओं का गढ बन चुका है, मनमर्जी तौर पर नियम और कायदों की भेंट देकर पदों में भर्ती होने वाले अभ्यार्थीयों को तो बाहर का रास्ता दिखा दिया गया, लेकिन भर्ती करने वाले अधिकारी पर आज दिनांक तक कोई कार्यवाई नहीं हुई और न ही जिम्मेदार वर्तमान प्रभारी उप वन संचालक को कारण बताओ नोटिस जारी कर उनसे पक्ष जानने की कवायद की गई।
टॉकउप वन संचालक के द्वारा अनिल शुक्ला के कार्यकाल में की गई नियम विरूद्ध भर्ती को अमान्य कर तीन व्यक्तियों को बाहर कर दिया गया लेकिन जिम्मेदार अधिकारी पर कोई कार्यवाई नहीं की गई। खबर है कि अगामी माह में सेवानिवृत्त होने जा रहे प्रभारी उप वन संचालक के कार्यकाल की जांच की जाए तो बहुत से काले चिट्ठे निकल सकते हैं जिनमें सरकारी खजानों की जमकर होली खेली गई है। किन्तु बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए सवाल उठ रहे हैं कि श्री शुक्ला के रसूख के आगे सारे अधिकारीयों और शासन के नियम कायदे घूटने टेक देते हैं। वहीं खबर है कि रेत खदानों की अनापत्ति प्रमाण पत्र से लेकर अवैध रिसोर्ट व पनपथा (बफर) अभ्यारण के अंदर पर्यटन मार्ग के निर्माण में भी श्री शुक्ला ने जमकर चांदी काटी है।
बांटे गए फर्जी अनुभव पत्र!
बांधवगढ टाईगर रिजर्व में वर्ष 2019 में महावत के पद पर भर्ती की गई, जिस समय अनिल शुक्ला उप संचालक के पद की कमान संभाले हुए थे जिसमें इनके द्वारा तत्कालीन क्षेत्र संचालक मृदुल पाठक के चहेते लोगों को भर्ती कर लिया गया। यही नहीं महावत पद की भर्ती के दौरान तत्कालीन क्षेत्र संचालक के शासकीय वाहन चालक ईडीसी श्रमिक को सहायक महावत का अनुभव प्रमाण पत्र जारी करावकर उसे महावत के पद पर नियुक्त कर दिया गया। जबकि उपरोक्त महावत के पद पर नियुक्त व्यक्ति कभी हाथीयों व महावतों के बीच में कार्य नहीं किया।
ईको सेंसटिव जोन से उठी रेत:
यही नहीं वर्तमान प्रभारी उप वन संचालक अनिल शुक्ला द्वारा सहायक संचालक पनपथा अभ्यारण रहते हुए वर्ष 2018-19 में प्रचिलित रेत खदानों को नियम विरूद्ध जाकर अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी की गई, जिससे टाईगर रिजर्व के वन्य प्राणियों के रहवास क्षेत्र में खलल हुआ और साथ ही प्राकृतिक अनुकूल विपरीत हुईं। राजपत्र 2016 में पारित नियमों व कार्यालय प्रधान मुख्य वन संरक्षक (कक्ष भू-प्रबंध) मध्य प्रदेश भोपाल के दिए गए अभिमत पत्र क्रमांक/एफ-1/सा./2017/10-11/2908 भोपाल दिनांक 04.10.17 का अवलोकन किया जाए तो राजपत्र में नामांकित ग्राम सुखदास 127, चंसुरा 21, सलैया 119 व अन्य पारिस्थितिक संवेदित जोन के ग्रामों में रेत व अन्य व्यवसायिक गतिविधियों हेतु अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी नहीं की जा सकती, लेकिन कौडी के फेर में जिम्मेदार ने सभी नियमों की आहुति देकर अनापत्ति प्रमाण पत्र रेवडी के मार्फत बांटी गई, जिसकी शिकायत उच्चाधिकारियों के ठण्डे बस्ते में कैद है।
बिना मंजूरी बन गए रिसोर्ट:
एक ओर भारत सरकार व राज्य सरकार वन्य प्राणियों की सुरक्षा हेतु संरक्षित क्षेत्र से एक किलोमीटर की दूरी तक कोई भी व्यावसायिक गतिविधियों के न किए जाने की रोक लगाई है, और वहीं पारिस्थितिक संवेदित जोन के क्षेत्र से 1 किमी के सीमा से बाहर के लिए एनटीसीए के बगैर अनुमति कार्य न करने का हवाला दिया गया है, जो राजपत्र दिनांक 14 दिसम्बर 2016 में पारित है, बावजूद इसके देखा जाए तो 2016 से अब तक बीटीआर के इर्द गिर्द दर्शाये गए सीमा के अंदर कई ऐसे रिसोर्टों का निमार्ण किया गया है, जो नियम विरूद्ध है उसमें भी वर्तमान उप वन संचालक की भूमिका संदिग्ध है।
नोटिस के बाद नहीं हुई कार्यवाई:
बीटीआर में तने भारी भरकम कई अवैध रिसोर्ट संचालकों को त्तकालीन उप वन संचालक सिद्धार्थ गुप्ता ने नोटिस जारी की थी, लेकिन उनके तबादले के बाद कार्यवाई ठण्डे बस्ते में समाहित हो गई तो कई रिसोर्ट संचालकों के रसूख के आगे बीटीआर प्रबंधन ने घूटने टेक दिए। बहरहाल यदि जारी नोटिस से लेकर वर्तमान में हो रहे अन्य रिसोर्ट निर्माण की सुध लेकर निष्पक्ष कार्यवाही की जाए तो दर्जनों रिसोर्ट समाप्त हो सकते हैं। किन्तु इससे परे प्रबंधन चुप्पी साधे हुए है।