नेशनल फ्रंटियर/उमरिया। बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में जिस तरह से नियम और कायदों का माखौल उड़ाया जा रहा है उससे वन्यप्राणियों के अस्तित्व पर संकट खड़ा हो गया हैं। जहां प्रबंधन के कारस्तानियों के कारण इसका खामियाजा वन्यप्राणियों को भुगतना पड़ रहा है। इन दिनों बीटीआर में कामर्शियल निर्माण जोरों पर है किन्तु अधिकारी निर्माणकर्ताओं के सामने बौने साबित हो रहे हैं। केन्द्र सरकार भले ही टाईगर रिजर्व के संरक्षित क्षेत्रों के आसपास वन्य प्राणी सुरक्षा दृष्टि हेतु राजपत्र व अधिनियम क्यों न पारित कर ले, किन्तु राजपत्र के परिपालन में राजस्व विभाग के खलल के कारण वन विभाग अपनी कार्यवाही में उलझनों में पड़ जाता है, जिन कारणों से अपनी उदासीनता के कारण सुर्खियों में रहने वाले पार्क प्रबंधन को कार्यवाई से बचने का मौका मिल जाता है।
यह है मामला :
दरअसल बांधवगढ़ बड़े पूंजीपतियों व रसूखदारों के लिए व्यापार का केन्द्र बिंदु बना हुआ है, जिसके फेर में बीटीआर के संरक्षित क्षेत्र से सटकर कामर्शियल निर्माण किया जा रहा है तो वहीं इससे लगी भूमियों के खरीद-फरोक्त कराने में राजस्व अमला भी पीछे नहीं छूट रहा है। राजस्व विभाग की निरंकुशता के कारण राजस्व भूमि के नाम पर नियम को ताक में रख कामर्शियल उपयोग के लिए संरक्षित क्षेत्र की सीमाओं से सटकर भूमि का विक्रय व निर्माण हो रहा है, जबकि बांधवगढ टाइगर रिजर्व के आला-अफसर गहरी निंद्रा में तो लीन हैं जिससे उन्हें अवैध निर्माण कार्य पर रोक लगाने से बचने का मौका भी मिल रहा है। ऐसे में दो विभागों के जिम्मेदारों पर सवाल उठ रहे हैं।
राजपत्र में पारित नियम :
वहीं भारत सरकार द्वारा 14 दिसंबर 2016 में पारित अधिनियम को देखा जाए तो संरक्षित क्षेत्र के बांउड्रीवाॅल से 1 किमी की परिधी में कोई भी कामर्शियल निर्माण नहीं किया जा सकता। किन्तु बांधवगढ में यह धडल्ले से जारी है। दूसरी ओर संरक्षित क्षेत्र से सटकर जिन भूमि का विक्रय व डायवर्सन हो जाता है उसमें संरक्षित क्षेत्र के वन अधिकारियों को कार्यवाही करने में कई अडचने आती है, जिस कारण से अधिकारी कार्यवाही करने से दूर भागने की भी कोशिशें करते हैं।
एलएसी के कमी का उठा रहे फायदा :
टाइगर रिजर्व संरक्षित क्षेत्र के सुरक्षा दृष्टि हेतु सर्वोच्च न्यायालय व भारत सरकार द्वारा एलएसी (लोकल एडवाइजर कमेटी) गठित की गई है जिसमें कमिशनर अध्यक्ष व पार्क क्षेत्र संचालक सदस्य सचिव व स्थानीय जिला कलेक्टर सदस्य के साथ ही जनप्रतिनिधी भी सदस्य होते हैं, इस समिति के अनुशंसा के बाद ही इको सेंसटिव जोन में किसी प्रकार की निर्माण के अनुमति के लिए अनुशंसा की जा सकती है। जिसके पश्चात अनुमति देने का प्रावधान है। साथ ही अनुमति देने य अनुशंसा करने के लिए राजपत्र के पारित नियम के तहत ही किया जा सकता है। लेकिन बांधवगढ में भूमि विक्रय व डायवर्सन पर कोई विचार नहीं किया जाता जिसका फायदा दलाल व जमीन विक्रेता व क्रेता उठा लेते हैं।
वन्यजीवों के लिए संकट बना निर्माण :
बांधवगढ टाइगर रिजर्व के संरक्षित क्षेत्रों से सटकर हो रहे भूमि विक्रय से लेकर कामर्शियल निर्माण कार्य वन्य प्राणियों के अस्तित्व पर संकट बन चुका है। कारण कि बाघ व अन्य वन्य जीवों के एक जोन से दूसरे जोन पर जाने के लिए काॅरिडोर मार्ग में बंद हो रहा है जहां ग्रामीणों के घरों में वन्यप्राणी व बाघ घुसते हैं और जानलेवा हमला करते हैं।
नहीं हुई कार्यवाई :
बांधवगढ टाइगर रिजर्व के अंतर्गत 2016 के बाद हुए कार्य निर्माण पर विभाग द्वारा किसी प्रकार की कोई कार्यवाही नहीं की गई, जबकि कुछ दिनों पहले तत्कालीन उप वन संचालक सिद्धार्थ गुप्ता द्वारा कई अवैध निर्माण करने वाले रिर्सोट संचालकों को नोटिस जारी की गई थी, लेकिन श्री गुप्ता के तबादले के बाद कार्यवाई ठण्डी पड गई। वर्तमान प्रभारी उप वन संचालक अनिल शुक्ला के कार्यकाल में रिसोर्ट के अवैध निर्माण संबंधी कई शिकायतें दर्ज कराई गई, किन्तु कार्यवाही की वजाय उनके उपर खुला संरक्षण देने का आरोप लगा।