रीवा। केंद्रीय जेल रीवा में महा भ्रष्टाचार का जो इतिहास रचा जा रहा है उसकी सही जांच हो तो कभी भी पोल खुल सकती है यहां जेल के अंदर आने वाले बंदियों के परिजनों को पूरी तरह से चूसने और लूटने का गेम चलता रहता है।
सबसे बड़ी आश्चर्यचकित करने वाली घटना यह है कि रीवा जेल के जेलर सहित अन्य अधिकारियों से जुड़े बाहर के दलालों द्वारा बंदी कैदियों केस का पूर्ण विवरण हासिल करके उनके घर घर जाकर उन्हें यह बताया जाता है कि अगर आप अपने घर के बंदी को चाहे वह किसी भी मामले में सजा काट रहा हो उसको सभी सुविधाएं दिलाना चाहते हैं तो इसके लिए आपको अलग अलग से पैसा भेजना होगा जिसमें कई लोगों ने तो जो की दलाली का काम करते हैं उन्होंने अपने निजी खाते में पैसा भेजने के लिए कहा और पैसा भेजा भी गया जिसके खाते में पैसा भेज दिया जाता है वह व्यक्ति नामित बंदी को अंदर सुविधाएं प्राप्त हो जाती हैं इसके लिए यहां तक कि अंदर से जेल में कागज पर कैदियों से लिखवाया जाता है कि यहां इन्हें पैसा दे दीजिएगा तभी हमको यहां सुविधाएं मिलेंगी और मारपीट का सिलसिला भी कम होगा । इस तरह का शायद यह पूरे भारतवर्ष में रीवा केंद्रीय जेल में ही चल रहा है हालांकि पिछले कुछ दिनों से जब से सतीश उपाध्याय ने जेल अधीक्षक के रूप में कार्यभार संभाला है तो ऐसे मामलों पर सख्ती बढ़ाई है परंतु फिर भी यह सिलसिला अभी आंशिक तौर पर जारी है ।
जेल के बाहर के कुछ लोगों के खातों में जो पैसे आए हैं उसकी अगर जांच की जाए तो अपने आप स्पष्ट तौर पर खुलासा हो जाएगा कि किसी भी बंदी के परिवार ने बाहरी व्यक्ति के अकाउंट में ऑनलाइन पैसा किसलिए डलवाया है और उनके इस खाते का इनकम टैक्स रिटर्न जमा है या नहीं यह अपने आप में स्पष्ट हो जाएगा जल्द ही उनके नाम और खातों का भी खुलासा किया जाएगा
एक सौ से अधिक गायों का दूध कहां जाता है
केंद्रीय जेल रीवा में कहने को तो गौशाला स्थापित है और इस गौशाला में गौ माता जो दूध देती हैं वह रिकॉर्ड में तो कैदियों के लिए जाता है परंतु वास्तविकता यह है कि औसत रूप से लगभग 200 से ढाई सौ लीटर दूध प्रतिदिन होता है और वह सब बंदरबांट का शिकार हो जाता है कैदियों को मिलने की जगह व अफसरों के घरों में जाता है और सबसे ज्यादा दूध संजू नायक सहायक जेलर के बंगले में जाता है यहां सिपाहियों को भी 50 रूप्ए लीटर गाय का दूध बेचा जाता है जबकि वह कैदियों को जो बीमार हैं अथवा कमजोर हैं या फिर जिन्हे डॉक्टर ने कहा है कि इनको दूध की आवश्यकता है उनको दिया जाना चाहिए परंतु यहां दूध की बंदरबांट का सिलसिला लंबे समय से चल रहा है क्योंकि सभी अफसरों के घर में यह दूध सुबह शाम जाता है इसलिए कोई निरीक्षण करने नहीं जाता है। गौशाला में पदस्थ जो भी कर्मचारी होता है उसकी प्रति माह की हजारों रुपए की कमाई हो जाती है और उस राशि में भी अधिकारियों को हिस्सा बांट दिया जाता है इसलिए यहां पर पोस्टिंग कराने के लिए कर्मचारी अतिरिक्त पैसा भी अधिकारियों को नजराने के रूप में खासतौर पर जेलर रविशंकर सिंह को पहुंचाते हैं यहां गौशाला में सारा कामकाज जेल के बंदी करते हैं उनकी भी कोई सुरक्षा नहीं रहती है परंतु जब रक्षक ही भक्षक बने हुए हैं तो नियम कायदों की बात करना बेमानी है
संगीत शिक्षक हैं मास्टर माइंड
आपको यह जानकर भी आश्चर्य होगा कि केंद्रीय जेल में बंदियों को संगीत सिखाने के लिए एक संगीत शिक्षक की भी नियुक्ति की गई है जो कि 60 से 70000 महीने संगीत सिखाने का लेता है परंतु आज तक कितने कैदियों को संगीत सिखाया गया इसका कोई रिकार्ड नहीं है । अंदरूनी जानकारी के मुताबिक संगीत शिक्षक महोदय जिनका नाम राजेश शुक्ला बताया जाता है केवल 1 घंटे के लिए दोपहर 12 से 1 बजे के बीच आते हैं और फिर इसके बाद यहां वहां घूम कर टाइम बिता कर 1 घंटे में वापस लौट जाते हैं जेल में इस तरह से जाहिर है कि बिना जेलर की जानकारी के कुछ भी नहीं होता है और जेलर रवि शंकर सिंह के गुरु के रूप में संगीत मास्टर का नाम भी चर्चा में है वह अपने शिष्य को अवैध कमाई के तरीकों के गुर सिखाते हैं और फिर बाहर उसका सिपाही और कर्मचारियों को टिप्स देते हैं किस तरह से लोगों से पैसा वसूल करना चाहिए।
कुल मिलाकर जेल में केवल भ्रष्टाचार का ही बोलबाला है
जेल के अंदर की एक और महा कहानी सामने आई है इसके अंतर्गत एक प्रमुख मुख्य प्रहरी रमेश दुबे द्वारा मनपंसद डयूटी एवं अवकाश के लिए सुविधा शुल्क की मांग की जाती है। वारंट एवं स्थापना शाखा में विगत कई सालों से एक ही प्रहरी धीरेन्द्र सिंह जमे हैं । इनकी जेलर से खूब छनती है। इनके कारनामे उजागर हैं प्रहरियों से पैसा वसूलना मकान आवंटन में मनमानी करना आदि शामिल है। पैसा न देने पर प्रहरियों को अटैच करवाने के लिए माहिर हैं।
यह भी होता है खुलेआम
जेल के अंदर कैदियों को पैरोल पर जाने और अन्य सहायता पाने के लिए विधि कल्याण अधिकारी के सहयोग की आवश्यकता होती है जिन कैदियों को पैरोल पर जाना होता है अथवा उनके अच्छे चाल चलन के कारण अपना नाम 15 अगस्त और 26 जनवरी को छोड़ने के लिए नाम जेल मुख्यालय एवं मध्य प्रदेश सरकार के पास भोपाल भेजने के लिए भेजना होता है उनके परिजनों को अतिरिक्त रकम चुकानी पड़ती है अभी सबसे बड़ा खुलासा हुआ है कि बंदियों को पहले से यह बताया जाता है कि यदि उन्हें अपने अच्छे चाल चलन और रिकॉर्ड में उनका नाम दर्ज करने के लिए आने वाले भविष्य में इसका लाभ उठाना है तो वह विधि कल्याण अधिकारी को पूर्व से ही अतिरिक्त राशि की व्यवस्था करें ताकि उन्हें शासकीय योजनाओं का लाभ मिल सके अगर वे ऐसा नहीं करते हैं तो उनके रिकॉर्ड में अच्छे चाल चलन की जगह बुरे चाल चलन का रिमार्क लगा दिया जाता है यह कार्य रीवा में लगभग डेढ़ दशक से पदस्थ विधि कल्याण अधिकारी द्वारा बखूबी किया जा रहा है जबकि यह पोस्ट स्थानांतरित भी होने वाली है परंतु एक तरह से लगभग अधिकारी का कब्जा जमा हुआ है इसका रहस्य एसआईटी द्वारा गठित जांच से ही हो सकता है
अस्पताल में भेजने के लिए भी लगता है पैसा
केंद्रीय जेल से बीमारी के बहाने जिन कैदियों को संजय गांधी अस्पताल ले जाया जाता है उसके लिए जिन सिपाहियों की ड्यूटी लगाई जाती है उनमें केवल वही होते हैं जो जेलर या सहायक जेलर को आधी रकम चुकाते हैं
सूत्र बताते हैं कि जो सिपाही बंदी को लेकर अस्पताल जाते हैं उनसे 500 से 1000 हजार की नगदी प्रति कैदी से वसूल करते हैं और फिर उन्हें अस्पताल में ले जाते हैं और वहां उनसे अतिरिक्त राशि के नाम पर कथित संसर्ग के लिए बाहर भेजने की भी सुविधा प्रदान करते हैं इसी मौके का फायदा उठाकर कई कैदी फरार भी हो गए परंतु यह सिलसिला बंद नहीं हुआ है किन.किन सिपाहियों की बीमार बंदी को ले जाने में ड्यूटी लगाई गई है उनकी जांच की जाए तो यह स्पष्ट तौर पर खुलासा हो जाएगा कि बिना किसी बीमारी के बहाना बनाकर उन्हें संजय गांधी अस्पताल ले जाया जाता है यह भी एक अतिरिक्त कमाई का जरिया बना हुआ है केंद्रीय जेल रीवा में पदस्थ चिकित्सकों द्वारा भी उन्हें अतिरिक्त राशि मिलने पर गंभीर बीमारी बताकर संजय गांधी अस्पताल भेज दिया जाता है अब तक जितने भी कैदी केंद्रीय जेल रीवा से संजय गांधी अस्पताल भेजे गए हैं उनकी बीमारी की गंभीरता की एसआईटी टीम गठित कर जांच करा ली जाए तो 90ःफीसदी से अधिक कैदी की जांच रिपोर्ट और इलाज में कुछ नहीं निकलेगा । जेल से कैदियों को पैसा मिलने पर तफरी के लिए अस्पताल भेजा जाता है। जिसमें संजय गांधी अस्पताल में यहां ले जाने वाले सिपाही और बंदी दोनों ही शामिल रहते हैं इस तरह की सुविधा ज्यादा तौर पर आजीवन कारावास और गंभीर अपराधों की सजा भुगत रहे बंदियों के लिए कराई जाती है उल्लेखनीय है कि रीवा जेल अति संवेदनशील है यहां तमाम खूंखार किस्म के अपराधी अंदर बंद हैं उन्हें जो सुविधाएं चाहनी होती हैं वह सब पूरा जेल मैनुअल के विरुद्ध उपलब्ध कराई जाती है।
साभार अरुण पांडेय