वश में जो होता यह मन।
उड़ आता बन कर खंजन।
वाणी में शहद घोलता
तोल मोल शब्द बोलता
कभी दुखी कभी खुशगवार
बन कर ज्यों पवन डोलता
जीवन के भेद खोलता
खिल उठता प्रिय का आँगन।
काँधे पर सिर रख प्रिय के
सुनता वह परियों के गीत
सुनते सुनते थक कर वह
सो जाता फिर गहरी नींद
फिर आता बन कर सपना
खो जाता सपनों में मन।
जीवन होता बसंत-सा
मन होता फागुनी पवन
सुध बुध खो देती यों ही
पल भर में चंचल चितवन
हो जाता हर तीरथ व्रत
लेते ही एक आचमन।
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–डॉ ओम निश्चल