नई दिल्ली: साल 2024 में देश की सर्वोच्च अदालत ने कई ऐसे फैसले सुनाए हैं, जो देश की संवैधानिक और न्याय व्यवस्था के लिए मील के पत्थर साबित होने वाले हैं। जाहिर है कि अदालत के फैसले सबके लिए खुशियां लेकर नहीं आता। किसी को इससे बहुत सुकून मिलता है, तो कही गम भी महसूस किया जाता है।
हालांकि, एक साल में सुप्रीम कोर्ट की ओर से कई ऐसे फैसले सुनाए गए हैं, जो देश की बड़ी आबादी के लिए मायने रखते हैं। लेकिन हम यहां सिर्फ 10 चुनिंदा फैसलों की चर्चा कर रहे हैं।
इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम
इस साल 15 फरवरी को लोकसभा चुनावों की तारीखों की घोषणा से ठीक पहले सुप्रीम कोर्ट ने सर्वसम्मति से ऐतिहासिक फैसले में इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को खारिज कर दिया। सर्वोच्च अदालत ने इसे ‘असंवैधानिक और स्पष्ट रूप से मनमाना’ठहराया। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पांच सदस्यीय बेंच ने यह फैसला सुनाया। अदालत ने कहा कि चुनावी बांड के माध्यम से राजनीतिक फंडिंग के स्रोत का पूर्ण रूप से खुलासा न करने से भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिला।
चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति
इस साल मई में सुप्रीम कोर्ट ने एक प्रमुख फैसले में लोकसभा चुनावों से ठीक पहले दो नए चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया। सर्वोच्च अदालत ने कहा कि चुनाव नजदीक है और ऐसी याचिकाओं से ‘अराजकता’ और ‘अनिश्चितता’ पैदा होगी। चुनाव आयोग ‘कार्यपालिका के अधीन’नहीं है,यह देखते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यालय की शर्तें)अधिनियम,2023 के संचालन पर कोई अंतरिम रोक लगाने से भी इनकार कर दिया।
अनुच्छेद 370 की बहाली नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 370 को खत्म करके पूर्ववर्ती जम्मू और कश्मीर राज्य का विशेष दर्जा हटाने के केंद्र सरकार के 5,अगस्त 2019 के फैसले को बरकरार रखने वाले अपने दिसंबर 2023 के फैसले की समीक्षा की मांग वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया। पांच सदस्यीय बेंच की अगुवाई कर रहे सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि समीक्षा याचिकाओं को देखने से रेकॉर्ड में कोई त्रुटि नजर नहीं आई।
अनुसूचित जातियों (SC) के उप-वर्गीकरण पर मुहर
सुप्रीम कोर्ट की 7 सदस्यीय बेंच ने (6-1 से) इस साल जुलाई में फैसला सुनाया कि अनुसूचित जातियों (SC) में भी ज्यादा पिछड़ों के लिए अलग से कोटा सुनिश्चित करने के लिए अनुसूचित जातियों (SC) का उप-वर्गीकरण जायज है। इस फैसले का मतलब यह हुआ कि राज्य दलितों में से भी ज्यादा पिछड़ों की पहचान करके उन्हें मिलने वाले आरक्षण में से भी अलग से कोटे का प्रावधान कर सकते हैं।
जेलों में जाति के आधार पर भेदभाव असंवैधानिक
इस साल 3,अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जेलों में जाति के आधार पर ‘भेदभाव’ और ‘अलगाव’ संविधान के अनुच्छेद 15 का उल्लंघन है। सर्वोच्च अदालत ने कहा कि शायद किसी विशेष जाति से सफाई कर्मियों को चुनना पूरी तरह से समानता के खिलाफ है। अदालत ने कहा कि जेलों में इस तरह के भेदभाव की अनुमति नहीं दी जा सकती।
दया याचिकाओं के लिए गाइडलाइंस
सुप्रीम कोर्ट ने 9 दिसंबर को मौत की सजा पाए दोषियों की दया याचिकाओं पर जल्द और उचित कार्रवाई सुनिश्चित करने के लिए व्यापक दिशा-निर्देश जारी किए हैं। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से सजा में होने वाली अनावश्यक देरी की वजह से फांसी की सजा पाए दोषियों के साथ ही न्याय व्यवस्था पर जनता का भरोसा कायम रखने के लिए बहुत बड़ा रास्ता दिखाया है। सुप्रीम कोर्ट ने दया याचिकाओं से जुड़े मामलों के लिए राज्य सरकारों को एक स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसेड्योर (SOP) तैयार करने को भी कहा है।
‘बुलडोजर जस्टिस’ पर ब्रेक
इस साल 13 नवंबर को अपने बड़े फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने ‘बुलडोजर न्याय’ वाली व्यवस्था पर रोक लगा दी। सर्वोच्च अदालत ने कहा कि आरोपियों और यहां तक कि दोषियों के खिलाफ भी बुलोडजर कार्रवाई गैर-कानूनी और असंवैधानिक है। जहां तक अवैध निर्माण तोड़ने की बात है तो शीर्ष अदालत ने इसके लिए गाइडलाइंस तय कर दिए, जिसके तहत 15 दिन पहले नोटिस देना जरूरी है। अगर गाइडलाइंस तोड़कर कार्रवाई होती है तो संबंधित अफसरों को हर्जाना भरना पड़ सकता है।
बिलकिस बानो के दोषियों की रिहाई का फैसला पलटा
गुजरात सरकार ने बिलकिस बानो केस के 11 दोषियों को समय से पहले रिहाई दे दी थी। ये सारे दोषी 2002 के गुजरात दंगों में बिलकिस बानो से रेप और उसके परिवार के सात सदस्यों के हत्या में शामिल थे। इस साल की शुरुआत में 8 जनवरी को ही सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों की रिहाई को न्याय के सिद्धांत के खिलाफ बताते हुए गुजरात सरकार का फैसला पलट दिया।
मनीष सिसोदिया को बेल
शराब घोटाले के आरोपों में फरवरी, 2023 में गिरफ्तार हुए दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के नेता मनीष सिसोदिया को इस साल 9 अगस्त को सर्वोच्च अदालत ने इसलिए जमानत पर रिहा कर दिया कि इस मामले में ट्रायल शुरू नहीं हुआ है। अदालत ने कहा कि इस तरह से किसी आरोपी को अनिश्चितकाल तक जेल में नहीं रखा जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लंबे समय तक जेल में रखना अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है।
चाइल्ड पोर्नोग्राफी
23 सितंबर के अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी से संबंधित सामग्री डाउनलोड करना और उसे रखना भी अपराध की श्रेणी में आएगा। अदालत के मुताबिक अगर संबंधित व्यक्ति ऐसी सामग्री मिटाता नहीं या पुलिस को सूचना नहीं देता तो पॉक्सो की धारा 15 के तहत यह अपराध है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाई कोर्ट के उस फैसले को पलट दिया,जिसने कहा था कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी रखना या डाउनलोड करना तबतक अपराध नहीं है, जबतक उसे किसी को भेजा नहीं जाता।