हरिद्वार: हरिद्वार जमीन घोटाला उत्तराखंड के हरिद्वार जिले में नगर निगम द्वारा 15 करोड़ रुपये की अनुपयोगी कृषि भूमि को 54 करोड़ रुपये में खरीदने का मामला है। यह घोटाला 2024 में तब सामने आया जब नगर निगम ने सराय गांव में कूड़े के ढेर के पास 33-35 बीघा जमीन खरीदी, जिसका कोई तात्कालिक उपयोग नहीं था। जांच में पाया गया कि खरीद प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी थी, नियमों की अनदेखी की गई और लैंड यूज परिवर्तन में अनियमितताएं हुईं।
हरिद्वार नगर निगम ने नवंबर 2024 में 33-35 बीघा कृषि भूमि 54 करोड़ रुपये में खरीदी, जबकि इसका बाजार मूल्य लगभग 15 करोड़ था। जमीन का सर्किल रेट 6,000 रुपये प्रति वर्ग मीटर था, लेकिन लैंड यूज बदलकर कीमत को बढ़ाया गया। खरीद में न तो ई-टेंडरिंग हुई, न ही शासन के नियमों का पालन किया गया।
जांच और कार्रवाई
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मामले की जांच सीनियर आईएएस रणवीर सिंह चौहान को सौंपी। जांच में 24 लोगों के बयान दर्ज किए गए, और डीएम कर्मेंद्र सिंह, पूर्व नगर आयुक्त वरुण चौधरी और एसडीएम अजयवीर सिंह की भूमिका संदिग्ध पाई गई।
3 जून 2025 को धामी सरकार ने 2 आईएएस (कर्मेंद्र सिंह, वरुण चौधरी), 1 पीसीएस (अजयवीर सिंह), और 9 अन्य अधिकारियों/कर्मचारियों को निलंबित कर दिया। निलंबित अन्य अधिकारियों में वरिष्ठ वित्त अधिकारी निकिता बिष्ट, रजिस्ट्रार कानूनगो राजेश कुमार, प्रशासनिक अधिकारी कमलदास, और सहायक नगर आयुक्त रविंद्र कुमार दयाल आदि शामिल हैं। मामले की आगे की जांच विजिलेंस को सौंपी गई है।
लापरवाही और नियमों की अनदेखी
डीएम कर्मेंद्र सिंह पर प्रशासनिक स्वीकृति में लापरवाही और नियमों की अनदेखी का आरोप। वरुण चौधरी पर बिना उचित प्रक्रिया के प्रस्ताव पारित करने का इल्जाम। अजयवीर सिंह पर जमीन के निरीक्षण और सत्यापन में लापरवाही बरतने का आरोप। जमीन का लैंड यूज अक्टूबर 2024 में बदला गया, और जल्दी ही नवंबर में रजिस्ट्री कर दी गई, जिससे घोटाले की आशंका बढ़ी।
राजनीतिक और प्रशासनिक प्रभाव
मुख्यमंत्री धामी ने भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस नीति के तहत यह कार्रवाई की, जो उत्तराखंड में पहली बार इतने बड़े पैमाने पर शीर्ष अधिकारियों के खिलाफ हुई।
हरिद्वार सांसद त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भी इस कार्रवाई का समर्थन किया और भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ सख्त कदम की जरूरत बताई। हालांकि विपक्ष ने इस मामले में सरकार को घेरने की कोशिश की, लेकिन धामी सरकार की त्वरित कार्रवाई ने उनकी आलोचना को कमजोर किया।
जमीन घोटाला भ्रष्टाचार और प्रशासनिक लापरवाही
विजिलेंस अब इस मामले की गहन जांच कर रही है। जमीन बेचने वाले किसान के खातों को फ्रीज कर दिया गया है। यह मामला उत्तराखंड की प्रशासनिक और राजनीतिक व्यवस्था में पारदर्शिता और जवाबदेही को मजबूत करने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। हरिद्वार जमीन घोटाला भ्रष्टाचार और प्रशासनिक लापरवाही का एक बड़ा उदाहरण है, जिसमें नियमों को ताक पर रखकर सरकारी धन का दुरुपयोग किया गया। धामी सरकार की सख्त कार्रवाई से यह संदेश गया है कि भ्रष्टाचार बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।