पटना: अब इसे नीतिगत की गई भूल कहें या सिर पर आया चुनाव का दबाव। मगर इतना तो हुआ कि नीतीश कुमार जिस दृढ़ता से शराब बंदी के साथ एक आंधी के सामने खड़े रहे, आज वही दृढ़ निश्चय टूट गया । याद कीजिए वह वाक्य जब उन्होंने कहा था ‘जो पिएगा वह मरेगा। ऐसे गंदे काम करने वाले जो जहरीली शराब पी कर मरेगा, उसे मुआवजा देंगे? हरगिज नहीं।’ लेकिन वही नीतीश कुमार अपनी बनाई नीति से पलटे तो उसकी वजह का सबसे बड़ा आधार बिहार की जातीय राजनीति की तरफ जाता दिखता है। शराब पीकर मरने वाले और शराब पीने या कारोबार करने वालों का आंकड़ा नीतीश कुमार के बदलने की वजह है।
इसलिए पलटे नीतीश कुमार!
सरकार ने अपने आंकड़ों में 30 मामलों में 196 लोगों की जहरीली शराब से मौत की बात स्वीकार की है। लेकिन भाजपा का एक आंकड़ा है जो 500 से ज्यादा है। अगर शराब के कारण दर्ज हुई प्राथमिक की बात करें तो उसकी संख्या करीब 3.61 लाख है। इस मामले में करीब 5 लाख 17 हजार लोगों को गिरफ्तार किया गया। इनमें 25 हजार अभी भी जेल में हैं। इन आंकड़ों में करीब 90% एससी/एसटी/ईबीसी के लोग शामिल हैं। वोट संतुष्टि की नीति के आगे नीतीश कुमार की नीति का झुकना मजबूरी थी। वैसे भी 16 प्रतिशत वोट बैंक हर दल और गठबंधन की राजनीतिक जरूरत है। नीतीश कुमार के लिए यह इसलिए ज्यादा जरूरी भी है कि इनके विरुद्ध चिराग पासवान ने मोर्चा खोल रखा है। इसका असर वर्ष 2020 के विधान सभा चुनाव में दिखा जब 100से अधिक विधायकों वाली पार्टी 43 सीट पर सिमट गई।
‘जीतनराम मांझी भी कम जिम्मेवार नहीं’
महागठबंधन में शामिल जितने भी दल हैं उसमें सबसे अस्थिर दल हिंदुस्तानी अवामी मोर्चा है। जीतन राम मांझी कभी कभी ऐसी बात बोल देते हैं जिससे लगता है कि वे अब एनडीए की तरफ जाने वाले हैं। हाल ही में उन्होंने गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की और बिहार की राजनीति में भूचाल आ गया। हालांकि उन्होंने अपनी सफाई भी दी कि वे बिहार के स्मरणीय महापुरुषों के लिए भारत रत्न की मांग करने गए थे। इस ढुलमुल नीति पर एक कार्यक्रम में नीतीश कुमार ने भी मांझी को हिदायत दी कि ‘आप कहीं नहीं जाएंगे । आपको जो मिला है वह यहीं मिला है और यहीं से मिलेगा।’ लेकिन आदत से लाचार मांझी ने फिर एक बात ऐसी कह दी जो नीतीश कुमार को असहज करने वाली है। जीतन राम मांझी ने नई शिक्षक बहाली नीति पर कहा कि ‘जितने भी टीचर बहाल होते हैं वो एन केन प्रकारेन सर्टिफिकेट ले लेते हैं और और जॉइन करते हैं, इसीलिए पढ़ाई का स्तर कमजोर हुआ। इसके पहले लालू प्रसाद के समय में कमीशन में जो बहाल करवाए थे उसमें सभी टीचर अच्छे हैं। उसी तर्ज पर अगर टीचर की बहाली होगी तो अच्छे टीचर होंगे।’
जहरीली शराब से मौत पर मुआवजे के पक्षधर मांझी
भाजपा के अलावा महागठबंधन के भीतर हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा भी शराब पी कर मरनेवालों को मुआवजा देने की बात कर रही थी। यहां तक कि खुले मंच से जीतन राम मांझी ने लगातार दवाब बनाया कि इस पर सर्वदलीय बैठक बुलाई जाए। भाजपा भी यही मांग लगातार कर रही थी कि शराब नीति की समीक्षा की जानी चाहिए। भाजपा और जीतन राम मांझी के मिलते सुर भी नीतीश कुमार की परेशानी का कारण बन गए थे। लेकिन जैसे ही नीतीश कुमार ने मुआवजे को हरी झंडी दी, जीतन राम मांझी ने कहा कि मुआवजा देने की बात बहुत पहले से हम बोलते रहते थे।
क्या कहते हैं राजनीतिक विशेषज्ञ?
राजनीतिक विश्लेषक प्रवीण बागी कहते हैं कि ‘यह फैसला सामाजिक और राजनीतिक परिपेक्ष्य में किया गया है, संभव है कि चुनाव के भी मद्देनजर। एक बात तो स्पष्ट है कि इस धंधे में निचले स्तर पर अधिकांशतः दलित पिछड़े ही शामिल रहते हैं। जेल में भी ज्यादातर यही लोग हैं। यही वजह भी है कि राज्य की दो अहम पार्टियां लोजपा और हम शराबबंदी की नीतिओं और मुआवजे को ले कर आवाज उठा रही थी। नीतीश कुमार ने मुआवजे की इस घोषणा के बाद इन दोनों दल को जवाब मिल गया तथा इनकी राजनीति को विराम भी। निश्चित रूप से मुआवजे की घोषणा का सकारात्मक प्रभाव तो पड़ेगा।’