आनंद अकेला की विशेष रिपोर्ट
सतना। लघु वन उपज प्रजातियों के संरक्षण योजना के तहत वन परिक्षेत्र मैहर में कराए जा रहे विशेष प्लांटेशन का संघ के अध्यक्ष एवं विशेष प्रतिनिधिमंडल ने निरीक्षण किया। इस दौरान उन्होंने प्लांटेशन से संबंधित सभी तरह की जानकारियां लेकर आवश्यक निर्देश दिए। इस दौरान बताया गया कि अब तक 18750 पौधों का रोपण किया जा चुका है। संघ के अध्यक्ष वीरेंद्र गिरी ने क्षेत्र में किए जा रहे औषधिरोपण के कार्यों की जमकर सराहना की।
गौरतलब है कि सरकार द्वारा लघु वन उपज प्रजातियों के बाय स्थली संरक्षण की योजना के तहत अगले पांच वर्षों तक 150 हेक्टेयर भूमि में विशेष प्लांटेशन का कार्य वर्ष 2019 से शुरू किया गया है। वर्ष 2019 एवं 2020 एक्स सीटू मैहर कल्याणपुर प्रोजेक्ट प्लांटेशन में पंचवर्षीय 150 हेक्टेयर का प्लान के अंतर्गत दो वर्ष में 30 हेक्टेयर प्लस 30 हेक्टेयर में विशेष पौधों के प्लांटेशन का कार्य किया जा चुका है। योजना के तहत वन औषधि विशेषज्ञ एवं जैव विविधता बोर्ड के मास्टर ट्रेनर नेपाल सिंह के देखरेख में संकटा पन वन औषधियों का रोपण वर्ष 2019 में रोपण कराया गया। जिसमें सोमवल्ली, एलोवेरा, पारस, पीपल, गिलोय, सिंदूरी हड़जोड़ जैसी दुर्लभ वनस्पतियों का रोपण विशेष तरीके से किया गया है।
विंध्य में वन विभाग की विशेष भूमि में संघ द्वारा किए जा रहे विशेष औषधीय प्लांटेशन के कार्यों के निरीक्षण के लिए मध्य प्रदेश राज्य लघु वनोपज संघ के अध्यक्ष वीरेंद्र गिरी द्वारा पांच दिवसीय विशेष भ्रमण किया जा रहा है। पांच दिवसीय विशेष भ्रमण के दौरान राज्य लघु वनोपज संघ के अध्यक्ष वीरेंद्र गिरी एवं संघ के संचालक सुरेश सिंह परिहार, श्रीकांत शर्मा एसडीओ रेंजर मैहर सतीश चंद्र मिश्रा, प्राथमिक समिति की अध्यक्ष संगीता गोस्वामी द्वारा सतना में प्लांटेशन के निरीक्षण का कार्य किया।
निरीक्षण के दौरान मास्टर ट्रेनर नेपाल सिंह ने संघ के अध्यक्ष वीरेंद्र गिरी को प्लांटेशन के दौरान की जी रही दुर्लभ वनस्पतियों के बारे में जानकारी दी। साथ ही बताया कि पंचवर्षीय योजना के दौरान क्षेत्र की 150 हेक्टेयर जमीन में विशेष प्लांटेशन का कार्य किया जाना है। उन्होंने बताया कि वर्ष 2019 से शुरू हुई इस योजना को दो वर्ष हो चुके हैं। इस अवधि के दौरान अब तक 60 हेक्टेअर प्लस जमीन पर विशेष प्लांटेशन का कार्य किया जा चुका है। अध्यक्ष वीरेंद्र गिरी को जानकारी देते हुए ट्रेनर नेपाल सिंह ने बताया कि प्लांटेशन के बहुत ही सकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं। उन्होंने बताया कि विगत दो वर्षों के परिणाम देखने से उम्मीद है कि पंचवर्षीय योजना अवधि पूरी होने के पश्चात् कई आश्चर्यजनक परिणाम निकल कर सामने आएंगे।
राज्य लघु वनोपज संघ के अध्यक्ष वीरेंद्र गिरी ने क्षेत्र में किए जा रहे प्लांटेशन के कार्यों से संबंधित कई जानकारियां ली। साथ ही पूरे क्षेत्र में भ्रमण करके प्लांटेशन की प्रगति भी देखी। इस दौरान संघ के अध्यक्ष वीरेंद्र सिंह ने दुर्लभ वनस्पतियों के रोपण कार्य में मास्टर ट्रेनर नेपाल सिंह की जमकर प्रशंसा की।
समीक्षा बैठक में कई मुद्दों पर गंभीर मंथन
सोमवार को वन विभाग के विश्राम गृह के सभागार में विशेष समीक्षा बैठक का आयोजन किया गया। जिसमें विगत दो वर्षों के विकास कार्यों की समीक्षा की गई। इस दौरान क्षेत्र में किए जा रहे विकास कार्यों की भी जानकारी ली गई है। वन विभाग के अधिकारियों द्वारा इस दौरान पूरी जानकारी उपलब्ध कराई गई। प्राथमिक समिति के प्रबंधक सदस्य बैठक में जिला यूनियन के अध्यक्ष संगीता गोस्वामी, उपाध्यक्ष मकसूदन पांडे, उपाध्यक्ष प्रजापति संचालक के सदस्य एवं एसडीओ श्रीकांत शर्मा मैहर रेंजर सतीश चंद्र मिश्रा आदि उपस्थित रहें।
यह है भ्रमण का कार्यक्रम
अपने पांच दिवसीय विशेष भ्रमण कार्यक्रम के दौरान संघ के अध्यक्ष मंगलवार प्रातः रीवा पहुंचेंगे जहां वो जिला यूनियन रीवा में वन विभाग के अधिकारियों के साथ विगत दो वर्षों के विकास कार्यों की समीक्षा बैठक करेंगे। बुधवार को सीधी जाएंगे जहां सुबह जिला यूनियन कार्यालय में अधिकारियों के साथ विशेष बैठक करेंगे। इस दौरान विगत दो वर्षों से किए जा रहे विकास कार्यों की समीक्षा बैठक भी लेंगे। जहां से बृहस्पतिवार को सिंगरौली के लिए रवाना होंगे। जहां अधिकारियों से दौरान विशेष बैठक कर क्षेत्र में किए जा रहे विकास कार्यों का जायजा लेंगे। इसके पश्चात् शुक्रवार को वो सिंगरौली से नरसिंहपुर के लिए रवाना हो जाएंगे।
क्षेत्र में इन औषधियों का हैं भंडार
विगत वर्षो में सतना जिले में किए गए विशेष सर्वेक्षण में पाया गया कि यहां पर औषधीय पौधे प्रचुर मात्रा में पाए जाते है। इस भूमि औषधीय पौधों के लिए काफी ज्यादा उपयुक्त हैं। एवं अगर इसका सही तरीके से संवर्धन किया जाए तो यह क्षेत्र के लोगों के लिए जीवकोपार्जन का बहुत बड़ा साधन बन सकती है। इश क्षेत्र में सफेद मुसली, आमा हल्दी, विधारा, सोनापाठा, निरगुंडी, मेधालकड़ी, सतावर, कलिहारी, कालमेघ, ईश्वरमूल, मालकाँगनी, गुड़मार विशेष औषधीय का उत्पादन होता है। जिसके संरक्षण के लिए सरकार द्वारा विशेष प्रयास किए जा रहे हैं। गौरतलब है कि यहां वन परिक्षेत्रों में उष्ण कटिबंधीय मिश्रित पर्णपाती प्रकार के वन पाये जाते हैं। कई सर्वेक्षण के दौरान संग्रहित पौधों के नमूनों के आधार पर अभी तक 805 प्रजातियों के नमूने एकत्र किये जा चुके हैं इनमें से लगभग 400 पौधे औषधियों में प्रयुक्त होते हैं। ये 805 पौधे 118 कुलों, तथा 497 वंशों में समाहित हैं। इनमें से 135 प्रकार के वृक्ष, 77 प्रकार की झाड़ियां, 79 प्रकार की लताएं व 514 प्रकार के साक हैं।