नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव में राजस्थान की 25 सीटों पर एक से बढ़कर एक दिग्गज नेता चुनाव लड़ रहे हैं। सभी प्रचार में पूरा दमखम लगा चुके हैं। इस बीच 26 साल के एक युवा नेता की खूब चर्चा हो रही है। निर्दलीय प्रत्याशी के नामांकन में उमड़ी भीड़ की तस्वीरें सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही हैं। लगातार दो बार राजस्थान में क्लीन स्वीप कर चुकी भाजपा के ‘मिशन 25’ के लिए भी उन्हें खतरा बताया जा रहा है। भाटी पहले लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज कर पाएंगे या नहीं यह तो 4 जून को मतगणना के बाद तय होगा, लेकिन छोटे से राजनीतिक करियर में जिस तरह उन्हें लोकप्रियता हासिल की है उसकी चर्चा खूब हो रही है।
रविंद्र सिंह भाटी बाड़मेर जिले की शिव विधानसभा सीट से निर्दलीय विधायक हैं। अब उन्होंने बाड़मेर संसदीय सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर नामांकन कर दिया है। भाटी ने मोदी सरकार के मंत्री कैलाश चौधरी से मुकाबले के लिए मैदान में ताल ठोक दिया है। भाटी की सभाओं में खूब भीड़ उमड़ रही है। नामांकन के दौरान तो इतने लोग जुटे कि तस्वीरें वायरल हो गईं। उन्हें बाड़मेर सीट पर अहम दावेदार के तौर पर देखा जा रहा है। पीएम मोदी के नाम और काम के अलावा राम लहर पर सवार भाजपा राजस्थान में सभी 25 सीटों पर जीत के दावे कर रही है। लेकिन बाड़मेर में पार्टी की धड़कने जरूर बढ़ गईं हैं। इसकी एक वजह विधानसभा चुनाव के दौरान भाटी का प्रदर्शन है।
भाजपा से बगावत करके 2023 का विधानसभा चुनाव निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर लड़ने वाले भाटी ने कई दिग्गज नेताओं को पछाड़ते हुए जीत दर्ज की थी। भाजपा ने जब इस सीट से स्वरूप सिंह खारा को उम्मीदवार बनाया तो भाटी बागी होकर चुनाव मैदान में उतर गए। चुनाव परिणाम आए तो सभी चौंक गए। भाटी ने भाजपा के अलावा कांग्रेस के दिग्गज नेता अमीन खान, कांग्रेस के बागी नेता फतेह खान और पूर्व विधायक जालम सिंह रावत जैसे नेताओं को हरा दिया। उन्होंने करीब 4 हजार वोटों से जीत दर्ज की थी।
2019 में पहली बार लड़े चुनाव और रच दिया इतिहास
रविंद्र भाटी ने महज 5 साल पहले ही राजनीति में कदम रखा। आरएसएस के छात्र संगठन एबीवीपी के सदस्य रहे भाटी जय नारायण व्यास यूनिवर्सिटी में पढ़ाई कर रहे थे। 2019 में वह छात्र संघ अध्यक्ष के पद पर चुनाव लड़ना चाहते थे। लेकिन एबीवीपी ने उन्हें टिकट नहीं दिया। भाटी बागी होकर निर्दलीय लड़े और जीत हासिल की। 57 साल के इतिहास में पहली बार इस यूनिवर्सिटी में किसी निर्दलीय प्रत्याशी ने छात्रसंघ अध्यक्ष का पद हासिल किया। बाद में वह भाजपा में शामिल हो गए थे।