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3 पार्टियां-तीन किरदार, जिन पर होगा चुनावों में दारोमदार

Jitendra Kumar by Jitendra Kumar
19/10/22
in मुख्य खबर, राष्ट्रीय
3 पार्टियां-तीन किरदार, जिन पर होगा चुनावों में दारोमदार
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देश की सबसे पुरानी पार्टी और इस समय देश की नंबर दो बड़ी पार्टी में आम कार्यकर्ताओं द्वारा चुनकर अध्यक्ष बने मल्लिकार्जुन खरगे को गुजरात और हिमाचल के साथ आने वाले कई राज्यों के चुनावों में एसिड टेस्ट होना है. कांग्रेस पार्टी को बहुत सालों बाद कोई गैरगांधी अध्यक्ष मिला है इसलिए भी उन पर पूरे देश की नजरे होंगी. उनके रणनीतिक कौशल को कमतर आंकना उनके विरोधियों के लिए भूल साबित हो सकती है. क्योंकि खरगे आज देश के इकलौते नेता हैं जो किसी पार्टी से नियुक्त होकर नहीं बल्कि चुनकर अध्यक्ष पद हासिल किया है. कर्नाटक कांग्रेस में अजेय सरदार कहे जाने वाले इस शख्स का मुकाबला आने वाले दिनों में भारतीय जनता पार्टी और आम आदमी पार्टी से सीधे होने वाला है.

गुजरात और हिमाचल विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की इज्जत दांव पर है. अगर खरगे यहां कुछ हासिल करते हैं तो यह उनकी पार्टी ही नहीं उनके लिए भी जीवनदायी साबित होगा. हम आज तीन पार्टियों के तीन किरदारों के कौशल- कमजोरी और कारवां की चर्चा करेंगे. देखना है कि खरगे के मुकाबले में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल कहां ठहरते हैं.

कर्नाटक कांग्रेस का यह कद्दावर नेता अब अखिल भारतीय कांग्रेस पार्टी के सबसे बड़े पद पर विराजमान मल्लिकार्जुन खरगे का राजनीतिक सफर ये बताने को काफी है कि वे कठिन से कठिन परिस्थितियों में विनर बनकर उभरें हैं. एक दलित परिवार में जन्म लेने वाले खरगे को सरकार और संगठन दोनों का जितना अनुभव है उनके सामने खड़ी भारतीय जनता पार्टी और आम आदमी पार्टी के बड़े से बड़े नेताओं के पास भी नहीं है. खरगे ने छात्र राजनीति से शुरुआत करके एक आम कार्यकर्ता के रूप में पार्टी को जॉइन किया और आज पार्टी के सर्वोच्च पद पर आसीन हुए हैं.

1999 और 2004 में कर्नाटक के मुख्यमंत्री पद के लिए प्रबल दावेदार रह चुके हैं. हालांकि वे सफल नहीं हुए पर उसके पीछे जातिगत राजनीति के साथ कई ऐसे कारण रहे जो भारतीय राजनीति हमेशा राजनीतिक कौशल पर भारी पड़ जाता रहा है. उनके रणनीतिक कौशल का ही कमाल था कि 1999 से 2004 के बीच कर्नाटक में एसएम कृष्णा की सरकार में गृह मंत्री के तौर पर उन्होंने बेहद शांतिपूर्ण तरीके से प्रख्यात फ़िल्म अभिनेता राजकुमार को चन्दन तस्कर वीरप्पन के चंगुल से छुड़ाया था. उन्होंने गृहमंत्री रहते कावेरी दंगों को सुलझाने में भी अहम भूमिका निभाई थी. पंजाब विधानसभा चुनावों में उन्होंने चन्नी पर भरोसा करके शानदार दांव खेला था पर गांधी परिवार ने सिद्धू पर आवश्यकता से अधिक भरोसा करके खेल बिगाड़ दिया था. चन्नी को पंजाब का मुख्यमंत्री बनाने में खड़गे की काफ़ी भूमिका थी. राजस्थान में वो पर्यवेक्षक बनकर गए थे और मामला पूरी तरह सुलझने के करीब था पर अपने लोगों का साथ न मिलने के चलते मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को घेर पाने में असफल हो गए.

मल्लिकार्जुन खड़गे का जन्म 21 जुलाई 1942 को हुआ. जब वह सिर्फ 7 साल के थे तब साम्प्रादियक दंगों में उन्हें अपनी मां और परिवार के सदस्यों को खोना पड़ा. दंगों की वजह से खड़गे परिवार का सब कुछ खत्म हो गया. कलबुर्गी में बीए की पढ़ाई के दौरान वह छात्र राजनीति में सक्रिय हो गए. उन्होंने कलबुर्गी के सेठ शंकरलाल लाहोटी लॉ कॉजेल से लॉ की डिग्री लेकर यूनियन पॉलिटिक्स में कदम रखा. 1969 में वह एमएसके मिल्स इम्प्लॉयीज यूनियन के लीगल अडवाइजर बने. जल्द ही उनकी गिनती संयुक्त मजदूर संघ के प्रभावशाली नेताओं के रूप छा गए. इसी साल खरगे कांग्रेस पार्टी में शामिल हुए गुलबर्गा सिटी कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष बनाए गए. 1994 में वे विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बने. 2008 में दूसरी बार इस पद को संभाला. इसी साल कर्नाटक कांग्रेस के अध्यक्ष बनने में सफल हुए. 1971 में कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा पहुंचे . 1971 से जीत का जो सिलसिला चला वह 2019 में आकर रुका. 2008 तक लगातार 9 बार वह कर्नाटक विधानसभा के सदस्य रहे. 2009 में उन्होंने कर्नाटक की गुलबर्गा लोकसभा सीट से जीत हासिल की. 2014 में वह एक बार फिर से लोकसभा के चुने गए. 2009 में मनमोहन सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे. 2014 में जब बीजेपी सत्ता में आई तो वह लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष बने.

जेपी नड्डा, बीजेपी में लगातार बड़ा होता कद
देश की सबसे बड़ी पार्टी भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा के राजनीतिक कौशल का ही प्रमाण है कि उन्हें जनवरी 2023 में भारतीय जनता पार्टी का दूसरी बार अध्यक्ष बनाए जाने की बात हो रही है. पार्टी के सूत्रों के मुताबिक नड्डा का ये दूसरा कार्यकाल 2024 के जेनेरल इलेक्शन में निरन्तरता बनाये रखने के लिए किया गया है. 2024 के अति महत्त्वपूर्ण चुनाव के पहले पार्टी संगठन में किसी तरह का बदलाव करके कोई जोखिम नहीं लेना चाहती है. इससे पहले 2019 के जनरल इलेक्शन के मद्देनज़र वर्तमान गृह मंत्री अमित शाह का भी कार्यकाल बढ़ाया गया था. आखिर वो कौन सी खूबियां है जेपी नड्डा को इतना ख़ास बनती है.

61 साल के जेपी नड्डा का राजनैतिक सफर शुरू हुआ अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् से जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का छात्र संघठन है. वहां से नड्डा ने राज्य की राजनीती में अपने हाथ आजमाए और 2010 में वो राष्ट्रीय राजनीती में आये. पटना में नड्डा ने St.Xaviers से अपनी प्रारम्भिक पढाई की और फिर पटना यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया.पटना में ही नड्डा ने ABVP की राजनीती शुरू की जो हिमाचल तक चली जब उनके पिता प्रो नारायण लाल नड्डा पटना यूनिवर्सिटी से रिटायर होके वापस अपने गृह राज्य हिमाचल चले गए. नड्डा ने हिमाचल यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया और वहां के छात्र संघ का abvp का पहला अध्यक्ष बना. हिमाचल में नड्डा के संगठनात्मक काम को पहचाना गया और 1985 में उन्हें दिल्ली में बतौर org Gen Secy लाया गया जहा वो चार साल तक रहे. 1993 में नड्डा ने अपना पहला चुनाव लड़ा और वो अब तक 3 विधान सभा चुनाव जीत चुके हैं और 2 बार हिमाचल सर्कार में मंत्री भी बने.

जेपी नड्डा के जीवन का बड़ा राजनैतिक ब्रेक आया 2010 में जब नितिन गडकरी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने और उन्होंने नड्डा को नेशनल Gen secy बनाया. 2012 में वो पहली बार राज्य सभा गए. 2012 में भाजपा ने अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी में अपने संविधान के सेक्शन 21 में बदलाव किया जिसके बाद कोई भी सदस्य भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष लगातार दो बार बन सकता है. 2014 में प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने सरकार बनायीं और जेपी नड्डा उस सरकार में स्वास्थ्य मंत्री बने. बाद में वो वापस संघटन आये और 2019 में उत्तर प्रदेश के इलेक्शन इन चार्ज के तौर पे उनके काम को काफी सराहना मिली. और वहीँ से नड्डा ने मोदी-शाह के समीकरण में अपनी एंट्री कर ली. इसी के चलते जेपी नड्डा को जून 2019 में कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया जिससे ये साफ़ सन्देश गया की जब उस वक़्त के अध्यक्ष अमित शाह के कार्यकाल के ख़त्म होते ही नड्डा ही नए अध्यक्ष होंगे. अध्यक्ष बनने के बाद जेपी नड्डा के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी अमित शाह के ट्रैक रिकॉर्ड को मैच करना और उन्होंने यह काम भली भांति अंजाम दिया.

केजरीवाल के दिल्ली मॉडल ने उन्हें देश के टॉप लीडर्स की कतार में खड़ा कर दिया
भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़कर देश की राजनीति में छा जाने वाले पूर्व नौकरशाह और अब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल आज देश के शीर्ष राजनीतिज्ञों में शूमार करते हैं. आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल की पार्टी अभी देश के कुछ ही राज्यों में अपनी जड़ें जमा सकी हैं. पर उनके राजनीतिक कौशल का ही प्रमाण है कि उनकी पार्टी को राष्ट्रीय राजनीति का अगम हिस्सा माना जाता है. दिल्ली और पंजाब में सरकार बनाने के बाद आज वो हिमाचल और गुजरात में अपने दम पर सरकार बनाने का दावा ठोंक रहे हैं. धीरे-धीरे ही सही उनकी राजनीति पूरे देश में जड़े जमा रही है. उन्होंने देश के सामने दिल्ली मॉडल के गवर्नेंस का जो मॉडल पेश किया है उसकी आलोचना हो सकती है पर उसे इग्नोर नहीं किया जा सकता.

बात 2005 की है. देश में भ्रष्टाचार वे संघर्ष कर रहे थे. उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़ दी और लोगों को भ्रष्टाचार से लड़ने का पाठ पढ़ाने लगे. उनके इस काम को 2006 में रेमन मैगसेसे पुरस्कार से मान्यता मिली. यहीं से उनका भ्रष्टाचार से लड़ने का मनोबल और बढ़ गया. फ्री बिजली, स्वास्थ्य, शिक्षा का वादा कर राजनीति में आने वाले केजरीवाल की पार्टी की दिल्ली और पंजाब के बाद गुजरात और हिमाचल में बीजेपी को कड़ी टक्कर दे रही है.

मूलतः हरियाणा के रहने वाले केजरीवाल का जन्म 16 अगस्त 1968 को हुआ था. 1989 में आईआईटी खड़गपुर से मैकेनिकल में स्नातक की उपाधि प्राप्त की. 1992 में वे भारतीय राजस्व सेवा (IRS) में सेलेक्ट हुए. दिल्ली में आयकर आयुक्त के रूप में उन्होंने अपनी नौकरी शुरू की. बाद में नौकरी छोड़कर सामाजिक कार्यकर्ता बन गए. अरविंद केजरीवाल ने भ्रष्टाचार मुक्त भारत शुद्ध राजनीति का हवाला देकर आम आदमी पार्टी (AAP) बनाई. दिल्ली में वर्ष 2010 में कॉमनवेल्थ गेम्स में हुए भ्रष्टाचार पर जोरशोर से इन खेलों में भ्रष्टाचार के मुद्दे को उठाया था जिसके बाद वो बेहद पॉपुलर होते चले गए. दिल्ली में उन्होंने अपने पहले कार्यकाल के दौरान वह 28 दिसम्बर 2013 से14 फरवरी 2014 तक और दिल्ली पुलिस पर काम न करने देने का आरोप लगाया. रेल भवन के बाहर कई दिनों तक धरना दिया. यहां से वो आंदोलनकारी अवतार में जन्में, 49 दिन में ही सीएम पद से इस्तीफा दे दिया. इस बार टारगेट कांग्रेस और बीजेपी दोनों पर किया और कहा कि ये दोनों पार्टियां जनहित के काम नहीं करने दे रही हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में केजरीवाल ने पार्टी के 400 लोगों को चुनाव मैदान में उतारा. खुद नरेंद्र मोदी के खिलाफ वाराणसी से चुनाव लड़े. लेकिन हार गए. AAP के ज्यादातर उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई. लेकिन केजरीवाल हताश नहीं हुए, उन्होंने राजनीति की बारीकियां सीखीं. दिल्ली के मुखिया बनने के बाद दिल्ली में 20 हजार लीटर पानी, 200 यूनिट तक बिजली और महिलाओं के लिए बस का सफर फ्री करने के साथ ही आप सरकार ने बुजुर्गों के लिए तीर्थयात्रा ने दिल्लीवासियों का ऐसा दिल जीता कि अभी भी दूसरी पार्टियों के लिए दिल्ली में सरकार बनाना दूर की कौड़ी ही नजर आता है.

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