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एक ही दिन में दिखेंगे 3 तरह के सूर्य ग्रहण, भारत में सूतक काल मान्य होगा या नहीं? जानें

Jitendra Kumar by Jitendra Kumar
07/04/23
in कला संस्कृति, धर्म दर्शन
एक ही दिन में दिखेंगे 3 तरह के सूर्य ग्रहण, भारत में सूतक काल मान्य होगा या नहीं? जानें
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साल का पहला सूर्य ग्रहण 20 अप्रैल 2023 को लगने जा रहा है. यह सूर्य ग्रहण बेहद महत्वपूर्ण रहने वाला है. इस सूर्य ग्रहण के दौरान सूर्य मेष राशि में विराजमान होंगे और गुरु मेष राशि में आकर सूर्य के साथ युति करेंगे. इसी दिन वैशाख अमावस्या भी होगी. साथ ही इस बार एक ही दिन में तीन सूर्य ग्रहण भी दिखेंगे, जिसे वैज्ञानिकों ने हाइब्रिड सूर्य ग्रहण का नाम दिया है. आइए जानते हैं कि हाइब्रिड सूर्य ग्रहण होता क्या है और इसका क्या प्रभाव पड़ेगा.

साल के पहले सूर्य ग्रहण की अवधि 

20 अप्रैल, बृहस्पतिवार को इस साल का पहला सूर्य ग्रहण लगने जा रहा है. यह ग्रहण सुबह 7 बजकर 4 मिनट से शुरू होगा और दोपहर 12 बजकर 29 मिनट पर खत्म होगा. इस सूर्य ग्रहण की अवधि 5 घंटे 24 मिनट की होगी. वहीं इस सूर्य ग्रहण से पहले ही सूर्य का राशि परिवर्तन होगा और सूर्य ग्रहण के दो दिन बाद देवगुरु बृहस्पति का गोचर होगा. यह ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा इसलिए इस ग्रहण का सूतक काल नहीं माना जाएगा.

एक ही दिन में दिखेंगे 3 तरह के सूर्य ग्रहण

यह सूर्य ग्रहण भारत में नहीं दिखेगा. लेकिन इस बार का सूर्य ग्रहण बेहद खास रहने वाला है क्योंकि ये सूर्य ग्रहण तीन रूपों में देखने को मिलेगा. इनमें आंशिक, पूर्ण और कुंडलाकार सूर्य ग्रहण शामिल होंगे. वैज्ञानिकों ने इसे हाइब्रिड सूर्य ग्रहण का नाम दिया है. ये हाइब्रिड सूर्य ग्रहण 100 साल में एक ही बार लगता है.

आंशिक सूर्य ग्रहण

जब चंद्रमा सूर्य के किसी छोटे हिस्से के सामने आकर रोशनी रोकता है, तब आंशिक सूर्य ग्रहण होता है.

कुंडलाकार सूर्य ग्रहण

जब चंद्रमा सूर्य के बीचो-बीच आकर रोशनी रोकता है. तब चारों तरफ एक चमकदार रोशनी का गोला बनता है. इसे रिंग ऑफ फायर कहते हैं.

रिंग ऑफ फायर (कुंडलाकार सूर्य ग्रहण)
पूर्ण सूर्य ग्रहण

जब पृथ्वी, सूर्य तथा चंद्रमा एक सीधी रेखा में होते हैं, इसके कारण पृथ्वी के एक भाग पर पूरी तरह से अंधेरा छा जाता है, तब पूर्ण सूर्य ग्रहण की स्थिति बनती है. इसे आप खुली आंखों से बिना किसी यंत्र के भी देख सकते हैं.

हाइब्रिड सूर्य ग्रहण 

हाइब्रिड सूर्य ग्रहण आंशिक, पूर्ण और कुंडलाकार सूर्य ग्रहण का मिश्रण होता है. यह सूर्य ग्रहण लगभग 100 साल में एक ही बार देखने को मिलता है. इस सूर्य ग्रहण के समय चंद्रमा की धरती से दूरी न तो ज्यादा होती है और न कम. इस दुर्लभ ग्रहण के दौरान सूर्य कुछ सेकेंड के लिए एक वलय यानी रिंग जैसी आकृति बनाता है, जिसे अग्नि का वलय यानी रिंग ऑफ फायर कहा जाता है.

कहां कहां दिखेगा ये सूर्य ग्रहण

यह सूर्य ग्रहण भारत में नहीं दिखेगा. यह सूर्य ग्रहण कंबोडिया, चीन, अमेरिका, माइक्रोनेशिया, मलेशिया, फिजी, जापान, समोआ, सोलोमन, बरूनी, सिंगापुर, थाईलैंड, अंटार्कटिका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, वियतनाम, ताइवान, पापुआ न्यू गिनी, इंडोनेशिया, फिलीपींस, दक्षिण हिंद महासागर और दक्षिण प्रशांत महासागर जैसी जगहों पर ही दिखाई देगा.

ग्रहण की पौराणिक कथा

हिंदू धर्म की पौराणिक कथाओं के मुताबिक, ग्रहण का संबंध राहु और केतु ग्रह से है. बताया जाता है कि समुद्र मंथन के जब देवताओं और राक्षसों में अमृत से भरे कलश के लिए युद्ध हुआ था. तब उस युद्ध में राक्षसों की जीत हुई थी और राक्षस कलश को लेकर पाताल में चले गए थे. तब भगवान विष्णु ने मोहिनी अप्सरा का रूप धारण किया और असुरों से वह अमृत कलश ले लिया था. इसके बाद जब भगवान विष्णु ने देवताओं को अमृत पिलाना शुरू किया तो स्वर्भानु नामक राक्षस ने धोखे से अमृत पी लिया था और देवताओं को जैसे ही इस बारे में पता लगा उन्होंने भगवान विष्णु को इस बारे में बता दिया. इसके बाद भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से उसका सिर धड़ से अलग कर दिया.

बताया जाता है कि स्वर्भानु के शरीर के 2 हिस्सों को ही राहु और केतु नाम से जाना जाता है और देवताओं से अपमान का बदला लेने के बाद वह सूर्य और चन्द्र से बदला लेने के लिए बार-बार ग्रहण लगाते हैं.

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