वाशिंगटन। दुनिया में कई ऐसे लोग हुए जिन्होंने बुरे हालात के सामने हार ना मानते हुए अपने सपनों के लिए संघर्ष किया और वह जीते भी। ऐसे लोगों ने दुनिया में कई सारी मिसालें पेश की हैं, इन्हीं में से एक है ‘द मैन इन आयरन लंग’ के नाम से मशहूर पॉल अलेक्जेंडर जो पिछले 60 सालों से एक मशीन में बंद हैं। इस मशीन में एक-एक सांस के लिए संघर्ष करते हुए पॉल ने न सिर्फ अपनी लॉ की पढ़ाई पूरी की बल्कि एक किताब भी लिख दी। पॉल अलेक्जेंड बने लोगों के लिए मिसाल अमेरिका में रहने वाले पॉल अलेक्जेंड द्वारा लिखी गई मोटिवेशनल किताब अब दुनियाभर में सुर्खियां बटोर रही है। पॉल खुद भी एक लेखक हैं और उन्हें पढ़ने का काफी शौख है। आपको जानकर हैरानी होगी कि पॉल अलेक्जेंड पिछले 60 साल से एक टैंक नुमा मशीन में बंद हैं, यही उनकी जीने का एकमात्र सहारा है। पॉल पूरे समय इसी मशीन में ही लेटे रहते हैं।
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1952 से ही मशीन में बंद हैं पॉल
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक पॉल को सन 1952 से ही सांस लेने में परेशानी हो रही है, उन्हें सांस लेने के लिए आयरन लंग (मशीनी फेफड़े) का सहारा लेना पड़ रहा है। इसी मशीन में लेटे-लेटे उन्होंने अपनी पढ़ाई और किताब दोनों पूरी की। इस हालत में भी हार नहीं मामने के लिए सोशल मीडिया पर उनकी खूब तारीफ हो रही हैं, वहीं कुछ लोग उनसे प्रेरणा ले रहे हैं।
दूसरों को मोटिवेट करना चाहते थे पॉल पॉल
अपनी इस हालत में दूसरों को मोटिवेट करना चाहते थे लेकिन उन्हें तरीका समझ नहीं आ रहा था। हालांकि बाद में उन्होंने किताब लिखने का फैसला किया। पॉल की इस हालत की वजह 6 साल की उम्र में हुई पोलियो अटैक था। पोलियो से पॉल की जिंदगी मुश्किल तो हो ही गई थी, उसी दौरान दोस्त के साथ खेलते हुए उन्हें चोट लग गई। इसके बाद पॉल पूरी तरह से दूसरों के सहारे पर निर्भर हो गए।
वकालत की प्रैक्टिस भी की
पोलियो के साथ-साथ उन्हें सांस लेने में भी दिक्कत होने लगी। डॉक्टरों के पास उन्हें मशीनी फेफड़ों पर रखने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं था। पॉल के बड़े होने पर उनके रिकवर होनी की उम्मीद जताई जा रही थी लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं। 75 साल पूरे कर चुके पॉल 60 साल से मशीन में बंद हैं। मशीन में रह रहे पॉल हिल-डुल भी नहीं पाते। लॉ की पढ़ाई के साथ-साथ उन्होंने अपग्रेडेड व्हीलचेयर की मदद से कुछ वक्त तक वकालत की प्रैक्टिस भी की थी।
प्लास्टिक की स्टिक से लिखी किताब पॉल
एलेक्जेंडर के दृढ़ हौसले का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने खुद 8 सालों तक कीबोर्ड को प्लास्टिक की स्टिक से चलाकर अपनी किताब लिखी। वह हार मानने वालों में से नहीं हैं। उनके लिए किताब लिखना बिल्कुल भी आसान नहीं था लेकिन अपने हौसले से उन्होंने दुनिया को अपनी आत्मशक्ति का परिचय दिया। पॉल की किताब की डिमांड पूरी दुनिया से हो रही है, लोग किताब से उनके बारे में और जानना चाहते हैं।
खबर इनपुट एजेंसी से