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विपक्षी एकता के बीच एक तीसरा मोर्चा!

Jitendra Kumar by Jitendra Kumar
19/06/23
in मुख्य खबर, राष्ट्रीय
विपक्षी एकता के बीच एक तीसरा मोर्चा!
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Ajay Setia


देश का एक ख़ास वर्ग 23 जून का बेसब्री से इन्तजार कर रहा है, जब विपक्षी दलों की पहली बैठक साथ होगी| ऐसे प्रयास 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले नवंबर 2018 में भी शुरू हुए थे, तब ममता बनर्जी ने पहल की थी| वह नवंबर 2018 में सोनिया गांधी से मिलने दिल्ली आई थी| आज जो ख़ास वर्ग 23 जून की मीटिंग का बेसब्री से इन्तजार कर रहा है, उसी वर्ग ने सोनिया गांधी और ममता की मीटिंग को बहुत प्रचारित किया था|

उस समय चन्द्रबाबू नायडू आंध्र प्रदेश के विभाजन के बाद आंध्र के लिए विशेष पैकेज की मांग कर रहे थे, आंध्र प्रदेश का विभाजन यूपीए सरकार करके गई थी| प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आंध्र को कोई विशेष पैकेज नहीं दिया, तो आखिरी साल वह एनडीए से बाहर हो गए थे| मोदी को चुनाव में हराने के लिए उन्होंने भी सोनिया गांधी से मुलाक़ात की थी|

2018 में विपक्षी एकता के लिए ममता बनर्जी के साथ चन्द्रबाबू नायडू भी उतना ही सक्रिय थे, जितना आज एनडीए से बाहर आने के बाद नीतीश कुमार सक्रिय हैं| ममता बनर्जी, चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार, ये तीनों ही पहले एनडीए का हिस्सा रहे हैं| चंद्रबाबू नायडू एनडीए से बाहर आने के बाद मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव भी लेकर आए थे|

10 दिसंबर 2018 को चन्द्रबाबू नायडू ने ही दिल्ली में विपक्षी दलों की बैठक बुलाई थी, जिसमें अरविन्द केजरीवाल भी शामिल हुए थे| तब केजरीवाल ने नारा दिया था- ” भाजपा से सावधान, वरना नहीं बचेगा हिन्दुस्तान”| संसद भवन एनेक्सी में हुई इस बैठक में 17 दलों ने हिस्सा लिया था, लेकिन इस बैठक में सपा बसपा से कोई नहीं आया था| जबकि बाद में देश भर में तो कहीं कोई विपक्षी एकता नहीं हुई, उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा में जरुर एकता हो गई थी| इसके बावजूद एनडीए 80 में से 65 सीटें जीत गया था|

2019 में लाख कोशिशों के बाद भी विपक्षी एकता नहीं हुई थी, कांग्रेस के यूपीए में सिर्फ 16 दल शामिल थे| जबकि दूसरी तरफ उपेन्द्र कुशवाहा और चंद्रबाबू नायडू के बाहर निकल जाने के बावजूद 17 राज्यों के 38 दल एनडीए में शामिल थे, जिनमें से 20 चुनाव मैदान में थे, जिनके लिए भाजपा ने लोकसभा की 110 सीटें छोड़ी थीं, इसी कारण भाजपा को 37.36 प्रतिशत वोट मिले थे, लेकिन एनडीए को 45 प्रतिशत वोट मिले थे। विपक्ष के जो नेता बार बार कहते हैं कि देश के 62 प्रतिशत वोटर भाजपा के खिलाफ हैं, उन्हें एकजुट करके भाजपा को हराया जा सकता है, वे खुद को ही धोखा दे रहे हैं। क्योंकि 2019 में भी 62 प्रतिशत वोटर मोदी के खिलाफ नहीं था।

पिछली बार भाजपा के साथ रहने वाले नीतीश कुमार इस बार 2019 से भी बेहतर विपक्षी गठबंधन की कोशिश में जुटे हुए हैं| उनका मानना था कि निराशा के दौर से गुजर रही कांग्रेस 2019 से सबक लेकर क्षेत्रीय दलों की शर्तों पर बेहतर गठबंधन के लिए तैयार हो जाएगी, जिसमें बहुमत गैर कांग्रेस दलों का होगा| कांग्रेस इसके लिए तैयार भी दिख रही थी, जब मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा था कि कांग्रेस बिना किसी नेतृत्व के बाकी विपक्षी दलों के साथ मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ने को तैयार है, नेता का चुनाव बाद में कर लिया जाएगा| पी. चिदंबरम ने कह दिया था कि कांग्रेस उन राज्यों में क्षेत्रीय दलों के नेतृत्व में चुनाव लड़ने को तैयार है, जहां वे कांग्रेस से बेहतर स्थिति में है|

कांग्रेस ने नीतीश कुमार को गैर एनडीए दलों से बातचीत का जिम्मा भी सौंपा था, उसी के बाद हर सीट पर भाजपा के मुकाबले एक उम्मीदवार खड़ा करने के फार्मूले पर चर्चा शुरू हुई, जिस पर कांग्रेस भी सहमत लगती थी| लेकिन कर्नाटक विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद स्थिति बदल गई है। अब भले ही 23 जून को पटना में नीतीश कुमार की बुलाई बैठक होगी, जिसमें ममता बनर्जी और केजरीवाल भी शामिल होंगे, लेकिन बैठक से पहले ही संकेत मिलने शुरू हो गए हैं कि कांग्रेस क्षेत्रीय दलों की शर्तें मानने को तैयार नहीं है|

के. चन्द्रशेखर राव तेलंगाना विधानसभा चुनाव तक कोई गठजोड़ नहीं करना चाहते, इसलिए वह 23 जून की बैठक में नहीं आएंगे। अरविन्द केजरीवाल मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव तक कोई गठबंधन नहीं करना चाहते| केजरीवाल ने इन तीनों राज्यों में कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है| राजस्थान में जयपुर के बाद उन्होंने पंजाब से लगते श्रीगंगानगर में रैली कर के कांग्रेस को चुनौती दी है, जहां उन्होंने कांग्रेस को लुटेरों की पार्टी कहा|

इसी तरह मध्यप्रदेश में एक मेयर का चुनाव जीतने के बाद केजरीवाल काफी उत्साहित हैं| मध्यप्रदेश के ग्वालियर में उन्होंने पहली जुलाई को बड़ी रैली रखी है| दिल्ली, पंजाब, गोवा और गुजरात में कांग्रेस को नुकसान पहुंचा कर आम आदमी पार्टी राष्ट्रीय पार्टी बनी है। अपना वोट प्रतिशत बढाने के लिए केजरीवाल मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में उस सिलसिले को जारी रखना चाहते हैं| जिससे भाजपा को ही फायदा होगा, जैसे कि गोवा और गुजरात में हुआ|

केजरीवाल ने इन तीनों राज्यों में मैदान से हटने के लिए कांग्रेस के सामने जो पंजाब और दिल्ली में सभी लोकसभा सीटें उसके लिए खाली छोड़ने की शर्त रखी है, कांग्रेस को वह शर्त मंजूर नहीं| कांग्रेस ने नीतीश कुमार को साफ़ कह दिया है कि केजरीवाल को विपक्षी एकता से बाहर निकालो| अखिलेश यादव, केसीआर और केजरीवाल विपक्षी एकता से बाहर हो जाते हैं, तो फिर यूपीए के दलों के अलावा बैठक में ममता बनर्जी और नीतीश कुमार ही नए होंगे|

अखिलेश यादव, केसीआर और केजरीवाल वे तीनों नेता है, जो पिछले एक साल से तीसरे मोर्चे की कवायद करते रहे हैं| इनके साथ चौथी नेता ममता बनर्जी थीं, जो सागरदिघी विधानसभा उपचुनाव हारने के बाद कांग्रेस के प्रति नरम पड़ी, क्योंकि सागरदिघी मुस्लिम बहुल क्षेत्र है और वहां कांग्रेस का उम्मीदवार जीत गया| हालांकि जीतने के बाद कांग्रेस का वह एमएलए तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गया है| लेकिन बंगाल में मुस्लिमों का कांग्रेस की तरफ जाना ममता बनर्जी को खतरे की घंटी लगता है| उसके जीते हुए विधायक को तृणमूल कांग्रेस में शामिल किए जाने से कांग्रेस भी ममता से खफा है| तो भले ही ममता बनर्जी 23 जून की मीटिंग में आए, लेकिन उनका झुकाव भी क्षेत्रीय दलों के तीसरे मोर्चे की ओर है, ताकि उन्हें बंगाल में कांग्रेस और कम्युनिस्टों से किसी तरह का चुनावी गठबंधन न करना पड़े|

केजरीवाल, केसीआर, अखिलेश यादव और ममता बनर्जी से कांग्रेस की तल्खियों के चलते ऐसी कोई संभावना नहीं दिखती कि देश भर में भाजपा के मुकाबले एक उम्मीदवार पर सहमति बनेगी| लाचार नीतीश कुमार अब इन समस्याओं का हल निकालने के लिए 20 जून को स्टालिन से मिलने चेन्नई जा रहे हैं। स्टालिन यूपीए का हिस्सा ही नहीं, बल्कि सोनिया और राहुल गांधी के अत्यधिक नजदीक भी हैं|

नीतीश कुमार चाहते हैं कि या तो स्टालिन अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके कांग्रेस को परिस्थितियों के साथ समझौता करने को तैयार करें, नहीं तो फिर क्षेत्रीय दलों का तीसरा मोर्चा बनाने के सिवा कोई चारा नहीं बचेगा| स्टालिन के बाद नीतीश कुमार यूपीए के घटक नेताओं हेमंत सोरेन और शरद पवार पर भी दबाव बनाएंगे| इसके पीछे की एक रणनीति यह है कि विपक्षी एकजुटता के भीतर एक तीसरा मोर्चा भी तैयार किया जाए, जिसमें अखिलेश यादव, केसीआर, केजरीवाल और ममता तो शामिल हो हीं, इनके अलावा शरद पवार, स्टालिन, हेमंत सोरेन और वह खुद यानि नीतीश कुमार भी शामिल हों, जो कांग्रेस पर प्रेशर ग्रुप का काम करे|


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं।

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