आचार्य मसूरी ! ये कैसे अर्जुन हैं?
आचार्य ! हमने सुना था कि एकलव्य ने आपको केवल मन से गुरु माना था तथा मिट्टी के गुरु को गुरु मानकर सर संधान किया और प्रिय शिष्य अर्जुन से बड़ा धनुर्धर बन गया।
आचार्य मसूरी, प्रशासनिक द्रोणाचार्य! आपकी दीक्षा में कहां कमी रह गई कि गुंडे और बदमाश जो व्यवहार अक्सर सड़कों पर करते हैं, वही व्यवहार आपके दीक्षित शिष्य आज के भारत में कर रहे हैं।
गुरुदेव! आपके दीक्षित शिष्य तो युद्ध के मैदान में भी मर्यादा रखनेवाले युधिष्ठिर, अर्जुन, कर्ण प्रथम पंक्ति के योद्धा रहे थे क्या दुर्योधन जैसे योद्धाओं की दीक्षा राजपुत्र होने के कारण जो छाया मिलती है उस कारण उद्दंड ही रह गये? यह तो हमने सुना था कि मसूरी आश्रम से ज्ञान प्राप्त मनीषी संविधान के प्रावधानों का पवित्र पालन करते हैं, फिर ये राजनेताओं और नौकरशाहों का गठजोड़ इस राष्ट्र को भ्रमित क्यों करता है ?
आचार्य! अगर कोई बच्चा उद्दंड हो जाता है तो लोग उसकी शिकायत करने उसके पिता के पास जाया करते थे या गुरु के पास। यह उस युग की बात है जब तक भारत में नवशिक्षा के प्रवर्तक लार्ड मैकाले भारत मे विलायती शिक्षा लागू नही किये थे। विद्यार्थी गुरुकुल से पढ़ाई करके आते थे। उन्हें समाज की संस्कृति और लोकव्यवहार का सम्यक ज्ञान होता था।
माननीय! यह भी समझ से बाहर है कि चंद सवालों के उत्तर रटने वालों को सर्वज्ञ मानने की धौलपुर हाउस में कौन सी कला है? क्या इस कला के कलाविदों की विद्वत्ता का परीक्षण नही होना चाहिए? आचार्य! शिष्य आपके हैं। प्रशंसा आपको मिलती रही है, आप बताएं इन शिकायतों को लेकर आपके पास आने चाहिये, शिक्षा मंत्री के पास जाएं या राष्ट्रपति के पास? 26 अप्रेल 2021 को त्रिपुरा के अगरतला वेस्ट में आपके एक शिष्य ने नौकरशाह होने की धौंस में विवाह मंडप में अपना नया जीवन शुरू करने वाले युवा जोड़ी की खुशियों को मसला, कुचला और रौंद डाला। सनातन संस्कृति में विवाह संपन्न कराने वाले पंडित का मान बहुत ऊंचा होता है, उसे भी अपमानित किया गया। लगा कि जिला मजिस्ट्रेट काम के तनाव में रहे होंगे। हो सकता है वे सनातन संस्कृति से अनभिज्ञ रहे हों? हेंकड़ी तब भी नही गई जब सशर्त माफी मांगी। आप अपनी कानूनी जगह पर ठीक भी हो सकते हो लेकिन सामाजिक न्याय में सही तो नही थे।आचार्य वैर्य! आपके एक नौकरशाह शिष्य ने छत्तीसगढ़ के सूरजपुर में एक कारनामा और कर दिया। गुरुदेव! लोकडाउन अवधि में अपने वृद्ध पिता के लिए दवाई के लिए जाने वाले युवा के साथ कलेक्टर की गाड़ी में सवार आपके शिष्य ने सड़क पर उतरकर अभद्रता तो खुद की, पिटाई पुलिस वालों से करवा दी।
माननीय! भारत की आम जनता के व्यय से सरकार जिन लोगों पर अंधाधुंध पैसा बहाती है उन लोगों की ऐसी कौन सी उपलब्धियां हैं जिसे भारतीय प्रशासनिक सेवा कवचित” लोग ही कर सकते हैं? कानून बनाने वाले नौकरशाह और राजनेता। खानेवाला भांजा और परोसनेवाला मामा। भारत के राजा आम आदमी को अपमान की घूंट और डंडे की मार तो कोई ऐरा गैरा नत्थू खैरा या पुलिस या प्रशासन का कोई भी दे जाता है, इस लोकतंत्र में यह प्रश्न भी उठना स्वाभाविक है कि जब राजनीति के भ्रष्ट लोग अरबों रुपये पर हाथ साफ कर रहे होते है, तब आपके हाथ मे क्या होता है? जब इस देश मे भ्रष्टाचार पर रोक लगाने की प्रक्रिया चल रही होती है तब नौकरशाहों के बच्चे महंगे स्कूलों में या विदेशों में पढ़ने की योजना किस आधार पर बनाते हैं? देश मे नक्सली लोग कैसे बनते हैं? देश मे अराजकता किसके कारण बढ़ती है? देश मे मिलावट खोरी कैसे पनपती हैं?देश मे कमीशन खोरी कैसे बढ़ती है।
आचार्य! शिष्य अगर युधिष्ठर या अर्जुन हो तो प्रशंसा आपकी, यदि शिष्य दुर्योधन हो तो? कृपया यह पोस्ट आप तक पहुचे तो भारत के उस भारत के बारे में सोचना जिसने कोरोना काल मे असह्य दर्द सहे, परिवार में कई मार गए, किसी को उपचार न दे पाए , किसी को ऑक्सीजन या रेमदिसिविर। जब 800-900 की इंजेक्शन रेमदिसिविर बाज़ार में 40 हजार 50 हज़ार में बिकी, जब बीमार को 4 किलोमीटर दूर ले जाने के लिए एम्बुलेंस वाले 8 से 10 हज़ार मांग रहे थे, प्रभो! आप किस तपस्या में लीन थे। इन सवालों का जवाब लेने किस के पास जाएं?डर तो ये भी है कि आपके आश्रम के शिष्य न जाने किस वेश में मिल जांय।।
लेखक,
पार्थसारथि थपलियाल