मनोज रौतेला की रिपोर्ट :
दिल्ली : नाजी तानाशाह अडोल्फ हिटलर के मगरमच्छ की मौत हो गयी है. रूस की राजधानी मास्को में चिड़ियाघर में हुई मौत. मगरमच्छ का नाम नाम सैटर्न था. सेकण्ड वर्ल्ड वार के समय जर्मनी के शहर बर्लिन में बमबारी में यह किसी तरह बच गया था. रूसी लेखक बोरिस अकुनिन ने इसे हिटलर का पालतू मगरमच्छ बताया था. हालांकि इसके कुछ ठोस सबूत नहीं मिले हैं.
चिडियागढ़ प्रशासन के अधिकारियों ने बताया की अधिक उम्र होने की वजह से मौत हो गयी. अभी सैटर्न की उम्र 84 साल थी। बताया जाता है मगरमच्छ का जन्म अमेरिका में हुआ था. लेकिन इसके मालिक ने इसे बर्लिन चिड़ियाघर को उपहार में दे दिया था. उस समय जानवरों को उपहार में दिया जाता था।
1943 में सेकण्ड वर्ल्ड वॉर हुआ तो उस समय इसकी जान बच गयी बमबारी में। इसके तीन साल बाद यह ब्रिटिश जवानों को मिला उन्होंने इसे रूस को यानी तब सोवियत संघ को सौंप दिया। तब से रूस के शहर मास्को के चिड़ियाघर में बंद था.
मगरमच्छ प्रेमी था तानाशाह हिटलर-
पिछले दिनों हिटलर की 75वीं हार की सालगिरह के मौके पर मगरमच्छ सैटर्न जिंदा था. बताया जाता है कि इस मगरमच्छ का जन्म मिसिसिपी यानी अमेरिका के जंगलों में 1936 को हुआ था. नवंबर 1943 में इसे पकड़कर बर्लिन लाया गया था. इसके तीन साल बाद ये ब्रिटिश सैनिकों को मिला था. मास्को ज़ू के वेटनरी डॉक्टर दिमित्री वैसिलयेव ने बताया है कि इस बात में कोई शक नहीं है कि हिटलर मगरमच्छ प्रेमी था.
एक थ्योरी के मुताबिक ये अंधेरे बेसमेंट के कचरे वाले नाले में पड़ा मिला था. एक दूसरी कहानी के मुताबिक वो हिटलर के जंगली जानवरों के पिंजरे में मिला था. मास्को की ज़ू का सबसे उम्रदराज जानवर था यह मगरमच्छ। बताया जाता है कि ये मगरमच्छ मास्को के ज़ू का सबसे उम्रदराज जानवर था. इसके पहले कई बार उसने मौत को चकमा दिया था. 1980 में ज़ू की छत का कंक्रीट का एक टुकड़ा इसके ऊपर गिरते-गिरते बचा था. उस हादसे में इस मगरमच्छ की जान बाल-बाल बची थी.
एक बार ज़ू घूमने आए एक शख्स ने इसके सिर पर पत्थर से हमला किया था. हमले में उसे गंभीर चोट आई थी. महीनों तक उसका मेडिकल केयर चला था.
कहा जाता है कि जब इस मगरमच्छ के लिए नया एक्वेरियम बना था तो इसने 4 महीनों तक खाना नहीं खाया था. 2010 में ऐसा ही उसने एक साल तक के लिए किया. बाद में वो खाने लगा. ज़ू के लोगों ने मगरमच्छ की मौत पर शोक व्यक्त किया है.