: कर्नाटक में भाजपा की हार और कांग्रेस की जीत ने तेलंगाना में मुख्यमंत्री और भारत राष्ट्र समिति के सर्वेसर्वा के. चन्द्रशेखर राव के लिए दोहरी चुनौती खड़ी कर दी है। केसीआर को इस बात का भी डर है कि तेलंगाना में जमीनी स्तर पर काफी मजबूत हो चुकी भाजपा के बाद अब कहीं कांग्रेस उनके मुस्लिम वोट बैंक में सेंध न लगा दे, जैसे कांग्रेस ने कर्नाटक में जेडीएस के मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगायी। वहीं दूसरी ओर भाजपा का भी डर सता रहा है कि कहीं वह कर्नाटक की तरह आक्रामक रूप से तेलंगाना के चुनावी मैदान में न उतर जाए।
तेलंगाना में इसी साल नवबंर में विधानसभा चुनाव प्रस्तावित हैं। केसीआर लगतार दो बार से तेलंगाना की सत्ता पर काबिज हैं। ऐसे में सत्ता विरोधी लहर उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती है। गौरतलब है कि केसीआर ने जून 2014 में तेलंगाना के गठन के बाद ही मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली थी।
लगातार तीसरी बार सत्ता में आने के लिए केसीआर अपने कुछ लोकप्रिय चुनावी वादों पर ध्यान केन्द्रित कर रहे हैं, जिसमें किसानों के लिए निवेश समर्थित रायतु बंधु योजना, गरीबों को 2 बीएचके सस्ती आवास योजना के तहत आवास आवंटन और अनुसूचित जातियों के लिए बड़े पैमाने पर निवेश समर्थित दलित बंधु योजना शामिल हैं। केसीआर भले ही लोकप्रिय चुनावी वादों की बात करें, लेकिन सरकार में भ्रष्टाचार उनका पीछा नहीं छोड़ रहा है। दिल्ली में कथित शराब घोटाले में फंसी केसीआर की बेटी और एमएलसी कविता की गिरफ्तारी कभी भी हो सकती है। अपनी बेटी के बचाव में केसीआर कहते हैं कि भाजपा विरोधी राजनैतिक दलों को एकजुट करने की उनकी मुहिम की वजह से उन्हें परेशान करने के लिए उनकी बेटी को निशाना बनाया जा रहा है।
भाजपा दक्षिण के अपने एकमात्र राज्य कर्नाटक को भले ही हार गई हो लेकिन दक्षिण के ही राज्य तेलंगाना में भाजपा केसीआर को तगड़ी चुनौती देना चाहती है। गौरतलब है कि 119 सदस्यों वाली तेलंगाना विधानसभा में भाजपा को 2018 के चुनावों में सिर्फ एक सीट और सात प्रतिशत वोट हासिल हुए थे। लेकिन उसके कुछ ही माह बाद हुए 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने तेलंगाना से लोकसभा की 4 सीटें अपने नाम कर केसीआर को तगड़ा झटका दिया था। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 21 विधानसभा सीटों पर बढ़त बना ली थी और अपना वोट प्रतिशत 19 प्रतिशत तक पहुंचा दिया। उसके बाद 2020 के ग्रेटर हैदराबाद नगर निकाय चुनाव में भाजपा ने कुल 150 वार्डो में से 38 वार्डो पर 34.56 प्रतिशत वोट शेयर के साथ उम्मीदों से बेहतर प्रदर्शन कर केसीआर को साफ संदेश दिया कि वह भाजपा को हल्के में लेने की भूल न करें। इस बार भाजपा का संगठन जमीनी स्तर पर मजबूत है और केसीआर की पार्टी को कड़ी चुनौती देने की स्थिति में है। भाजपा ने 2023 के इस विधानसभा चुनाव में ‘मिशन 90’ का लक्ष्य रखा है।
तेलंगाना में अपना असर बढ़ाने के लिए भाजपा ने लोकसभा चुनाव के बाद से ही तैयारी शुरू कर दी थी। राज्य से सिर्फ चार सांसद होने के बावजूद मोदी मंत्रिमंडल में सिकंदराबाद से चुने गए जी. किशन रेड्डी को कैबिनेट में जगह दी गई। तेलंगाना में लगातार जमीनी स्तर पर काम रही भाजपा ने नवंबर, 2020 में दुब्बक सीट पर हुए उपचुनाव में टीआरएस के इस गढ़ में जीत दर्ज कर बीआरएस को जोरदार झटका दिया। इस सीट को टीआरएस का गढ़ इसलिए कहा जाता है क्योंकि जिस सिद्दीपेट जिले में यह सीट है, केसीआर इसी जिले के रहने वाले हैं।
इसके बाद भाजपा ने दूसरा तगड़ा झटका नवंबर, 2021 में हुजुराबाद सीट पर हुए उपचुनाव में केसीआर को दिया। 2014 के बाद से टीआरएस इस सीट पर कभी नहीं हारी थी। इसके बावजूद भाजपा ने इस सीट पर 23,000 से अधिक वोटों से जीत हासिल की। नवंबर, 2022 में मानुगोड विधानसभा सीट के लिए हुए उपचुनाव में टीआरएस ने जीत तो हासिल की लेकिन इसके लिए मुख्यमंत्री को खुद और अपनी पार्टी की पूरी मशीनरी यहां लगानी पड़ी। इस उपचुनाव में टीआरएस और भाजपा के बीच सिर्फ 4.5 फीसद वोटों का अंतर रहा। इन सभी चुनाव परिणामों ने बताया कि भाजपा तेलंगाना में एक ताकत के रूप में उभर रही है और कांग्रेस को हटाकर खुद दूसरी बड़ी पार्टी बन चुकी है।
तेलंगाना में अपनी संभावनाओं को मजबूत करने के लिए भाजपा की नजर टीआरएस और कांग्रेस के असंतुष्ट नेताओं पर भी है और उनको अपने पाले में लाने की रणनीति पर भी काम कर रही है। भाजपा तेलंगाना के स्वास्थ्य मंत्री रहे और केसीआर से नाराज इटाला राजेन्द्रन को अपनी पार्टी में शाामिल कराने में सफल रही। इटाला राजेंद्रन ने भाजपा से उपचुनाव लड़ा और जीत हासिल की। मध्य तेलंगाना में उनकी अच्छी पकड़ मानी जाती है। टीआरएस के सांसद रहे कोंडा विश्वेश्वर रेड्डी और नरसिंह गौड़ा भी भाजपा में आ चुके हैं। भाजपा नेताओं का दावा है कि जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव नजदीक आएंगे, भाजपा में शामिल होने वाले दूसरी पार्टी के नेताओं की संख्या और बढ़ेगी।
टीआरएस और भाजपा में जारी कड़े संघर्ष के बीच कांग्रेस ने अपनी खोई हुई जमीन पाने के लिए भरसक प्रयास शुरू कर दिए हैं। कर्नाटक चुनाव में मतदान से दो दिन पहले 8 मई को प्रियंका गांधी ने हैदराबाद पहुंचकर युवा संघर्ष रैली को संबोधित किया और चंद्रशेखर राव पर जमकर हमला बोला। तेलगांना में टीआरएस और भाजपा में जारी लड़ाई के बीच कांग्रेस भी खेल में बने रहने की हरसंभव कोशिश कर रही है। कर्नाटक परिणामों से उत्साहित कांग्रेस ने तेलंगाना मे अपने खोए हुए जनाधार को फिर से अपने पाले में लाने की कोशिश तेज कर दी है।
तेलगांना कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष ए. रेवंत रेड्डी राज्यव्यापी ‘परिवर्तन यात्रा’ कर कांग्रेस के लिए समर्थन मांग रहे हैं, और मतदाताओं से कांग्रेस को एक मौका देने की पुरजोर अपील कर रहे हैं। कांग्रेस आरोप लगा रही है कि “प्रधानमंत्री मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कई बार केसीआर पर बिजली खरीद समझौतों और मिशन काकातिया में भ्रष्टाचार का आरोप लगाया। यहां तक कि कालेश्वरम और लिफ्ट सिंचाई परियोजना को ‘मुख्यमंत्री का एटीएम’ तक कहा। लेकिन तमाम सबूतों के बावजूद उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। यह बताता है कि भाजपा और टीआरएस एक दूसरे के साथ है। कांग्रेस की कोशिश तेलंगाना में मुस्लिम समर्थन हासिल करना है जैसे कर्नाटक में किया है।
हालांकि कांग्रेस के लिए तेलंगाना में कर्नाटक फार्मूला दोहराना इतना आसान भी नहीं होगा। केसीआर के भाजपा विरोध और फिर से सरकार बनाने की संभावना के बाद मुसलमान केसीआर को पूरी तरह छोड़ देंगे, इसकी संभावना कम है। लेकिन यह भी तय है कि कांग्रेस तेलंगाना में जितनी मजबूत होगी, टीआरएस उतनी कमजोर होगी क्योंकि दोनों दलों का वोट बैंक एक ही है। ऐसे में भाजपा भी चाहती है कि कांग्रेस प्रदेश मे मजबूत हो जिससे वोट के बंटवारे के चलते केसीआर को पटकनी दी जा सके।
कर्नाटक जीत के बाद कांग्रेस को उम्मीद है कि तेलंगाना में वह बेहतर प्रदर्शन करेगी। कर्नाटक गंवा चुकी भाजपा जहां तेलंगाना जीतकर दक्षिण के एक राज्य में अपनी सरकार बनाना चाहती है, वहीं दिल्ली में भाजपा और कांग्रेस विरोध की धुरी बनने की चाह रखने वाले तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव हर हाल में तेलंगाना जीत कर दिल्ली में अपने कदम बढ़ाना चाहते हैं। परिणाम किसके पक्ष में आयेगा ये तो नवंबर में पता चलेगा लेकिन इस बार तेलंगाना में लड़ाई त्रिकोणीय होगी, इसका संकेत अभी से मिलने लगा है।