नई दिल्ली : अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस, बीजेपी जैसे राष्ट्रीय दलों ने ही नहीं, बल्कि सपा जैसे क्षेत्रीय दल ने भी रणनीति तैयार करनी शुरू कर दी है। यूपी में विधानसभा और लोकसभा मिलाकर पिछले चार बड़े चुनाव हार चुके सपा प्रमुख अखिलेश यादव किसी बड़े चमत्कार का इंतजार कर रहे हैं। आमतौर पर बीजेपी के खिलाफ राजनीति करने वाले अखिलेश अब कांग्रेस के साथ भी नहीं दिख रहे। इस वजह से सियासी गलियारों में सवाल खड़े हो रहे हैं कि क्या आम आदमी पार्टी, बीआरएस जैसे दलों की तरह अखिलेश यादव भी कांग्रेस पर भरोसा नहीं कर पा रहे और क्या वे भी थर्ड फ्रंट बनाने में जुट गए हैं?
बीजेपी ही नहीं, कांग्रेस पर भी हमलावर अखिलेश
हाल के दिनों में अखिलेश यादव ने बीजेपी ही नहीं, बल्कि कांग्रेस पर भी कई हमले बोले हैं। पिछले दिनों अमेठी गए अखिलेश यादव ने एक ट्वीट करके खलबली मचा दी। उन्होंने लिखा कि अमेठी से हमेशा वीआईपी जीते और हारे हैं, लेकिन फिर भी यहां ऐसा हाल है तो बाकी प्रदेश का क्या कहना। सपा प्रमुख के इस ट्वीट के बाद से संभावना जताई जाने लगी कि आगामी लोकसभा चुनाव में सपा यहां से अपना प्रत्याशी उतारने की तैयारी कर रही है। यदि ऐसा होता है तो कांग्रेस के लिए बड़ा झटका माना जा सकता है। सालों से अमेठी और रायबरेली गांधी परिवार का गढ़ रही है। रायबरेसी से जहां अब भी सोनिया गांधी सांसद हैं, तो वहीं अमेठी से पिछली बार राहुल को हार मिली थी। सपा भी दोनों सीटों पर अपने उम्मीदवार नहीं उतारती है। ऐसे में अखिलेश यदि इस बार दोनों सीटों पर उम्मीदवार उतारते हैं तो यह तय है कि कांग्रेस को बड़ा नुकसान झेलना पड़ सकता है।
सीबीआई, ईडी ऐक्शन पर भी कांग्रेस पर बरसे अखिलेश
पिछले कई दिनों से ईडी और सीबीआई के निशाने पर कई विपक्षी दल हैं। आम आदमी पार्टी के जहां दिग्गज नेता शराब घोटाले में फंसे हुए हैं तो वहीं, आरजेडी नेता लालू प्रसाद यादव का पूरा परिवार लैंड फॉर जॉब स्कैम में केंद्रीय जांच एजेंसियों की रडार पर है। ईडी और सीबीआई की कार्रवाई को लेकर विपक्षी दलों ने केंद्र सरकार पर निशाना साधा है। वहीं, अखिलेश यादव ने इस पर भी कांग्रेस को आड़े हाथों लिया। गुजरात के अहमदाबाद में एजेंसियों की कार्रवाई पर सपा प्रमुख ने कहा कि रेड की परंपरा की शुरुआत कांग्रेस ने की थी, जिस रास्ते पर बीजेपी अब चल रही है। सीबीआई, ईडी और आईटी सरकार के इशारे पर काम करती है। उन्होंने यह भी कहा कि महात्मा गांधी के देश में बुलडोजर ने अहिंसा की जगह ले ली है। अखिलेश के इन बयानों से साफ है कि अब तक कांग्रेस पर बड़े हमले बोलने से बचने वाले अखिलेश ने देश की सबसे पुरानी पार्टी को भी निशाने पर लेना शुरू कर दिया है।
‘थर्ड फ्रंट’ का ही हिस्सा होंगे अखिलेश यादव?
कई क्षेत्रीय दल इन दिनों विपक्षी एकजुटता की बात करने वाली कांग्रेस के साथ जाना नहीं चाह रहे। पिछले दिनों तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर की पार्टी बीआरएस के बैनर तले कई छोटे दल एक रैली में साथ दिखाई दिए, जिसके बाद थर्ड फ्रंट की अटकलें लगने लगीं। इस रैली में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान, केरल सीएम पिनराई विजयन, सपा प्रमुख अखिलेश यादव में शामिल हुए। इस मंच से विपक्षी दलों ने संभावित थर्ड फ्रंट की ताकत दिखाते हुए केंद्र सरकार पर जमकर निशाना साधा। इसके बाद, केंद्रीय जांच एजेंसियों की कार्रवाई पर भी कई दलों के नेताओं ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिख थर्ड फ्रंट की संभावनाओं पर और मुहर लगा दी। कई राजनीतिक जानकार मानते हैं कि अलग-अलग राज्यों में सिमटे क्षेत्रीय दल अब एक साथ आकर कांग्रेस के बिना नया फ्रंट बनाने की जुगत में लग गए हैं, जिससे 24 के चुनाव में जनता के सामने नया विकल्प रखा जा सके। इसमें यूपी की मुख्य विपक्षी पार्टी समाजवादी पार्टी भी शामिल है। वहीं, सूत्रों के अनुसार, अखिलेश यादव ने भी साफ कर लिया है कि वे इस बार कांग्रेस, बसपा जैसे दलों के साथ गठबंधन नहीं करेंगे। इसके बजाए वे छोटे दलों के साथ ही अलायंस करके चुनावी मैदान में उतरेंगे। अखिलेश ने यही रणनीति 2022 के विधानसभा चुनाव में भी बनाई थी और सपा की सीटों की संख्या में काफी वृद्धि देखने को मिली थी। ऐसे में यह साफ है कि अखिलेश कांग्रेस से दूर रहकर थर्ड फ्रंट पर ज्यादा भरोसा कर रहे हैं।