नई दिल्ली l जेआरडी टाटा ने साल 1932 में एयर इंडिया को टाटा एयरलाइंस के नाम से शुरू किया था। टाटा एयरलाइंस 1946 में इसका नाम बदलकर एयर इंडिया हो गया और 1953 में यह सरकार की कंपनी हो गई। जेआरडी टाटा के टाइम पर एयर इंडिया, दुनिया की प्रतिष्ठित विमानन कंपनियों में शामिल थी लेकिन आज यह इतनी ज्यादा खस्ता हाल हो चुकी है कि सरकार को इसे बेचना पड़ा। सरकार अगर कुछ और साल एयर इंडिया को चलाती तो रोज 20 करोड़ रुपये का नुकसान होता। लिहाजा सरकार ने इसे बेच दिया और बोली टाटा सन्स की इकाई ने 18000 करोड़ रुपये में जीती।
दिलचस्प बात यह है कि आज से 89 साल पहले जब जेआरडी टाटा ने टाटा एयरलाइंस को शुरू किया था तो शुरुआती तौर पर 2 लाख रुपये की पूंजी लगाई गई थी। टाटा ग्रुप के चेयरमैन एमिरेट्स रतन टाटा के लिए, यह एक पारिवारिक विरासत की वापसी का प्रतीक है और उन्होंने कहा भी है कि आज अगर जेआरडी टाटा होते तो बहुत खुश होते। इसकी वजह है कि जेआरडी टाटा एयर इंडिया का राष्ट्रीयकरण होने नहीं देना चाहते थे। लाख कोशिशों के बावजूद कंपनी सरकारी होने से बच नहीं सकी। अब यह फिर टाटा की हो ही गई।
नेविल विन्सेंट के साथ मिलकर की थी शुरू
आरएम लाला द्वारा टाटा पर लिखी गई बायोग्राफी Beyond The Last Blue Mountain के मुताबिक, जेआरडी टाटा और उनके दोस्त नेविल विन्सेंट ने मिलकर टाटा एयरलाइंस को शुरू किया था। जेआरडी भारत के पहले पायलट थे, उन्हें 1929 में पायलट का लाइसेंस मिला था। विन्सेंट एक हैवीवेट बॉक्सर और ब्रिटिश रॉयल एयर फोर्स में फाइटर पायलट थे। दोनों ने 2 लाख रुपये की शुरुआती पूंजी के साथ टाटा एयरलाइंस को शुरू किया। ग्रुप के तत्कालीन चेयरमैन दोराबजी टाटा को इसके लिए मनाने में महीनों लग गए।
15 अक्टूबर 1932 को पहली उड़ान
टाटा एयरलाइंस ने पहली उड़ान 15 अक्टूबर 1932 को भरी। इस फ्लाइट में कराची से मुंबई तक डाक ले जाई गई। पहला एयरक्राफ्ट 20000 रुपये की लागत का De Havilland Puss Moth था। इसमें केवल एक पैसेंजर सीट थी। अमीर बिजनेसमैन इसे 50 रुपये में चार्टर्ड करते थे। 1946 में दूसरे विश्व युद्ध के वक्त विमान सेवाएं रोक दी गई थीं। जब फिर से विमान सेवाएं बहाल हुईं तो 29 जुलाई 1946 को टाटा एयरलाइंस एक पब्लिक लिमिटेड कंपनी बन गई और इसका नाम बदलकर उसका नाम एयर इंडिया लिमिटेड कर दिया गया। दो साल बाद मुंबई और कायरो, जेनेवा, लंदन के बीच इंटरनेशनल सेवाएं शुरू करने के लिए एयर इंडिया इंटरनेशनल लिमिटेड बनाई गई। इसमें 49 फीसदी भागीदारी सरकार ने ले ली। इसका शुभंकर महाराजा था।
1953 में राष्ट्रीयकरण
एयर-इंडिया इंटरनेशनल कर्मचारियों, रखरखाव और सेवाओं के साथ दुनिया की सर्वश्रेष्ठ एयरलाइनों में से एक बन गई। जवाहरलाल नेहरू की तत्कालीन सरकार ने जब 1953 में एयर इंडिया का राष्ट्रीयकरण करने का प्रस्ताव किया, तो जेआरडी ने इसके खिलाफ जोरदार लड़ाई लड़ी। लेकिन जब सरकार ने 11 एयरलाइनों का राष्ट्रीयकरण करने का फैसला किया, तो इसमें समूह कुछ नहीं कर सकता था। इनमें से एयर इंडिया को छोड़कर सभी को भारी नुकसान हो रहा था और उन्हें एक ही सरकारी निगम में विलय कर दिया गया था। सरकार ने एयर इंडिया को खरीदने के एवज में टाटा समूह को 2.8 करोड़ रुपये दिए थे।
1977 तक चेयरमैन रहे जेआरडी
एयर इंडिया के राष्ट्रीयकरण के बाद, विमानन क्षेत्र के साथ समूह का जुड़ाव जेआरडी के माध्यम से ही था, जिन्होंने 25 वर्षों तक यानी 1977 तक प्रमुख सरकारी एयरलाइन के चेयरमैन के रूप में कार्य किया। राष्ट्रीयकरण क 4 दशकों तक भारत के घरेलू विमानन क्षेत्र पर राज करने वाली एयर इंडिया के लिए 90 के दशक के मध्य में परेशानी शुरू हुई। 1994-95 में निजी कंपनियों के लिए विमानन क्षेत्र के खुलने और निजी कंपनियों द्वारा सस्ते टिकटों की पेशकश करने के साथ, एयर इंडिया धीरे-धीरे अपनी बाजार हिस्सेदारी खोनी शुरू कर दी। पहली बार अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली राजग सरकार ने अपने व्यापक निजीकरण और विनिवेश को बढ़ावा देने की पहल के तहत, 2000-01 में एयर इंडिया में सरकार की 40 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचने की कोशिश की थी।
दूसरी और तीसरी बार कब की सरकार ने बेचने की कोशिश
जून 2017 में आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति (सीसीईए) ने एयर इंडिया और उसकी पांच सहायक कंपनियों के रणनीतिक विनिवेश के विचार को सैद्धांतिक मंजूरी दे दी। मार्च 2018 में सरकार ने एयर इंडिया में 76 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदने के लिए निवेशकों से रूचि पत्र आमंत्रित किए। इसके तहत शेष 26 प्रतिशत सरकार के पास होती। बोली लगाने की आखिरी तारीख 14 मई थी। लेकिन कोई बोली नहीं मिली।
इसके बाद जनवरी 2020 में सरकार ने एयर इंडिया के निजीकरण के लिए रूचि पत्र (ईओआई) जारी किया। सरकार ने कहा कि वह 100 फीसदी हिस्सेदारी बेच कर एयर इंडिया से पूरी तरह बाहर निकलेगी। इस सौदे में एयर इंडिया एक्सप्रेस का 100 प्रतिशत और एआईएसएटीएस का 50 प्रतिशत भी शामिल होगा। बोली लगाने की अंतिम तिथि 14 दिसंबर तक पांच बार बढ़ाई गई। अक्टूबर 2020 में सरकार ने सौदे को आकर्षक बनाया; निवेशकों को एयर इंडिया के कर्ज की राशि के एक हिस्से की अदायगी की शर्त में ढील दी। दिसंबर 2020 ने सरकार ने कहा कि बोलियां मिली हैं। तीसरी कोशिश में आखिरकार एयर इंडिया अक्टूबर 2021 में बिक गई।
आसान नहीं होगी टाटा समूह की राह
एयर इंडिया की घर वापसी 153 साल पुराने टाटा समूह के लिए एक खुशी का क्षण है। लेकिन कर्ज में डूबी एयर इंडिया को फिर से खड़ा करने की राह आसान नहीं होने वाली है। वह भी तब जब एविएशन सेक्टर अभी मुश्किल वक्त का सामना कर रहा है। कोविड19 की वजह से पैदा हुए हालातों ने एविएशन इंडस्ट्री को तगड़ा झटका दिया है और इंडस्ट्री को रिकवर होने में 2023-24 तक का वक्त लगने का अनुमान है। वहीं एयर इंडिया काफी खस्ताहाल है, कंपनी पर 31 अगस्त 2021 तक एयर इंडिया पर 61,562 करोड़ रुपये का कर्ज था। विनिंग बिडर टाटा सन्स 15,300 करोड़ रुपये का कर्ज वहन करेगी। इसके बाद एयर इंडिया पर 46,262 करोड़ रुपये का कर्ज बचेगा।
रतन टाटा भी कह चुके हैं कि एयर इंडिया को फिर से खड़ा करना काफी मेहनत भरा होगा। समूह को विमानन कंपनी की खोई हुई प्रतिष्ठा वापस लाने और इसे प्रतिस्पर्धा में बनाए रखने के लिए अभी और पूंजी लगानी होगी। 18000 करोड़ रुपये में इसे खरीदा जाना तो इसकी शुरुआत भर है। अब यह देखना बाकी है कि यह समूह अपने एयरलाइंस व्यवसाय के भविष्य की रूपरेखा कैसे बनाती है। अभी टाटा समूह की विमानन कंपनियों में टाटा एसआईए एयरलाइंस है, जो सिंगापुर एयरलाइंस और टाटा का जॉइंट वेंचर है और विमानन कंपनी विस्तारा का परिचालन देखता है। इसके अलावा समूह, एयर एशिया के साथ जॉइंट वेंचर में एयर एशिया इंडिया के जरिए भी विमानन सेवाएं दे रहा है।
खबर इनपुट एजेंसी से