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अजयेंद्र रहेंगे त्रिवेंद्र!

त्रिवेंद्र सरकार में कई ऐसे बड़े चेहरे हैं जो पूर्ववर्त की अपनी ही पार्टी की सरकार के लिए परेशानी का सबब बने रहते थे। उनकी मनमर्जी से न केवल पार्टी वरन् प्रदेश का मुखिया को भी काफी असहजता का सामना करना पड़ता था। पर त्रिवेंद्र सिंह रावत के कार्यकाल में इन बड़े चेहरों की मनमर्जियों पर लगाम लगी हुई है। वर्तमान में ये बड़े चेहरे न तो पार्टी के लिए और न ही सरकार के लिए किसी तरह की मुसीबत खड़ी कर रहे हैं।

Frontier Desk by Frontier Desk
19/01/20
in अपराध संसार, मुख्य खबर
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उमा शंकर तिवारी


  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात रही सकरात्मक, त्रिवेद्र सरकार के कामकाज पर संतोष
  • उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बदले जाने की खबरों को हाईकमान ने कोरी कल्पना बताया
  • भाजपा हाईकमान ने दिए स्पष्ट संकेत, त्रिवेंद्र सरकार कर रही है अच्छा काम
  • कुंभ के ऐतिहासिक आयोजन के लिए त्रिवेंद्र सरकार को हरसंभव मदद का आश्वासन

देहरादून। राष्ट्रीय व प्रादेशिक मीडिया में आए दिन जो एक खबर सुर्खियों में रहती है वो यह कि ‘जल्द बदला जाएगा उत्तराखंड नेतृत्व का चेहरा’। हाईकमान का मानना है कि मीडिया में चल रही इस तरह की खबरों से संगठन की छवि को धक्का लगता है। इसको गंभीरता से लेते हुए हाईकमान ने स्पष्ट संकेत दिया है कि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ही रहेंगे।

पिछले दिनों एक राष्ट्रीय अखबार की खबर ने सियासी गलियारों में खूब धमक मचाई। खबर थी कि दिल्ली चुनाव के बाद भाजपा शासित कुछ प्रदेशों के मुखिया बदले जाएंगे। खबर की हलचल सबसे ज्यादा उत्तराखंड में देखी गई। समाचार के लिंक को शेयर करते हुए सोशल मीडिया में उत्तराखंड नेतृत्व परिवर्तन को लेकर पूरी बहस छिड़ गई। कुछ जानकारों जिसमें मीडिया के लोग ज्यादा शामिल थे उन्होंने अगले संभावित सीएम के चेहरों पर भी चर्चा कर डाली। कुछ ने तो यहां तक बता डाला कि सीएम भौगोलिक दृष्टि से होगा या जातीय संतुलन को लेकर। पर इस खबर ने सबसे ज्यादा जिसे परेशान किया वो था पार्टी हाईकमान।

डॉ विनय सहस्रबुद्धे, राज्यसभा सांसद और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, भाजपा

प्रदेश की भाजपा सरकार त्रिवेंद्र सिंह रावत के नेतृत्व में अच्छा काम कर रही है। जनहित में राज्य सरकार द्वारा बनाई जा रही नीतियों के परिणाम सकारात्मक आ रहे हैं। सरकार नई सोच के साथ आने वाले समय में जनहित के कार्य करती रहेगी।

लोकसभा चुनाव में ऐतिहासिक सफलता पाने के बाद भाजपा ने कुछ राज्यों में सत्ता गंवा दी। जानकारों का कहना है कि केंद्र की मोदी सरकार व उसके कार्यों को लोग पसंद कर रहे हैं पर राज्य की सरकारें जनता के बीच में लोकप्रियता हासिल नहीं कर पा रही है। जिन राज्यों में पार्टी ने सत्ता गंवाई वहां की प्रमुख वजह मुखिया के खिलाफ प्रदेश में माहौल होना है। ऐसे में मीडिया में खबरे उडऩे लगी कि दिल्ली चुनाव के बाद संगठन अपने प्रदेश के नेतृत्व में परिवर्तन करेगा। इस खबर ने सबसे ज्यादा सुर्खियां उत्तराखंड में बटोरी। क्योंकि यहां पार्टी में मुख्यमंत्री के दावेदारों की एक लंबी फेहरिस्त हैं, वो किसी भी हाल में सत्ता की कमान अपने हाथों में लेना चाहते हैं। यही कारण है कि इन दावेदारों के समर्थक आए दिन मीडिया में इस तरह की खबर को उछालते रहते हैं। पार्टी हाईकमान ने इसे गंभीरता से लेते हुए ऐसी खबरों को कोरी कल्पना करार दिया है।

त्रिवेंद्र सिंह रावत ने 17 मार्च 2017 को उत्तराखंड के नौंवे मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। त्रिवेंद्र सरकार के कार्यकाल को लगभग तीन वर्ष पूरे होने वाले हैं। इन तीन वर्षों में त्रिवेंद्र सरकार पर भ्रष्टाचार के कोई आरोप नहीं लगे। इससे पूर्ववर्त की सरकारों के कार्यकाल के पहले ही वर्ष में भ्रष्टाचार व वित्तीय अनियमितता की खबरें सुर्खियों पर छा जाती थी, पर तीन वर्ष का समय गुजर जाने के बाद भी अभी तक इस तरह की कोई खबर मीडिया पर नहीं आई। और न ही व्यक्तिगत रूप से मुख्यमंत्री के चेहरे पर अभी तक कोई आरोप लग पाए हैं। कुल मिलाकर त्रिवेंद्र सिंह अपनी छवि साफ व स्पष्ट रखने में कामयाब रहे हैं।

त्रिवेंद्र सरकार में कई ऐसे बड़े चेहरे हैं जो पूर्ववर्त की अपनी ही पार्टी की सरकार के लिए परेशानी का सबब बने रहते थे। उनकी मनमर्जी से न केवल पार्टी वरन् प्रदेश का मुखिया को भी काफी असहजता का सामना करना पड़ता था। पर त्रिवेंद्र सिंह रावत के कार्यकाल में इन बड़े चेहरों की मनमर्जियों पर लगाम लगी हुई है। वर्तमान में ये बड़े चेहरे न तो पार्टी के लिए और न ही सरकार के लिए किसी तरह की मुसीबत खड़ी कर रहे हैं।

मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के पक्ष में एक बात बहुत ही मजबूती के साथ जाती है वो यह कि केंद्र को इस सरकार के कारण अभी तक किसी भी असहज परिस्थिति का सामना नहीं करना पड़ा। तीन वर्ष गुजर जाने के बाद भी अभी तक कोई ऐसी स्थिति नहीं आई जब केंद्र को त्रिवेंद्र सरकार के कारण किसी भी तरह की परेशानी या असहजता का सामना करना पड़ा हो जबकि पूर्ववर्त की सरकारों के कारण केंद्र को कई बार सफाई देना पड़ा।

त्रिवेंद्र सरकार के कार्यकाल के दौरान हाल में संपन्न लोकसभा चुनाव में पार्टी ने एक मिथक को तोड़ दिया। राज्य स्थापना के बाद प्रदेश में जिस पार्टी की सरकार रहती है केंद्र में उस पार्टी के सांसदों पर प्रतिनिधित्व नहीं रहता। पर इस बार पांचों सांसद भाजपा के चुने गए। वहीं पंचायत चुनावों में पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन किया। यह पक्ष भी त्रिवेंद्र सिंह रावत के पक्ष में मजबूती के साथ जाता है।

भाजपा हाईकमान समय-समय पर त्रिवेंद्र सिंह रावत के इन पक्षों का गंभीरता से मूल्यांकन करता आ रहा है। ऐसे में वह कुछ लोगों की उड़ाई गई खबरों को अब ज्यादा तूल नहीं देना चाहता। और न ही चाहता कि इस तरह की खबरें सुर्खियां बने। यही कारण है कि इस संबंध में आने वाले कुछ दिनों में भाजपा हाईकमान के तरह से स्पष्ट संदेश दिए जाए कि त्रिवेंद्र सिंह रावत अपना पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा करेंगे।

त्रिवेंद्र का विकल्प नहीं भाजपा के पास
उत्तराखंड भाजपा में यूं तो कई बड़े चेहरे हैं पर जब बात मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के विकल्प की आती है तो मौजूदा समय में सभी चेहरे हाशिये पर चले जाते हैं। बात अगर गढ़वाल के नेताओं से करें तो इस समय सतपाल महराज, विजय बहुगुणा, हरक सिंह रावत, तीरथ सिंह रावत और धन सिंह रावत ये बड़े चेहरे पार्टी में हैं। जिसमें तीरथ सिंह रावत को छोडक़र सभी उत्तराखंड सरकार में मंत्री है। पार्टी अगर इन तीनों में से किसी चेहरे को तवज्जों देती है तो उत्तराखंड भाजपा में ही इसका विरोध शुरू हो जाएगा, क्योंकि ये कुछ वर्ष पहले ही कांग्रेस से भाजपा में आए हैं। धन सिंह रावत को लेकर हाईकमान का मानना है कि अभी अनुभव की कमी है। और तीरथ सिंह रावत को केंद्र से राज्य में शिफ्ट करने का कोई ईरादा नहीं है। गढ़वाल से एक और बड़ा चेहरा केंद्र सरकार में मानव संसाधन एवं विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक का है उन्हें भी केंद्र से राज्य में लाने के मायने हाईकमान का अपने ही निर्णय पर प्रश्नचिन्ह उठाना है।

कुमाऊं क्षेत्र से बात करें तो यहां से पार्टी के बड़े चेहरे में से एक प्रकाश पंत का निधन हो चुका है, भगत सिंह कोश्यारी महाराष्ट्र के राज्यपाल हैं। यहां से अजय भट्ट का नाम ही त्रिवेंद्र के विकल्प के रूप में मीडिया में सुर्खियां लेता रहता है, पर कुमाऊं से ब्राह्मण चेहरे बशीधर भगत को प्रदेशअध्यक्ष की कमान सौंप हाईकमान ने इस सवाल पर ताला लगा दिया है। इस तरह देखा जाए तो त्रिवेंद्र के विकल्प के रूप में जितने भी अगर-मगर थे सबको साइडलाइन में कर भाजपा हाईकमान ने उन्हें 2022 तक का अभयदान दे दिया है।

प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात ने दिया सकरात्मक जवाब
कुंभ की तैयारियों और कैबिनेट के विस्तार को लेकर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र सिंह मोदी से मुलाकात की। बिजी शेड्यूल होने के बाद भी पीएम ने त्रिवेंद्र सिंह रावत को तय वक्त से ज्यादा समय देते हुए कार्यों की ब्यौरा और तैयारियों को सुना। इस मुलाकात में त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कुंभ समेत कई जानकारियां प्रधानमंत्री के समक्ष रखी। मुलाकात में प्रधानमंत्री से मिले सकरात्मक संकेत त्रिवेंद्र सिंह रावत के कार्यकाल पर खड़े हो रहे सभी प्रश्नचिन्हों को ही खत्म कर दिया।

सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत के सकरात्मक पक्ष

  • ‘मैं ये काम सरकार से करवा सकता हूं’ ऐसे लोगों को साइडलाइन किया जाना।
  • साफ सुथरी छवि के साथ कामकाज और सुशासन का हिमायती होना।
  •  पूर्ववर्त सरकारों की तरह प्रदेश में फलफूल रहे ट्रांसफर व पोस्टिंग धंधे को खत्म करना।
  • जिलाधिकारी व कप्तानों के कामकाज पर सीएम कार्यालय का हस्तक्षेप न होना।
  • सरकार की छवि बिगाडऩे वाले मंत्रियों के विभागों व उनकी मनमानी पर मुख्यमंत्री का सीधा हस्तक्षेप।

मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के नकरात्मक पक्ष

  • मुख्यमंत्री की टीम में भरोसेमंद और मजबूत सहकर्मियों का न होना।
  • सरकार द्वारा किये जा रहे कार्यों को बड़ी पब्लिसिटी न दिलवा पाना।
  • कुछ खास नौकरशाहों पर मुख्यमंत्री की निर्भरता।
  • जनता के साथ सीधे तौर पर संवाद स्थापित न कर पाना।
  • मुख्यमंत्री के कामकाज को लेकर कुछ खास क्षेत्रों तक सिमट जाना।

    डॉ विनय सहस्रबुद्धे


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