नई दिल्ली: राजनीति में कल क्या हो जाए! दावे के साथ नहीं कहा जा सकता है. अब इसे सियासत का धर्म कहिए या फिर मर्म. साथ रहने वाले अलग हो जाते हैं. एक दूसरे का मुंह न देखने की कसम खाने वाले दोस्त हो जाते हैं. राजनीति की माया ही कुछ ऐसी है. देश के सबसे बड़े प्रदेश, उत्तर प्रदेश का यही हाल है. इस हालात पर माया की छाया का भी असर हो सकता है. असर तो वैसे मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव का भी है. इंडिया गठबंधन के सहयोगी दल कांग्रेस और समाजवादी पार्टी में बातचीत बंद है. तय तो था कि साथ मिल कर बीजेपी से लड़ेंगे, लेकिन अब लड़ाई आपस में हो रही है. इसका अंजाम क्या होगा ! ये तो राम जाने !
मध्य प्रदेश का चुनाव प्रचार खत्म कर अखिलेश यादव अब उत्तर प्रदेश में हैं. लोकसभा चुनाव को लेकर समाजवादी पार्टी की नीति और रणनीति बन रही है. पर अब उनका एजेंडा बदल गया है. अब अखिलेश यादव के एजेंडे पर कांग्रेस का साथ नहीं है. उनका फोकस बस अपनी पार्टी की चुनावी तैयारी पर है. इस तैयारी की पहली कड़ी है मज़बूत और जीतने योग्य उम्मीदवार की तलाश. वैसे ये होमवर्क पिंचले तीन महीनों से पार्टी के अंदर चल रहा है.
अखिलेश यादव ने बुलाई पार्टी की मीटिंग
कांग्रेस से मन खट्टा होने के बाद अखिलेश यादव अब लड़ाई अकेले लड़ने के मूड में हैं. इसीलिए अब उनकी नजर उन लोकसभा सीटों पर भी है जिन पर कांग्रेस की भी नजर है. अखिलेश यादव ने अब उन सीटों पर चुनावी तैयारी के लिए पार्टी की मीटिंग बुलाने का फैसला किया है. उनके एक करीबी नेता ने बताया कि दिसंबर के पहले हफ्ते से इस तरह की बैठकें शुरू हो जायेंगी, जिनमें चर्चा होगी कि टिकट किसे दिया जाए. सूत्रों से पता चला है कि समाजवादी पार्टी एक सर्वे भी करा रही है. इस सर्वे से चुनावी मुद्दे के साथ साथ बेहतर उम्मीदवार के बारे में भी पता किया जा रहा है.
कांग्रेस को ‘सबक सिखाने’ का प्लान
अखिलेश यादव ने दो महीने पहले चुनावी तैयारियों को लेकर बैठकें शुरू की थीं. लखनऊ के पार्टी ऑफिस में हर दिन एक या दो सीटों पर मंथन हुआ. अखिलेश यादव ने उन लोकसभा क्षेत्र के नेताओं को नहीं बुलाया जहॉं से कांग्रेस के चुनाव लड़ने की संभावना है. उन दिनों अखिलेश यादव के मन में राहुल गांधी बसे थे. कांग्रेस को सबक सिखाने के लिए ही अब उन्होंने उन सीटों पर भी दिमाग लगाने का फैसला किया है.
कांग्रेस पर दबाव बनाने के लिए अखिलेश यादव अगले महीने कुछ टिकट फाइनल करने के मूड में है. वे चाहते हैं कि कुछ उम्मीदवारों के नाम की घोषणा कर दी जाए. जातीय और क्षेत्रीय समीकरण के हिसाब से ये नाम तय किए गए हैं. इनमें कुछ परिवार के हैं और कुछ पार्टी के.
बस्ती – राम प्रसाद चौधरी
कानपुर देहात – राजाराम पाल
लखनऊ – रविदास मेहरोत्रा
बदॉयू – धर्मेंद्र यादव
मैनपुरी – डिंपल यादव
फिरोजाबाद – अक्षय यादव
फर्रुखाबाद – नवल किशोर शाक्य
लखीमपुर – उत्कर्ष वर्मा और
अयोध्या – अवधेश प्रसाद
अंबेडकरनगर – लालजी वर्मा
कौशांबी – इंद्रजीत सरोज
अखिलेश यादव ने लोकसभा की कुछ सीटें रिजर्व कैटेगरी में रखा है, जहां अभी वे वेट एंड वॉच फार्मूला पर चल रहे हैं. इन सीटों को लेकर उनकी नजर बीजेपी पर है. अगर बीजेपी ने उन सीटों पर अपने सांसदों के टिकट काटे तो वे झट से उन्हें अपना उम्मीदवार बना सकते है.