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यूपी में विपक्षी गठबंधन का कैप्टन बनना चाहते हैं अखिलेश!

Jitendra Kumar by Jitendra Kumar
25/09/23
in राज्य, समाचार
यूपी में विपक्षी गठबंधन का कैप्टन बनना चाहते हैं अखिलेश!
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नई दिल्ली : उत्तर प्रदेश की सियासत में 2024 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) से मुकाबला करने को लेकर विपक्ष गठबंधन की टीम तय है, लेकिन कैप्टन को लेकर तस्वीर साफ नहीं है. INDIA गठबंधन में समाजवादी पार्टी (सपा), राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) और कांग्रेस समेत कई दल शामिल हैं, लेकिन अगुवाई करने को लेकर आपसी रस्साकसी जारी है. सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा है कि पार्टी गठबंधन में सीट मांग नहीं रही बल्कि सीट दे रही है. इस तरह अखिलेश ने साफ कर दिया कि वे ही यूपी में विपक्षी गठबंधन के कैप्टन हैं और सीट शेयरिंग का फॉर्मूला भी वही तय करेंगे. विपक्षी गठबंधन के घटक दलों को कितनी सीटें देनी है, इसका फैसला कांग्रेस-आरएलडी नहीं करेंगी बल्कि सपा करेगी?

लोकसभा चुनाव की तपिश के साथ ही अखिलेश यादव ने अपने सियासी तेवर दिखाने शुरू कर दिए हैं. अखिलेश यादव ने सपा कार्यालय में कार्यकर्ताओं के बीच मीडिया के सवाल पर कहा कि सपा सीट मांग नहीं रही है बल्कि दे रही है. इतना ही नहीं अखिलेश ने राजस्थान विधानसभा चुनाव के लिए सपा के कैंडिडेट के नामों का भी ऐलान कर दिया है तो मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी चुनावी ताल ठोंकने की तैयारी कर रखी है. ऐसे में सपा प्रमुख के बयान को प्रेशर पॉलिटिक्स का माना जा रहा है, क्योंकि सीट शेयरिंग के मुद्दे पर कांग्रेस अभी सहमत नहीं है?

सीट शेयरिंग का फॉर्मूला अपने पास रखना चाहती है SP

उत्तर प्रदेश में विपक्षी गठबंधन INDIA के सहयोगी दल सपा, आरएलडी और कांग्रेस है. आरएलडी यूपी में एक दर्जन लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है तो कांग्रेस ने भी दो दर्जन सीटों को चिन्हित कर रखा है. विपक्षी गठबंधन में दलित नेता चंद्रशेखर आजाद और कृष्णा पटेल की अपना दल भी शामिल हैं, जिन्हें भी कुछ सीटें चाहिए. सूबे में कुल 80 लोकसभा सीटें हैं. यूपी में मुख्य विपक्षी दल होने के नाते सपा सीट शेयरिंग का फॉर्मूला अपने हाथों में रखना चाहती है.

सपा ने यूपी की 80 में से 50 से 55 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रखी है, लेकिन आरएलडी और कांग्रेस की डिमांड के चलते उसके पास 50 से भी कम सीटें बच रही हैं. भले ही गठबंधन में सीट शेयरिंग का फॉर्मूला तय नहीं हुआ हो, लेकिन अखिलेश यादव ने 2024 में चुनाव लड़ने वाले सपा के संभावित नेताओं को हरी झंडी देनी शुरू कर दी है. इसके लिए लोकसभा सीटों पर सपा बकायदा अपने प्रभारियों की भी नियुक्ति कर रही है और वह सपा कार्यालय में लगातार क्षेत्र स्तर पर बैठकें भी कर रहे हैं. ऐसे में सपा कार्यालय पर कार्यकर्ताओं की मौजूदगी में अखिलेश यादव ने ना केवल ये कहा कि सपा गठबंधन में सीट मांग नहीं, बल्कि सीट दे रही है, राजनीतिक माहौल को गरमा दिया है.

सपा की प्रेशर पॉलिटिक्स दांव?

दरअसल, विपक्षी गठबंधन में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी के रूप में है, लेकिन उत्तर प्रदेश में सपा मुख्य विपक्षी दल है. कांग्रेस के साथ यूपी में सपा ने जरूर गठबंधन कर रखी है, लेकिन सूबे में अखिलेश खुद को अहम रोल में रखना चाहते हैं. वो इस बात को जानते हैं कि कांग्रेस और आरएलडी एक बार अगर यूपी में मजबूत हो गईं तो फिर उनके लिए सियासी चुनौती बढ़ जाएगी. इसकी वजह यह है कि मुस्लिम वोटर्स किसी समय कांग्रेस के साथ हुआ करते थे, जो 90 के दशक में उससे छिटकर सपा के साथ जुड़ गया. ऐसे में अगर मुस्लिम वोटबैंक कांग्रेस और आरएलडी के साथ चला गया तो फिर उसे दोबारा से जोड़ पाना आसान नहीं होगा. इसीलिए अखिलेश यादव आरएलडी और कांग्रेस को उतनी ही सियासी स्पेस देने के मूड में जितने में उनकी सियासी जमीन बची रहे.

यही नहीं सपा यूपी से बाहर भी अपना सियासी विस्तार करने में जुटी है. पार्टी मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी चुनाव लड़ने की तैयारी में है. सपा ने मध्य प्रदेश में चार सीटों पर अपने कैंडिडेट के नाम का ऐलान कर दिया है तो राजस्थान के लिए भी पार्टी ने रविवार को ऐलान किया कि राजगढ़-लक्ष्मणगढ़ विधानसभा से पूर्व विधायक सूरजभान धानका प्रत्याशी होंगे. मुंबई में हुई विपक्षी गठबंधन की बैठक में सीट शेयरिंग को लेकर सपा ने बात उठाई थी और कहा था कि जल्द से जल्द फॉर्मूला तय हो जाए, लेकिन कांग्रेस की मंशा है कि पांच राज्यों के चुनाव के बाद सीट बंटवारे को लेकर बात हो.

अखिलेश यादव की रणनीति है कि अभी सीट बंटवारा होने पर यूपी में कांग्रेस को सीट देने के बदले उन्हें राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ चुनाव के लिए भी सीटें मिल जाएंगी. जबकि, कांग्रेस की स्ट्रैटेजी यह है कि विधानसभा चुनाव के बाद सीट बंटवारा होगा तो राज्यों में सीट देनी नहीं पड़ेंगी. ऐसे में अब अखिलेश यादव ने जिस तरह का दांव चला है, उसके जरिए साफ तौर पर यह बात समझी जा सकती है कि इसके पीछे कहीं कांग्रेस पर दबाव बनाने की रणनीति तो नहीं है. देखना होगा कि शह-मात के इस खेल में कौन भारी पड़ता है?

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