लखनऊ: भाजपा सहित सभी दल दलित वोट बैंक पर नजरें गढ़ाए हैं। तीसरे चरण का चुनाव खत्म होते ही यह लड़ाई और तेज हो गई है। ऐसा यूं ही नहीं हुआ। दरअसल, चौथे और पांचवें चरण की 27 सीटों में से 26 पर भाजपा काबिज है। इसमें कन्नौज भी शामिल है। लखनऊ, कानपुर जैसी सीटों को छोड़ दें तो चौथे-पांचवें चरण की लगभग सभी सीटों पर दलित वोटों का आंकड़ा 23 से 38 फीसदी तक है। भाजपा ने इस वोट बैंक के लिए दलित नेताओं की फौज उतार दी है।
तीन चरणों में प्रदेश की 26 लोकसभा सीटों पर मतदान हो चुका है। चौथे और पांचवें चरण की जिन 27 सीटों पर क्रमश 13 और 20 मई को मतदान होना है, वो भाजपा के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। इनमें से 2019 में पार्टी को सिर्फ रायबरेली सीट पर हार मिली थी। तब लोकसभा चुनाव पर पुलवामा के घटनाक्रम का भी प्रभाव था। ऐसे में विभिन्न दलों का जातीय गुणा-गणित भी गड़बड़ा गया था।
भाजपा ने सभी दलित चेहरे मैदान में उतारे
इस दुर्ग में सेंधमारी के लिए विपक्ष ने संविधान को हथियार बनाते हुए भाजपा के 400 पार के नारे को इसी से जोड़ दिया है। विपक्ष के दांव की काट और दलित वोटरों को अपनी ओर आकर्षित करने को भाजपा ने मुहिम और तेज कर दी है। दलित बस्तियों में पार्टी सघन अभियान चला रही है। इन जातियों के सामाजिक सम्मेलन भी किए जा रहे हैं। प्रदेश सरकार के मंत्री असीम अरुण, राज्यसभा सांसद बृजलाल, मंत्री बेबीरानी मौर्य, एमएलसी लालजी प्रसाद निर्मल, एससी मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष रामचंद्र कनौजिया सहित तमाम दलित चेहरों को पार्टी ने मोर्चेबंदी के लिए लगाया है। एससी मोर्चा के जिलाध्यक्षों को दलित बस्तियों में डेरा डालने के साथ ही रैलियों में दलितों की भागीदारी बढ़ाने का जिम्मा सौंपा गया है।
कई सीटों पर 38 फीसदी दलित वोट
चौथे और पांचवें चरण की 27 सीटों पर दलित मतदाता निर्णायक स्थिति में हैं। कई सीटें ऐसी हैं, जहां 38 फीसदी तक दलित मतदाता हैं। इनमें मिश्रिख और मोहनलालगंज जैसी सुरक्षित सीटें शामिल हैं जबकि बाराबंकी, हरदोई, कौशांबी सीटों पर दलित वोटर 32 फीसदी या उससे अधिक हैं। अमेठी, रायबरेली, बहराइच, जालौन, हमीरपुर, झांसी, बांदा, फैजाबाद, धौरहरा, इटावा सीटें ऐसी हैं, जहां दलित वर्ग के वोटर 25 से 30 फीसदी के बीच हैं।