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महाराष्ट्र में BJP और अजित पवार के बीच नहीं ऑल इज वेल, ये हैं 5 कारण

Jitendra Kumar by Jitendra Kumar
22/07/24
in राजनीति, राज्य
महाराष्ट्र में BJP और अजित पवार के बीच नहीं ऑल इज वेल, ये हैं 5 कारण
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नई दिल्ली: महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के ऐलान में अभी तीन महीने का समय बाकी है, लेकिन सियासी बिसात बिछाई जाने लगी है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पुणे की रैली में शरद पवार को भ्रष्टाचार का सरगना, तो उद्धव ठाकरे को औरंगजेब फैन क्लब का नेता बताते हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी के अभियान का आगाज कर दिया है. अमित शाह पुणे से दिल्ली भी नहीं पहुंचे थे कि डिप्टी सीएम अजित पवार ने स्थानीय निकाय चुनाव में अकेले लड़ने का ऐलान कर दिया है. इतना ही नहीं सीट शेयरिंग को लेकर पहले से एनडीए में खींचतान चल रही और अब अजित पवार के एकला चलो की राह पर कदम बढ़ाए जाने के बाद सवाल उठने लगे हैं कि क्या महाराष्ट्र एनडीए में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है?

पिछले साल अजित पवार अपने चाचा शरद पवार का तख्तापलट कर एनसीपी के 40 विधायकों के साथ एनडीए का हिस्सा बन गए थे. लोकसभा चुनाव के मद्देनजर पश्चिमी महाराष्ट्र के इलाके में बीजेपी ने अपने सियासी समीकरण को दुरुस्त करने के लिए अजित पवार को अपने साथ मिलाया था. शिंदे सरकार में अजित डिप्टी सीएम बने, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में सियासी मुफीद साबित नहीं हुए. इसी का नतीजा था कि मोदी के मंत्रिमंडल में अजित पवार की पार्टी एनसीपी को कैबिनेट मंत्री का पद नहीं मिल सका और अब विधानसभा चुनाव से पहले जिस तरह से शह-मात का खेल शुरू हो गया है. ऐसे में वो पांच कारण हैं, जिनसे यह संकेत मिलते है कि बीजेपी और अजित पवार के बीच ऑल इज वेल नहीं है.

निकाय चुनाव अकेले लड़ने का फैसला

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले एनसीपी प्रमुख अजित पवार ने बड़ा ऐलान किया.अजित पवार ने रविवार को पिंपरी चिंचवाड़ शहर में पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि हमने लोकसभा चुनाव गठबंधन में लड़ा था और विधानसभा चुनाव भी गठबंधन में लड़ेंगे. उन्होंने कहा कि हम लोकसभा और राज्य विधानसभा में सहयोगी हैं, लेकिन हम स्थानीय निकाय चुनाव में अकेले चुनाव लड़ने के लिए स्वतंत्र हैं. ऐसे में मैं ऐलान करना चाहता हूं कि एनसीपी निकाय चुनाव स्वतंत्र रूप से लड़ेगी.स्थानीय निकाय चुनावों में अकेले उतरने का अजित पवार का बयान ऐसे समय में आया है जब उन्हें लेकर एनडीए में सवाल उठ रहे हैं. अजित पवार ने भले ही स्थानीय निकाय चुनाव अकेले लड़ने की बात कही हो, लेकिन उसे विधानसभा चुनाव से भी जोड़ा जा रहा है.

सीट शेयरिंग फॉर्मूले पर कैसे बनेगी बात?

महाराष्ट्र में बीजेपी नेतृत्व वाले एनडीए (महायुती) में एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी शामिल है. इसके अलावा कई छोटे दल भी सहयोगी दल के तौर पर एनडीए में हैं. विधानसभा चुनाव में सीट शेयरिंग को लेकर जिस तरह दावे किए जा रहे हैं, उससे भी यह साबित होता है कि अजित पवार के लिए राह एनडीए में आसान नहीं है. राज्य की 288 विधानसभा सीटें हैं, जिसमें बीजेपी 160 सीट पर चुनाव लड़ने का दावा कर रही है, तो एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी 100-100 सीटें मांग रही है. इस तरह से सीट शेयरिंग को लेकर मामला उलझ गया है.

बीजेपी जिस तरह 160 सीटें मांग रही है, उसके चलते सबसे ज्यादा मुश्किल एनसीपी को होनी है. लोकसभा चुनाव में एनडीए में बेहतर स्ट्राइक रेट शिंदे की पार्टी का रहा है, जिसके चलते बीजेपी हरहाल में शिवसेना को अपने साथ रखना चाहेगी. ऐसे में सबसे बड़ी टेंशन अजित पवार की है क्योंकि उनके पास 40 विधायक हैं और शिंदे के पास 38 विधायक हैं. लोकसभा की तरह विधानसभा में शिवसेना को सीटें मिलती हैं तो उससे अजित पवार तैयार नहीं होंगे. बीजेपी लोकसभा चुनाव के बाद से अजित पवार से ज्यादा शिंदे को सियासी अहमियत दे रही है, उससे ही संकेत मिल रहे हैं.

मोदी कैबिनेट में एनसीपी को जगह नहीं

केंद्र में तीसरी बार बनी मोदी सरकार में अजित पवार की पार्टी को जगह नहीं मिली है. मोदी मंत्रिमंडल के गठन के दौरान अजित पवार की पार्टी को राज्यमंत्री के पद का ऑफर दिया गया था, जिसे एनसीपी ने स्वीकार नहीं किया था. अजित पवार की मांग कैबिनेट मंत्री पद की थी, जिसे बीजेपी ने स्वीकार नहीं किया. हालांकि, बीजेपी ने एक लोकसभा सीट जीतने वाले जीतन राम मांझी को कैबिनेट का पद दिया था. इसके अलावा बीजेपी ने अपने सहयोगी जेडीएस के नेता कुमारस्वामी और एलजेपी के चिराग पासवान को कैबिनेट मंत्री बनाया. जेडीयू और टीडीपी को भी कैबिनेट का पद दिया, तो दो सीटें जीतने वाले जयंत चौधरी को स्वतंत्र प्रभार मंत्री बनाया गया है. ऐसे में एनसीपी को कैबिनेट पद न देना अजित पवार के लिए साफ संदेश है, जिसे लेकर तमाम कयास लगाए जा रहे हैं.

लोकसभा चुनाव में सियासी लाभ नहीं

बीजेपी ने 2024 लोकसभा चुनाव में जिस सियासी लाभ के उम्मीद में अजित पवार के साथ हाथ मिलाया था, वो पूरा नहीं हो सका बल्कि सियासी नुकसान उठाना पड़ गया है. बीजेपी ने महाराष्ट्र की 48 लोकसभा सीटों में से 45 प्लस सीटें जीतने का लक्ष्य रखा था, क्योंकि 2019 में एनडीए 41 सीटें जीतने में सफल रही थी. 2024 में एनडीए को 17 सीटें ही मिल सकीं और इंडिया गठबंधन को 30 सीटें मिलीं. एनडीए को 24 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा और बीजेपी 23 सीटों से घटकर 9 सीट पर पहुंच गई. अजित पवार की पार्टी महज एक सीट ही जीत सकी. बीजेपी को पश्चिमी महाराष्ट्र में किसी तरह का कोई लाभ नहीं मिल सका. इसके बाद से अजित पवार को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं. एकनाथ शिंदे अपने कोटे की 14 में से 7 सीटें जीतने में सफल रहे हैं. बीजेपी के लिए अब अजित पवार से ज्यादा एकनाथ शिंदे अहम हो गए हैं.

आरएसएस के निशाने पर अजित पवार

लोकसभा चुनाव नतीजे के बाद से आरएसएस के निशाने पर डिप्टी सीएम अजित पवार हैं. संघ के मुखपत्र ऑर्गेनाइजर के एक लेख में साफतौर पर अजित पवार के साथ गठबंधन करने पर सवाल उठाया गया है. संघ के स्वयंसेवक रतन शारदा ने इस लेख में कहा कि महाराष्ट्र में अजित पवार के साथ हाथ मिलाने से बीजेपी को झटका लगा है, सवाल उठता है कि जब बीजेपी और शिंदे शिवसेना के पास पर्याप्त बहुमत है तो अजित को साथ क्यों लिया? इतना ही नहीं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े एक मराठी मैग्जीन ने बीजेपी का अजित पवार की पार्टी राष्ट्रवादी एनसीपी के साथ हुए गठबंधन को लेकर आपत्ति जताई और लोकसभा चुनाव में मिली हार के लिए अजित पवार को साथ लेने की वजह बताया है. इसी लेख में अजित पवार से गठबंधन तोड़ने की सलाह बीजेपी को दी गई है. इस तरह संघ के निशाने पर अजित पवार हैं और बीजेपी पर भी उन्हें लेकर दबाव बढ़ता जा रहा है.

अजित पवार के साथ रहते हुए बीजेपी के लिए भ्रष्टाचार के मुद्दे पर आक्रमक होना असहज करता है. शरद पवार को अमित शाह ने जिस तरह से भ्रष्टाचार का सरगना बताया है, उससे साफ है कि बीजेपी ने विधानसभा चुनाव में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर लड़ने का प्लान बनाया है. लेकिन, अजित पवार के एनडीए में रहते बीजेपी भ्रष्टाचार के मुद्दे को उठाएगी तो खुद भी सवालों के घेरे में होगी. अजित पवार पर भ्रष्टाचार के कई आरोप लगे हैं और बीजेपी विपक्ष में रहते हुए उन्हें घेरती रही है. अब विपक्ष इसे लेकर ही बीजेपी को घेरता रहा है. इस तरह से संकेत साफ है कि बीजेपी और अजित पवार के बीच भले ही रिश्ते हों, लेकिन कितने दिनों तक बरकरार रहेगा, यह कहना मुश्किल है?

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