प्रयागराज: गंभीर रोगों की जांच में अकसर डॉक्टर एमआरआई कराने की सलाह देते हैं। भारत में गरीब जनता के लिहाज से एमआरआई की फीस बहुत ज्यादा है। उसकी बड़ी वजह यह है कि यहां प्रति दस लाख जनसंख्या में एमआरआई मशीन का औसत 1.5 आता है, जबकि विकसित देशों में यह 10 है। मतलब हमारे यहां 10 लाख की जनसंख्या में दो एमआरआई मशीन भी मुहैया नहीं है। लेकिन गुड न्यूज यह है कि इलाहाबाद यूनिवर्सिटी की टीम ने देश का पहला सुपरकंडिक्टिंग मेगनेट सिस्टम डेवलप किया है, जोकि एमआरआई मशीन का अहम हिस्सा है।
अभी तक भारत में एमआरआई मशीनों का 100 प्रतिशत आयात होता था, खासकर चीन से। लेकिन अब इस सिस्टम के डेवलप होने से भारत में ही एमआरआई मशीनें बनने लगेंगी। यह स्वदेशी सिस्टम बनाया है इंटर यूनिवर्सिटी एक्सीलरेटर सेंटर (IUAC) ने। इस पूरे अभियान की अगुआई इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अविनाश चंद्र पांडेय ने की है।
सस्ती मशीनें मिलेंगी और करोड़ों बचेंगे
IUAC ने 1.5 टेस्टला (टी) सुपरकंडक्टिंग एमआरआई मेगनेट सिस्टम डेवलप किया है। इसे एमआरआई सिस्टम का दिल भी कहा जा सकता है। टीम की इस उपलब्धि से न केवल भारत में स्वदेशी कम लागत वाली एमआरआई मशीनें बन सकेंगी, बल्कि भारत उन गिनेचुने देशों में शामिल हो गया है जहां पर ये मशीनें बनाई जाती हैं। कुल मिलाकर इन्हें एक्सपोर्ट करके विदेश मुद्रा का भी लाभ होगा। एक मशीन की कीमत भारत को पौने दो से तीन करोड़ रुपये तक पड़ती है। इस लिहाज से देश की काफी विदेशी मुद्रा भी बचेगी।
गांवों को होगा सबसे ज्यादा फायदा
प्रोफेसर पांडेय ने बताया, ‘कुछ उद्यमी इस स्वदेशी तकनीक की मदद से कमर्शल एमआरआई मेगनेट बनाने में रुचि ले रहे हैं। क्रायोजन फ्री तकनीक और आर्टिफिशल इंटेलिजेंस के साथ इसे जोड़कर हल्के, सस्ते और पूरे शरीर को स्कैन करने वाले ऐसे स्कैनर बन पाएंगे जिन्हें मोबाइल वैन में लगाकर गांव-गांव में भेजा जा सकेगा।’ इसकी वजह से ग्रामीण हेल्थकेयर सिस्टम में बहुत लाभ होगा।