नई दिल्ली : अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन पिछले दिनों कीव पहुंचे. इतने ताकतवर देश का युद्ध प्रभावित देश पहुंचना मामूली बात नहीं. जाहिर है कि इसके बाद रूस-यूक्रेन युद्ध में भारी उठापटक हो सकती है. इसी बात को लेकर भड़के हुए रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अमेरिका के साथ अपना परमाणु करार सस्पेंड कर दिया. साल 2010 में न्यू स्टार्ट न्यूक्लियर ट्रीटी नाम से हुई इस संधि का मकसद था दोनों बड़े देशों को न्यूक्लियर वेपन की होड़ रोकना. इससे पहले भी कई संधियां हुई और टूट चुकी थीं. तो मौजूदा समय में यही अकेली ट्रीटी थी, जो रूस-अमेरिका को और ज्यादा हथियार बनाने से रोक सकती थी. फिलहाल ये भी स्थगित हो चुकी है.
कहां और कैसे रखा जाता है न्यूक्लियर वेपन्स को?
परमाणु हथियार अपने-आप में जितने खतरनाक हैं, उनकी स्टोरेज का इतिहास उतना ही रहस्यमयी है. ज्यादातर देशों के लिए ये उनकी सबसे बड़ी सैन्य ताकत है. यही वजह है कि जब कोई देश खुद को परमाणु शक्ति संपन्न बताता है, बाकी देश कहीं न कहीं उससे संभलकर बात करने लगते हैं. इतने कीमती और खतरनाक खजाने की हिफाजत भी पक्की रहती है. अमेरिका की बात करें तो उसने अपने ज्यादातर परमाणु हथियारों को पांच राज्यों में 80 फुट गहराई में पनडुब्बियों के भीतर रखा है.
बाकी हथियार एयर फोर्स के बेस में वेपन स्टोरेज एंड सिक्योरिटी सिस्टम के तहत ऐसे कमरों में रखे हुए हैं, जहां तक पहुंचना लगभग मुमकिन है. इसमें सैन्य सुरक्षा भी होती है और तकनीकी सुरक्षा भी. वॉल्ट तक पहुंचने के लिए पासवर्ड्स के कई घेरे होते हैं, जिन्हें तोड़ा नहीं जा सकता.
शीत युद्ध के दौरान बढ़े परमाणु हादसे
कड़ी सुरक्षा के बावजूद परमाणु हथियार गायब होते रहे. दूसरे विश्व युद्ध के बाद से लेकर शीत युद्ध के दौरान न्यूक्लियर वेपन्स से जुड़े हादसे लगातार बढ़ते गए. यहां तक कि इसे बाकायदा एक नाम दे दिया गया. इन घटनाओं को ब्रोकेन एरोज कहा जाता है. अब तक ब्रोकेन एरोज की कुल 32 घटनाएं हो चुकीं. इसमें किसी हथियार का एक्सिडेंटली लॉन्च हो जाना भी शामिल है और खो जाना भी. पचास से दशक से लेकर अब तक 6 न्यूक्लियर वेपन गायब हुए, जिनमें से 3 का अब तक पता नहीं लग सका.
कब-कब खोया?
5 फरवरी 1958 को जॉर्जिया के टीबी आईलैंड में गिरा मार्क 15 थर्मोन्यूकिलयर बम आज तक नहीं मिल सका. इसे विमान का वजन कम करने के लिए गिराया गया था ताकि विमान की सेफ लैंडिंग हो सके. गिराए जाने के बाद जब खोजा गया तो वेपन गायब था. इसकी खोज में कई सीक्रेट मिशन चले. यहां तक कि पानी के भीतर सोनार डिवाइस की भी मदद ली गई ताकि तरंगें पकड़ी जा सकें, लेकिन बम का कहीं पता नहीं लग सका. आखिर खोज अभियान टर्मिनेट करते हुए उसे खोया हुआ मान लिया गया.
जापानी समुद्री तट के पास खोया बम
जापान के समुद्री तट के पास दिसंबर 1965 में गिरा थर्मोन्यूक्लियर बम नहीं मिल सका. ये एक्टिव बम ट्रांसपोर्ट होने के दौरान समुद्र में गिर गया था. यहां तक कि उसके साथ अमेरिकी नेवी का एक अफसर लेफ्टिनेंट डगलस वेब्स्टर भी गायब हो गया. जमीन पर उसका सिर्फ हेलमेट मिल सका.
इसी तरह से 22 मई 1968 को ग्रीनलैंड के थुले एयरबेस पर गिरे B28FI थर्मोन्यूक्लियर बम का भी पता नहीं लग सका. जापान वाले हादसे के बाद अमेरिकी सरकार के भीतरखाने काफी हलचल हुई थी. सब दूसरे विश्व युद्ध में जापान पर गिराए गए बम को लेकर घबराए हुए थे. इसी डर से लंबा-चौड़ा सर्च ऑपरेशन भी चला. कई इंटरनेशनल रिपोर्ट्स कहती हैं कि इसपर भारी पैसे खर्च हुए, लेकिन कहीं विश्वसनीय आंकड़ा नहीं मिलता.
कैसे खो जाते हैं न्यूक्लियर बम?
कई बार ये हथियार या तो गलती से ड्रॉप हो जाते हैं. या फिर इन्हें इमरजेंसी में गिरा दिया जाता है. अंदाजा लगाया जाता है कि ये आज भी कहीं कीचड़, समुद्र या किसी खेत में दफन होंगे. इस बात का भी डर लगातार बना हुआ है कि ये कभी किसी तरह से फट न जाएं.
यही वजह है कि सरकार ने लंबे समय तक इस बारे में सीक्रेसी बनाई रखते हुए भारी खोजबीन की. आर्मी समेत सारी इंटेलिजेंस एजेंसियां काम में लगीं लेकिन पता नहीं लग सका कि हथियार आखिर कहां गए. जॉइंट कमेटी ऑन एटॉमिक एनर्जी के शोध के दौरान लगातार हो रहे परमाणु हादसों के बारे में पता लगा, तब जाकर सरकार ने माना कि तीन न्यूक्लियर बम गायब भी हो चुके हैं. जनता को तब भी इस बात की भनक नहीं लग सकी. बहुत बाद में इन परमाणु बमों की जानकारी को अमेरिकी डिफेंस डिपार्टमेंट ने सार्वजनिक किया.
क्या यूक्रेन के पास भी है परमाणु ताकत?
जाते हुए एक बार ये भी जानते चलें कि जिस रूस-यूक्रेन लड़ाई से न्यूक्लियर वॉर की आशंका लगाई जा रही है, उसमें यूक्रेन के पास क्या परमाणु ताकत है भी. और है तो कितनी? यूक्रेन के सैन्य खजाने में अलग से न्यूक्लियर वेपन नहीं रहे, लेकिन रूस से उसे विरासत में मिले. सोवियत संघ से नब्बे के दशक में अलग और आजाद हुए यूक्रेन के पास वो सारा भंडार आ गया, जिसका निर्माण उसकी टैरेटरी में हो रहा था. इससे यूक्रेन के पास कोई छोटा-मोटा खजाना नहीं आया, बल्कि परमाणु ताकत के तौर पर वो दुनिया का तीसरा बड़ा देश बन गया. हालांकि ये नब्बे की बात है. इसके बाद से कई देशों ने चोरीछिपे अपनी परमाणु ताकत बढ़ाई. यहां तक कि उत्तर कोरिया के बारे में भी कहा जाता है कि छोटा होने के बावजूद न्यूक्लियर पावर के मामले में वो देश काफी ताकतवर होगा.