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हर दिन को जीना: जीवन, मृत्यु और आत्मचिंतन की एक भावपूर्ण यात्रा

Jitendra Kumar by Jitendra Kumar
30/05/25
in मुख्य खबर, साहित्य
हर दिन को जीना: जीवन, मृत्यु और आत्मचिंतन की एक भावपूर्ण यात्रा
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डॉ तनु जैन डॉ. तनु जैन
आध्यात्मिक वक्ता द्वारा लिखित
सिविल सेवक, रक्षा मंत्रालय


नई दिल्ली: हाल ही में एक घटना ने मुझे भीतर तक झकझोर दिया। एक प्रिय पारिवारिक मित्र का असमय निधन हुआ। वह एक सफल करियर, सुंदर परिवार और समृद्ध बचपन की स्वामिनी थीं। उनका स्वर आज भी मेरे भीतर गूंजता है, जैसे वे अब भी यहीं हैं। उनकी उम्र, उनके हालात – सब कुछ सोचकर मैं हिल गई हूँ। उनका परिवार, उनके बच्चे… कैसे आगे बढ़ पाएँगे इस जीवन में?

यह घटना मेरे भीतर एक गहरा प्रश्न छोड़ गई
क्या मैं मृत्यु के लिए तैयार हूँ? हम जीते हैं जैसे कल हमारे पास सुनिश्चित है। हम योजनाएँ बनाते हैं, संबंधों में उलझते हैं, कार्यों में खो जाते हैं और भूल जाते हैं कि मृत्यु हर क्षण हमारे साथ चल रही है।

कोई ज्योतिषी मृत्यु की सटीक घड़ी नहीं बता पाया है। कोई संत, कोई विद्वान नहीं जानता कि मृत्यु कब आएगी। वह अचानक दस्तक देती है। बिना पूछे आती है। और फिर सब शांत हो जाता है। तो क्या हम जीते हैं इस सच्चाई के साथ? नहीं। हम ऐसे जीते हैं जैसे हम अमर हैं।
“असल प्रश्न यह नहीं है कि मृत्यु के बाद जीवन है या नहीं। असल प्रश्न यह है कि क्या मृत्यु से पहले आप सच में जिए?” – ओशो

इस क्षण ने मुझे सिखाया कि मृत्यु की सच्ची तैयारी केवल एक है, हर दिन को जागरूकता, उद्देश्य और सच्चाई के साथ जीना।
ना कि दो साल बाद या जब ज़िंदगी “ठीक” हो जाएगी। आज… अभी… इसी क्षण, मैंने खुद से पूछा: क्या मैं हर दिन को वैसे जी रही हूँ, जैसे यह मेरा आखिरी दिन हो सकता है?

बहुत से लोग सलाह देते हैं, सच्चे दिल से भी। पर हर आत्मा को अपनी राह खुद चुननी होती है। जीवन आपका है। हर साँस आपकी है। आपको तय करना होगा कि आप इसे कैसे जीते हैं।

कार्य करें- सिर्फ परिणामों के लिए नहीं, मानसिक संतुलन के लिए कार्य आपको मानसिक संतुलन देता है। यह मन को दिशा देता है। लेकिन राह चुनिए होश से, समझ से। अपनी शक्ति और सीमाओं को पहचानिए। कार्य बोझ नहीं, साधना बन जाए।

रिश्तों में सतर्कता बरतें हर संबंध में शामिल होना ज़रूरी नहीं। केवल वही रिश्ते निभाइए जो आत्मा को छूते हैं। लोगों को मत दौड़िए। अपने सपनों का पीछा कीजिए।
दूसरों की योजनाओं में खुद को मत गुम कीजिए।
अपनी अग्नि को जगाइए, उसे संजोइए।

उद्देश्य पर केंद्रित रहें
हम अपने विचारों में, तुलना में, चिंता में ऊर्जा गवाँ देते हैं। छोड़िए ये सब, लक्ष्य पर केंद्रित रहिए। छोटी प्रगति भी प्रगति है। झूठे गुरु, डर बेचने वाले पंडितों से बचिए।आपको और नियमों की नहीं, और शांति की ज़रूरत है।

अपने हृदय की धड़कन को सुनिए

आपका हृदय हर पल कह रहा है “तुम जीवित हो।”
उस धड़कन को महसूस कीजिए।
हर सांस को प्रेमपूर्वक लीजिए। मृत्यु की तैयारी, जीवन को जागरूकता से जीना है।

ध्यान की ओर लौटिए

अब आप अपनी ऊर्जा को यूँ ही बिखेर नहीं सकते।
विपश्यना कीजिए, ध्यान कीजिए, मौन साधना कीजिए।
जो भी आपको स्वयं से जोड़ता है, वही अपनाइए।
मन को व्यर्थ की उलझनों से बचाइए।

“भीतर जियो। बाहर की घटनाओं से मत डोलो।”- श्री अरविंद

अपने आप से पूछिए:

  • क्या मैं जीवन में कुछ मिस कर रहा हूँ?
  • क्या मुझे कुछ खास चाहिए?
  • मेरी आत्मा की पुकार क्या है?

पहचानिए… पथ चुनिए, उसी दिशा में चलिए।

जीवन का कोई निश्चित मार्गदर्शक नहीं होता। आत्मा का कोई नक्शा नहीं होता, पर यदि आप हर दिन को सजगता से जीते हैं, तो आप मृत्यु की ओर सबसे सुंदर तैयारी कर रहे हैं।

हर जागरूक साँस, हर सच्चा कर्म, एक पूर्णता है।
कौन जानता है कल क्या होगा?
किसे पता है भाग्य क्या लाया है? कोई नहीं जानता। झूठे वादों और ढकोसलों से दूर रहिए।

अपनी राह चुनिए। अपने मन की सुनिए। “जो मृत्यु को सुंदर बना दे, वही सच्चा जीवन है।”- ओशो

मृत्यु से डरना नहीं है, जीवन का सम्मान करना है और जीवन का सम्मान है। उसे गहराई से, प्रेम से, जागरूकता से जीना। “जीवन की खुशी इसकी अवधि में नहीं, इसकी गहराई में है।”- श्री अरविंद

तो गहराई से जिएँ…सहजता से जिएँ… अब और यहीं जिएँ… यही मृत्यु की सबसे सुंदर तैयारी है।


लेखक के विचार व्यक्तिगत हैं।

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