गौरव अवस्थी
बनारस: सुबह-सुबह फेसबुक पर बनारस के पत्रकार एके लारी जी की पोस्ट से पता चला कि रूपेश पांडेय आज ईश की शरण में चले गए। रुपेश भाई थे तो पत्रकार लेकिन उससे ज्यादा एक ऐसे विचार योद्धा थे जो विचार को आचार में जीते थे। समाज में उतारते थे। विचार के लिए संवैधानिक सीमा के अंदर लड़ते भी थे। हिंदुस्तान के वाराणसी संस्करण में कुछ दिन उन्होंने काम भी किया लेकिन हमारा उनका प्रारंभिक परिचय दिल्ली में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष एवं देश के जाने-माने पत्रकार श्री रामबहादुर राय साहब के यहां आते-जाते हुआ और प्रगाढ़ता भी वहीं से पनपी।
दक्षिणी पंथी विचारधारा से प्रभावित रूपेश पांडे खांटी बनारसी थे। गजब के अध्येता। गजब के लिक्खाड़ और ग़ज़ब के बहसबाज। बहस हमेशा तार्किक। अपनी जिद न हूसपना। उनके तथ्य और तर्क अकाट्य होते थे। गलत को गलत और सही को सही कहने की एक निष्पक्ष सोच उनके स्वभाव का स्वर्णिम पक्ष था। किसी को प्रभाव में लेने का स्वभाव न प्रभावित होने का कोई चांस। भाजपा के होते हुए भी भाजपा के नहीं थे। गलत निर्णय पर पार्टी के साथ भी खड़े नहीं हुए। यह भी नहीं सोचा कि भविष्य खराब होगा! पीएम मोदी के बनारस से चुनाव लड़ने के बाद भी अपनी विचारधारा से वह हटे न डिगे। मोदी जी का कामधाम संभालने वालों से भी उन्होंने मोर्चा ले ही लिया।
ईश्वर प्रदत्त इसी खूबी के चलते वह भाजपा से निकाले गए प्रकांड विचारक गोविंदाचार्य के साथ मजबूती से डटे रहे। उस वक्त भी जब पार्टी का शीर्ष नेतृत्व गोविंदाचार्य जी को नेस्तनाबूद करने पर आमादा था। उनके नेतृत्व में होने वाले कार्यक्रमों में शामिल हुए। सेमिनार में गए और कार्यशालाओं में भी प्रतिभाग किया। इस सबके बावजूद वैचारिक प्रतिबद्धता के चलते उन्हें भाजपा की प्रदेश कर समेत का सदस्य बनाया गया।
हर परिस्थिति को हंस कर स्वीकार करना भी रुपेश भाई का बहुत बड़ा गुण था। रहने-खाने-जीने की जैसे कोई फिक्र ही नहीं। जहां जो मिला उसे स्वीकार किया। नहीं मिला तो और अधिक हंसकर उन परिस्थितियों को गले लगाया। प्राणघातक रोग कैंसर की चपेट में आने से पहले रुपेश भाई ने भारत कथा कहनी शुरू की थी। इसके लिए कार्यक्रम आयोजित होने लगे थे कोरोना के दौरान कथा के वीडियो भी सोशल मीडिया पर आए लेकिन भारत कथा पर उनकी अपनी व्यथा हावी हो गई। आर्थिक दिक्कतों के बावजूद हंसते हुए कैंसर से जंग जारी रख रहे।
दिल्ली में इलाज के बाद फॉलोअप के लिए एक संस्थान के कमरे में वह रुके थे। उस संस्थान का नाम और दिल्ली की वह जगह तो हमें याद नहीं लेकिन वहां हाल-चाल पूछने पहुंचे तो रुपेश भाई के चेहरे पर रोग की कोई शिकन न बातों में ही कोई चिंता। उनकी सेवा में भतीजा साथ था। नीम करोली बाबा में उनकी काफी आस्था थी। वह बार-बार यह बात जरूर कहते थे कि नींम करौली बाबा के आश्रम में जाकर रहने का मन है। उनकी यह इच्छा पूरी हुई या नहीं। बाद में पता चला कि वह बनारस में ही स्वास्थ्य लाभ कर रहे हैं। फोन पर हाल-चाल तो होते रहे लेकिन व्यस्तता के चलते उनसे मिलना नहीं हो पाया।
वैसे तो रुपेश भाई से दिल्ली लखनऊ बनारस और रायबरेली जुड़े तमाम संस्मरण है लेकिन सबसे ताजा संस्मरण पिछले विधानसभा चुनाव से जुड़ा है। तब मैं हिंदुस्तान समाचार पत्र की सेवा में ही था। विधानसभा चुनाव के नामांकन खत्म होने के एक दिन पहले शाम करीब 4 बजे रुपेश जी का फोन आया-आप कहां हैं? उस समय हम अखबार के काम से शहर में ही निकले हुए थे। हमने पूछा- आप कहाँ हैं? जवाब दिया- आपके ऑफिस के नीचे। उनसे ऑफिस में बैठने के लिए कहकर काम जल्दी निपटा कर ऑफिस पहुंचे। रुपेश भाई से अचानक आने का कारण पूछा तो जवाब मिला-” अपने मित्र अमरपाल मौर्य को ऊंचाहार से भाजपा का टिकट मिला है। कल नामांकन दाखिल होगा। यह बताइए हम रुकेंगे कहां?” खैर, तुरंत उनके रुकने की व्यवस्था कराई। रात का खाना-पीना साथ में ही हुआ।
दूसरे दिन नामांकन का आखिरी दिन था। पांडेय जी का सुबह 10 फोन आया कि आप नामांकन के समय कलेक्ट्रेट आ जाइए। नाफरमानी करने की हिम्मत नहीं थी, सो हम कलेक्ट्रेट पहुंच गए। वही पता चला कि मौर्य जी राज्य के कानून मंत्री बृजेश पाठक के साथ नामांकन दाखिल करने पहुंच रहे हैं। बृजेश पाठक से उन्नाव के सांसद रहते हुए का परिचय था लेकिन 10-15 साल से उनसे कोई व्यक्तिगत संपर्क नहीं था। पाठक जी से दुआ सलाम हुई और उन्होंने अमरपाल मौर्य से नया पुराना दोनों परिचय कराते हुए सहयोग का वादा लिया।
विधानसभा चुनाव के पूरे प्रचार अभियान तक रुपेश भाई रायबरेली में ही रहे लेकिन हमारे आतिथ्य में नहीं प्रत्याशी की व्यवस्था में। ऊंचाहार से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार अपने प्रिय मनोज पांडेय भी मैदान थे। हमारे सामने ऊहापोह की स्थिति। दोनों तरफ पांडेय। प्रचार के बीच ही रुपेश भाई ने सहज रूप में कहा कि प्रत्याशी के साथ एक दिन बिता लीजिए। साथ रहना भी होगा और इंटरव्यू भी। उनका यह आदेश भी हम टाल नहीं पाए और मौर्य जी के साथ 3 घंटे गाड़ी में रहकर इंटरव्यू किया। प्रचार सभाएं देखी। हालांकि बाद में पता चलने पर मनोज पांडेय को यह बात नागवार भी गुजरी लेकिन किया क्या जा सकता था?
इसके अलावा भी आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी स्मृति कार्यक्रम हो या अन्य कोई अवसर रुपेश भाई ने रायबरेली में कई रातें बिताई सबकी अपनी कहानी हैं। यादें हैं। इन्हीं यादो के सहारे रुपेश भाई स्मृतियों में छाए रहेंगे। रुपेश भाई के इस तरह जाने से मन व्यथित है। ईश्वर उन्हें अपने श्री चरणों में स्थान प्रदान करें।