नहाय खाय से शुरू हुई छठ पूजा के तीसरे दिन सभी व्रतधारी आज डूबते सूर्य को अर्घ्य देंगे. खरना संपन्न होने के बाद आज प्रत्यक्ष देवता भगवान सूर्य के लिए पहला अर्घ्य दिया जाएगा. मान्यता है कि शाम के समय भगवान सूर्य अपनी पत्नी प्रत्यूषा के साथ रहते हैं. ऐसे में महिलाएं अपने सुहाग और संतान की मंगलकामना लिए सायंकाल सूर्य की अंतिम किरण प्रत्यूषा को अर्घ्य देकर सुख-समृद्धि और सौभाग्य का आशीर्वाद मांगेंगी.
कार्तिक शुक्ल चतुर्थी तिथि को नहाय खाय से शुरू हुआ छठ महापर्व की षष्ठी तिथि पर अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने के बाद कल गुरुवार को चौथे दिन कार्तिक शुक्ल सप्तमी तिथि पर उदयगामी सूर्य को उनकी प्रथम किरण ऊषा को अर्घ्य देते हुए इस पावन व्रत का पारण किया जाएगा.
सूर्य की कठिन साधना एवं तपस्या से जुड़ा व्रत सबसे कठिन व्रतों में से एक है. जिसमें महिलाएं अपने परिवार की सुख-समृद्धि की कामना लिए 36 घंटों का निर्जला व्रत रखती हैं और सर्दी के समय ठंडे पानी में खड़े होकर विधि-विधान से प्रत्यक्ष देवता भगवान सूर्य और छठी मैया की पूजा पूरे श्रद्धा एवं भाव के साथ करती हैं. भगवान सूर्य के साथ पूजी जाने वाली छठी मैया का संबंध भाई-बहन का है. प्रकृति के छठे अंश से प्रकट होने के कारण इनका नाम षष्ठी पड़ा, जिन्हें देवताओं की देवसेना भी कहा जाता है. भगवान कार्तिकेय की पत्नी षष्ठी देवी को ब्रह्मा की मानसपुत्री भी कहा गया है. मान्यता है कि छठी मैया पूजा से प्रसन्न होकर नि:संतानों को संतान प्रदान करते हुए लंबी आयु का आशीर्वाद प्रदान करती हैं.
डूबते हुए सूर्यदेव को अर्घ्य देने से पहले पूजा के लिए बांस की टोकरी को फल-फूल, ठेकुआ, चावल के लड्डू और पूजा से जुड़े अन्य सामान को रखकर सजाया जाता है. सूर्यास्त के समय सूर्यदेव को दिये जाने वाले अर्घ्य को संध्या अर्घ्य भी कहते हैं, जिसे देने से व्रतधारी छठी मइया की पूजा करते हैं. शाम के समय भगवान सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रतधारी पांच बार परिक्रमा करते हैं.
सूर्य षष्ठी का व्रत साल में दो बार मनाया जाता है. जिसमें चैत्र शुक्ल पक्ष की षष्ठी पर मनाए जाने वाले छठ पर्व को चैती छठ व कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले पर्व को कार्तिकी छठ कहा जाता है.
खबर इनपुट एजेंसी से