अतिशय राग
बिखेर गया
आंसुओं का अंतहीन सिलसिला
मौन की घुटन भरी गुफा में
पैर टिकाने
नहीं आते आश्वस्त स्वर
पथरायी आँखें
बुनती हें अतीत के रुपहले ऊन से
एक नन्हा स्वेटर
नहीं आता कोई स्नेह -शिशु !.
-डॉ जय नारायण बुधवार
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© 2021 नेशनल फ्रंटियर - राष्ट्रहित की प्रमुख आवाज NationaFrontier.
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