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संघ की शाखा में आए बाबा साहब डॉ. अंबेडकर

Jitendra Kumar by Jitendra Kumar
13/04/25
in मुख्य खबर, राष्ट्रीय, साहित्य
संघ की शाखा में आए बाबा साहब डॉ. अंबेडकर
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लोकेन्द्र सिंह


नई दिल्ली: संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचारों में बहुत हद तक साम्य है। विशेषकर, हिन्दू समाज में काल के प्रवाह में आई अस्पृश्यता को दूर करने के लिए जिस प्रकार का संकल्प बाबा साहब के विचारों में दिखायी देता है, उसके दर्शन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्य में प्रत्यक्ष रूप से होते हैं। यही कारण है कि संघ और बाबा साहब प्रारंभ से, अप्रत्यक्ष रूप से एक-दूसरे के निकट रहे हैं। यह तथ्य बहुत कम ही सामने आया है कि डॉ. अंबेडकर ने संघ की शाखा एवं शिक्षा वर्गों में जाकर स्वयंसेवकों को संबोधित भी किया है और संघ के पदाधिकारियों से संघ कार्य की जानकारी भी प्राप्त की थी।

Baba Saheb Dr. Ambedkar

इसलिए आज जब कहा जाता है कि बाबा साहब भी संघ की शाखा पर आए थे, तो लोग आर्श्चय व्यक्त करते हैं। परंतु, यह सत्य है। यह भी याद रखें कि संघ के प्रति बाबा साहेब के मन में कभी कोई दुराग्रह या नकारात्मक दृष्टिकोण नहीं रहा है। अवसर आने पर उन्होंने संघ के संबंध में सद्भाव ही प्रकट किए हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के कार्यकर्ताओं एवं अधिकारियों के मन में भी बाबा साहेब के प्रति श्रद्धा का भाव है। संघ के कार्यकर्ता एकात्मता स्रोत में प्रतिदिन बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर का स्मरण करते हैं।

Baba Saheb Dr. Ambedkar

बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर सन् 1935 में पुणे में आयोजित महाराष्ट्र के पहले संघ शिक्षा वर्ग में आए थे। दरअसल, वे अपने व्यवसाय के निमित्त दापोली गए, तब वहाँ की शाखा पर भी गए और स्वयंसेवकों के साथ खुलेमन से चर्चा की। इसका उल्लेख भारतीय मजदूर संघ सहित अनेक सामाजिक संगठनों के संस्थापक रहे विचारक दत्तोपंत ठेंगठी ने अपनी पुस्तक ‘डॉ. अंबेडकर और सामाजिक क्रांति की यात्रा’ में किया है।

Baba Saheb Dr. Ambedkar

इसके साथ ही बाबा साहब डॉ. अंबेडकर से जुड़े रहे पूर्व लोकसभा सांसद बालासाहेब सालुंके ने भी इसका उल्लेख किया है। उनके पुत्र काश्यप सालुंके ने भानुदास गायकवाड़ के साथ मिलकर बालासाहेब सालुंके के संस्मरणों एवं विचारों का संकलन किया है- ‘आमचं सायेब : दिवंगत खासदार बालासाहेब सालुंके’। इस पुस्तक के पृष्ठ 25 और 53 पर डॉ. अंबेडकर और आएसएस के संदर्भ में उपरोक्त उल्लेख आते हैं। याद रहे कि बाला साहेब सालुंके और उनके पुत्र काश्यप सालुंके का संघ से कोई संबंध नहीं है।

सन् 1937 में करहाड शाखा (महाराष्ट्र) के विजयादशमी उत्सव पर बाबा साहब का भाषण हुआ। सन् 1939 में एक बार फिर बाबा साहब पुणे के संघ शिक्षा वर्ग के सायंकाल के कार्यक्रम में आए थे। यहाँ उनकी भेंट राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक एवं तत्कालीन सरसंघचालक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार से हुई। इस अवसर पर एक प्रेरणादायी प्रसंग घटित हुआ, जो आज में हमें दिशा देता है। वर्ग में शामिल स्वयंसेवकों के संबंध में जानकारी प्राप्त करते हुए बाबा साहब ने डॉ. हेडगेवार से पूछा- ‘इनमें अस्पृश्य कितने हैं?’ डॉ. हेडगेवार ने कहा- ‘चलो, घूम कर देखते हैं’। बाबा साहब बोले- ‘इनमें अस्पृश्य तो कोई दिख नहीं रहा’।

डॉ. हेडगेवार ने कहा- ‘आप पूछ लें’। बाबा साहब ने पूछा- ‘आप में से जो अस्पृश्य हों, वे एक कदम आगे आ जाएं’। उस पंक्ति में से एक भी स्वयंसेवक आगे नहीं आया। बाबासाहब ने कहा- ‘देखा, मैं पहले ही कहता था’। इस पर डॉ. हेडगेवार ने कहा- ‘हमारे यहाँ यह बताया ही नहीं जाता कि आप अस्पृश्य हैं। आप अपनी अभिप्रेत जाति का नाम लेकर उनसे पूछें’। तब बाबासाहब ने स्वयंसेवकों से प्रश्न किया- ‘इस वर्ग में कोई हरिजन, मांग, चमार हो, तो एक कदम आगे आए’। ऐसा कहने पर कई स्वयंसेवकों ने कदम आगे बढ़ाया। उनकी संख्या सौ से ऊपर थी।

सन् 1940 में भी बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर पुणे में संघ की शाखा में गए थे। यहाँ स्वयंसेवकों के समक्ष अपने विचार प्रकट किए। इस संबंध में हाल ही में विश्व संवाद केंद्र, विदर्भ ने 9 जनवरी 1940 को प्रकाशित प्रसिद्ध मराठी दैनिक समाचारपत्र ‘केसरी’ की प्रति साझा की है। केसरी में प्रकाशित समाचार के अनुसार, बाबा साहब ने संघ के स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए कहा- “कुछ बातों पर मतभेद हो सकते हैं। लेकिन संघ की तरफ अपनत्व की भावना से देखता हूँ”। बाबा साहब के इस वाक्य से स्पष्ट है कि वे संघ के कार्य को अपना कार्य समझते थे। संभवत: उन्हें इस बात की प्रसन्नता रही होगी कि जिस काम को उन्होंने हाथ में लिया है, संघ के स्वयंसेवक उसे जमीन पर उतारने में बड़ा सहयोग दे रहे हैं।

बाबा साहब का संबंध संघ के साथ लंबे समय तक बना रहा। संघ पर लगे पहले प्रतिबंध को हटाने में बाबा साहब का जो सहयोग एवं परामर्श मिला, उसके प्रति धन्यवाद ज्ञापित करने के लिए तत्कालीन सरसंघचालक माधव सदाशिवराव गोलवलकर ‘श्रीगुरुजी’ ने सितंबर-1949 में बाबा साहब से दिल्ली में भेंट की। अर्थात् बाबा साहब डॉ. अंबेडकर और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का आपसी संपर्क-संवाद चलता रहा।


लेखक, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल में सहायक प्राध्यापक हैं।

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