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ट्रक के इंजन को सही करते-करते ISRO में रॉकेट डिजाइनिंग तक पहुंच गया चूरू का बलकेश

Jitendra Kumar by Jitendra Kumar
20/10/21
in राष्ट्रीय, समाचार
ट्रक के इंजन को सही करते-करते ISRO में रॉकेट डिजाइनिंग तक पहुंच गया चूरू का बलकेश

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चूरू के रहने वाले बलकेश इसरो में अब रॉकेट डिजाइन करेंगे। बलकेश ने इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गनाइजेशन (ISRO) में साइंटिस्ट के लिए एग्जाम दिया था। वे देशभर में 44वीं रैंक पर रहे। बलकेश आने वाले कुछ दिनों में ISRO के साथ रॉकेट डिजाइनिंग प्रोजेक्ट पर काम करेंगे।

उनका यहां तक का सफर बड़ा रोचक रहा। चूरू के नरवासी गांव के निवासी बलकेश के पिताजी ट्रक ड्राइवर थे। इस दौरान जब भी ट्रक के इंजन में छोटी-मोटी खराबी को पिताजी सही करते तो वे उसे देखते। इस दौरान इंजन को समझने का प्रयास करते थे। बलकेश बताते हैं कि धीरे-धीरे समझा कि छोटे से इंजन के दम पर इतना बड़ा ट्रक कैसे चलता है। फिर स्कूल और कॉलेज में इनोवेटिव साइंस इवेंट में हिस्सा लेने का अवसर मिला। तब से मन बना लिया कि साइंटिस्ट ही बनना है। इसके बाद इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गनाइजेशन (ISRO) में साइंटिस्ट के लिए एग्जाम दिया, जिसका पिछले दिनों रिजल्ट आया।

बलकेश बताते हैं कि पिता बीरबल सिंह जब घर से निकलते थे तो पता नहीं था कि कब लौटेंगे। कई दिनों तक ट्रक चलाना पड़ता था। खेत में 30 बीघा जमीन की किसानी मां करती थी। सुबह-शाम घर का काम करने के साथ ही दोपहर में खेत में काम करना बहुत कठिन था। मां-पिताजी ये सब कुछ हमारे लिए कर रहे थे। हम पहले राजगढ़ में पढ़े, फिर हमें तारानगर भेज दिया। इसलिए कुछ बनना हमारा दायित्व था। मेरे भाई इंजीनियर हैं और मैं अब साइंटिस्ट बन गया।

5 साल तक एक ही कमरे में रहे
ऐसा नहीं है कि बलकेश को पहली बार में ही सफलता मिल गई। इस उपलब्धि के लिए कई साल तक मेहनत की है। दो बार इसरो के इसी एग्जाम में विफल भी हुए, लेकिन हिम्मत नहीं हारी। जो कमियां थीं, वो दूर करते हुए तीसरी बार एग्जाम दिया। 5 साल तक लगातार एक कमरे में रहकर पढ़ाई करते हुए सफलता मिली। बलकेश ने गेट एग्जाम भी 5 बार प्रयास करने के बाद क्लियर किया है। 98 परसेंटाइल तक बने।

क्या होगा इसरो में काम
बलकेश ने बताया कि ISRO देश का सबसे बड़ा स्पेस रिसर्च सेंटर है। अंतरिक्ष में जाने वाले यान की इंजीनियरिंग अलग होती है। रॉकेट के किस पार्ट से कितना फ्यूल देने पर रॉकेट अंतरिक्ष तक पहुंच सकता है, रॉकेट का कम से कम भार हो और ज्यादा से ज्यादा गति हो, रॉकेट का कौन सा हिस्सा कब काम करेगा? ये सब साइंटिस्ट ही तय करते हैं। ये देश की प्रतिष्ठा से जुड़ा संस्थान है, इसलिए साइंटिस्ट चयन करने के लिए देशभर में सिविल सर्विसेज की तरह एग्जाम होता है। कई सालों की मेहनत का नतीजा है कि मैं इसमें न सिर्फ चयनित हुआ बल्कि देशभर में 44वीं रैंक हासिल की।

कैसे होता है ये एग्जाम
जिन युवाओं ने B Tech कर रखा है वो साइंटिस्ट के लिए ISRO और BARC (भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर) का एग्जाम दे सकते हैं। इस एग्जाम के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती है। एक बार चयन होने के बाद इन दोनों सेंटर्स पर काम करने का अवसर मिलता है। राष्ट्र सेवा का ये भी एक माध्यम है। इससे पहले बलकेश को जयपुर की एक प्राइवेट कंपनी में इंजीनियर के रूप में जॉब भी मिल गई थी। पैकेज भी अच्छा मिला, लेकिन उन्होंने इसे छोड़ दिया।

इस तरह से होता है सिलेक्शन
बलकेश बताते हैं कि ISRO में वैज्ञानिक बनना आसान नहीं है। इसके लिए ISRO ने स्वयं की एक रिक्रूटमेंट एजेंसी बना रखी है। इसमें हिस्सा लेने के लिए हर साल एग्जाम होते हैं। एक पोस्ट के लिए 10 का इंटरव्यू होता है। 2019 में करीब 134 पोस्ट के लिए एग्जाम हुए थे। 60 हजार से ज्यादा स्टूडेंट ने एग्जाम दिया था। इसमें उनकी 44 वीं रैंक रही। उन्हें नवम्बर अंत तक जॉइनिंग मिलेगी। तब पहले ISRO ट्रेनिंग देगा। इसके बाद किसी प्रोजेक्ट से उन्हें जोड़ा जाएगा l


खबर इनपुट एजेंसी से

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