नई दिल्ली: टेक्नोलॉजी बच्चों की एकेडमिक परफॉर्मेंस के साथ-साथ उनकी सेहत बिगाड़ने का भी काम कर रही है. ग्लोबल एजुकेशन मॉनिटरिंग (GEM) रिपोर्ट में भी कहा गया है कि अगर आप मोबाइल फोन बच्चों के आसपास रखते हैं तो इससे उनका ध्यान भटकता है, और इससे उनकी पढ़ाई प्रभावित होती है. फिर भी चार में ऐसे एक देश ऐसा है, जहां स्कूलों में स्मार्टफोन पर बैन है. इस लिस्ट में अब स्वीडन का नाम भी जुड़ गया है. स्वीडन सरकार ने दो साल से कम उम्र के बच्चों के लिए मोबाइल फोन और टीवी पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया है, जबकि 2 साल से ऊपर के बच्चों के लिए स्क्रीन टाइम की लिमिट सेट कर दी है.
दरअसल, बच्चों के लिए मोबाइल फोन और टीवी का आकर्षण अब आम बात हो गई है. पेरेंट्स भी अपने काम के चक्कर में बच्चों को मोबाइल फोन देकर या टीवी के सामने बैठा देते हैं. लेकिन इसका बच्चों पर बहुत खराब असर पड़ता है. अत्यधिक स्क्रीन टाइम आंखों की रोशनी, नींद की समस्याओं और मोटापे का कारण बन सकता है. स्क्रीन के सामने अधिक समय बिताने से बच्चों के सोशल स्किल कमजोर हो सकते हैं. सोशल मीडिया और विज्ञापनों के माध्यम से बच्चे अवास्तविक अपेक्षाएं पाल सकते हैं. इन सभी संभावनों को देखते हुए एक स्वीडन ने दो साल तक के बच्चों के लिए मोबाइल फोन और टीवी को पूरी तरह बैन कर दिया है.
स्वीडन ने दो साल से कम उम्र के बच्चों के लिए स्क्रीन का इस्तेमाल करने पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया है. वहीं दो से पांच वर्ष, छ से 12 वर्ष और उससे बड़े बच्चों के लिए स्क्रीन टाइम की लिमिट सेट की है. सरकारी की तरफ से परामर्श से साफ कहा गया है कि बच्चों को टीवी और मोबाइल फोन समेत किसी भी स्क्रीन के इस्तेमाल की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए. इसके बाद अब बच्चे स्क्रीन का इस्तेमाल नहीं कर सकेंगे.
इस उम्र के बच्चों का भी कम होगा स्क्रीन टाइम
स्वीडन सरकार द्वारा जारी परामर्श के अनुसार, दो साल से कम उम्र के बच्चे को पूरी तरह मोबाइल फोन, टीवी या किसी अन्य स्क्रीन से दूर रखना चाहिए. 2 से 5 वर्ष वर्ष के बच्चों को 24 घंटे में ज्यादा से ज्यादा एक घंटा, जबकि 6 से 12 वर्ष के बच्चों को सिर्फ दो घंटे ही स्क्रीन का इस्तेमाल करना चाहिए. उन्होंने कहा कि 12 वर्ष से अधिक उम्र के बच्चों को भी दिनभर में सिर्फ तीन घंटे ही स्क्रीन टाइम की परमिशन देनी चाहिए.
स्क्रीन टाइम से बच्चों में बढ़ रहा डिप्रेशन
स्वीडन सरकार का कहना है कि कई रिसर्च में पता चला है कि ज्यादा स्क्रीन टाइम की वजह से बच्चों और किशोरों में नींद की कमी और डिप्रेशन की शिकायत देखी जा रही है. डिप्रेशन बढ़ने से उनके स्वास्थ्य और फिजिकल फिटनेस पर भी बुरा असर पड़ता है. वो अपनी उम्र के हिसाब से कम एक्टिव हैं.
25% से भी कम देशों ने उठाया कदम
यूनाइटे नेशन का कहना है कि इस बात की जानकारी होने के बावजूद, 25% से भी कम देशों ने शैक्षिक सेटिंग्स में स्मार्टफोन के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाया है. यूनेस्को द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि मोबाइल फोन हो या कंप्यूटर, उससे बच्चों का ध्यान भटक सकता है और ऐसे में स्कूल या घर उनके सीखने का माहौल प्रभावित होता है. रिसर्च से पता चलता है कि कोई भी स्टूडेंट का ध्यान अगर एक बार टेकनोलॉजी की वजह से भटक जाता है तो उसे फिर से ध्यान केंद्रित करने में 20 मिनट का समय लग सकता है. यूएन एजुकेशन डिपार्टमेंट का कहना है कि क्लासरूम में टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल सिर्फ एजुकेशन के लिए किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि अमीर देशों में क्लासरूम और एजुकेशन व्यवस्था बदल गई है. स्क्रीन ने पेपर की जगह ले ली और पेन ने कीबोर्ड की.
इन देशों में भी बच्चों के स्क्रीन टाइम को लेकर सख्त नियम
अमेरिका, आयरलैंड, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और फ्रांस जैसे देश बच्चों के स्क्रीन टाइम को लेकर सख्त नियम बना चुके हैं. खासकर फ्रांस ने सबसे सख्त निर्देश जारी कर तीन साल से कम उम्र के बच्चों को स्क्रीन के इस्तेमाल की बिल्कुल भी इजाजत नहीं दिए जाने की बात कही गई थी.