नई दिल्ली। बांग्लादेश में रोहिंग्या शरणार्थियों को आतंकी ट्रेनिंग देने की खबरें सामने आ रही हैं। कहा जा रहा है कि इन्हें ट्रेनिंग देने के बाद म्यांमार में जारी गृहयुद्ध में शामिल होने के लिए भेजा जाता है। बता दें कि भारत के पड़ोसी देश में शेख हसीना सरकार के पतन के बाद से चरमपंथी हिंसा बढ़ती जा रही है। अब रोहिंग्याओं को आतंकी बनाने की खबरें चौंकाने वाली हैं।
जी न्यूज की एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि बांग्लादेश कथित तौर पर पाकिस्तान के समर्थन से रोहिंग्या शरणार्थियों को आतंकी गतिविधियों के लिए ट्रेनिंग दे रहा है। 250 से ज्यादा रोहिंग्याओं को ट्रेन किया जा रहा है। इसके लिए सऊदी अरब और मलेशिया के जरिए 2.8 करोड़ रुपये की फंडिंग हुई है। यह खतरनाक घटनाक्रम क्षेत्रीय शांति को अस्थिर कर सकता है और भारत की सुरक्षा चिंताओं को बढ़ा सकता है।
आतंकवाद की ओर बढ़ते कदम
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, रोहिंग्याओं को बांग्लादेश में ट्रेनिंग दी जा रही है और म्यांमार में लड़ने के लिए भेजा रहा है। बांग्लादेश में स्थिते दुनिया के सबसे बड़े शरणार्थी शिविर कॉक्स बाजार से जुलाई में 32 वर्षीय रफीक ने नाव के जरिए म्यांमार की सीमा पार की। उसका मकसद म्यांमार में चल रहे गृहयुद्ध में शामिल होना था। रफीक ने बताया, “हमें अपनी जमीन वापस पाने के लिए लड़ना होगा। और कोई रास्ता नहीं है।” कॉक्स बाजार के शिविरों में इस साल उग्रवादी गतिविधियों और भर्ती में तेजी देखी गई है। चार विश्वसनीय सूत्रों और दो आंतरिक एजेंसी रिपोर्टों के अनुसार, शिविरों में हिंसा और उग्रवाद का स्तर बढ़ता जा रहा है।
रोहिंग्या मुख्य रूप से मुस्लिम समूह है जो दुनिया की सबसे बड़ी देशविहीन आबादी है। इस आबादी ने 2016 में बौद्ध-बहुल म्यांमार की सेना के हाथों नरसंहार से बचने के लिए बांग्लादेश की ओर भागना शुरू कर दिया था। तब से वे भारत और बांग्लादेश सहित कई देशों में विभिन्न जगहों पर बसे हुए हैं। 2021 में सेना द्वारा तख्तापलट किए जाने के बाद से म्यांमार में लंबे समय से चल रहे विद्रोह ने जोर पकड़ लिया है। इसमें कई सशस्त्र समूह हैं। इसमें अब रोहिंग्या लड़ाके भी शामिल हो गए हैं। ये लड़ाके उसी म्यांमारी सेना के साथ मिलकर लड़ रहे हैं जिसने कभी उन पर अत्याचार किया था। इसकी वजह अराकान आर्मी (एए) को बताया जा रहा है।
कहा जाता है कि अराकान आर्मी (एए) ने भी रोहिंग्याओं पर अत्याचार किए थे और उन्हें भागने के लिए मजबूर किया। अब रोहिंग्या अपने पूर्व सैन्य उत्पीड़कों के साथ मिलकर अराकान आर्मी से लड़ने के लिए समूहों में शामिल हो गए हैं। अराकान आर्मी एक जातीय मिलिशिया है जिसने पश्चिमी म्यांमार के रखाइन राज्य के अधिकांश हिस्से पर कब्जा कर लिया है। रोहिंग्याओं के लड़ाई में उतरने के पीछे अराकान आर्मी प्रमुख वजह नहीं है। प्रमुख वजह है नागरिकता। खबरों के मुताबिक, म्यांमारी सेना ने रोहिंग्याओं को कई तरह के लालच दिए हैं जिससे वे लड़ाई में कूदे हैं।
म्यांमार की सैन्य भूमिका
हालांकि म्यांमार की सेना ने रोहिंग्या मुसलमानों को प्रशिक्षण और हथियार देने की बात को नकारते हुए कहा कि वे केवल अपने गांवों की सुरक्षा के लिए यह कदम उठा रहे हैं। लेकिन रोहिंग्या उग्रवादियों ने आरोप लगाया है कि सेना ने उन्हें नागरिकता का लालच देकर हथियार उठाने पर मजबूर किया।
रोहिंग्या समूह और शिविरों में अस्थिरता
कॉक्स बाजार में सक्रिय दो प्रमुख रोहिंग्या उग्रवादी समूह, रोहिंग्या सॉलिडेरिटी ऑर्गनाइजेशन (RSO) और अराकान रोहिंग्या साल्वेशन आर्मी (ARSA), को शिविरों में व्यापक समर्थन नहीं मिल रहा है। लेकिन शिविरों में हथियारबंद रोहिंग्या उग्रवादियों का उभरना बांग्लादेश के लिए एक बड़ा खतरा बन गया है। बांग्लादेश के अंतरराष्ट्रीय संबंध विशेषज्ञ शाहब इनाम खान ने चेतावनी दी है कि शिविरों के निराश शरणार्थियों को अन्य संगठन आतंकी गतिविधियों में शामिल कर सकते हैं। यह स्थिति क्षेत्रीय शांति को प्रभावित कर सकती है।
बांग्लादेश की रणनीति और सेना का दृष्टिकोण
बांग्लादेश के रिटायर्ड ब्रिगेडियर जनरल मंजर कादिर का मानना है कि रोहिंग्या उग्रवाद को समर्थन देकर म्यांमार की सेना और अराकान आर्मी (AA) पर दबाव बनाया जा सकता है। इससे रोहिंग्या शरणार्थियों की वापसी की प्रक्रिया तेज हो सकती है। उन्होंने बताया कि कुछ सरकारी अधिकारियों ने पहले भी ऐसे सशस्त्र समूहों का सहयोग किया था, हालांकि इसका कोई ठोस रणनीतिक निर्देश नहीं था।
क्षेत्रीय अस्थिरता और भारत के लिए चिंता
इस पूरे घटनाक्रम से भारत के लिए सुरक्षा चुनौतियां बढ़ सकती हैं। म्यांमार और बांग्लादेश के बीच अस्थिरता का प्रभाव न केवल पूर्वोत्तर भारत पर पड़ेगा, बल्कि आतंकवादी गतिविधियों के जरिए क्षेत्रीय शांति पर भी असर होगा। बांग्लादेश के लिए यह स्थिति एक “टिकिंग टाइम बम” बन चुकी है, क्योंकि हिंसा और उग्रवाद की बढ़ती घटनाएं शरणार्थियों की वापसी के प्रयासों को और जटिल बना रही हैं। कुल मिलाकर रोहिंग्या संकट अब एक अंतरराष्ट्रीय समस्या बन चुका है, जिसमें आतंकवाद, शरणार्थी संकट, और क्षेत्रीय अस्थिरता के कई पहलू शामिल हैं। भारत समेत क्षेत्रीय देशों को मिलकर इस समस्या का हल निकालना होगा, ताकि मानवता और शांति को बचाया जा सके।