गौरव अवस्थी
सखि वसंत आया! वसंत आने को हो और निराला जी याद न आएं, ऐसा संभव ही नहीं. वसंत हिंदी साहित्य के “सूर्य” महाप्राण निराला का स्वघोषित जन्मदिवस है. महात्मा गांधी और निराला से जुड़ा एक संस्मरण सबने खूब सुना और पढ़ा है. संस्मरण पुराना है पर नई पीढ़ी के लिए नए अंदाज में सुनाने-पढ़ाने का मन इसलिए है कि यह पीढ़ी भी हिंदी के “निराले” साहित्यकार निराला के बारे में जाने और समझे.
महादेवी वर्मा के शब्दों में संस्मरण यूं है-
महात्मा गांधी आंदोलन के लिए देशभर में घूमते तो थे ही खूब लिखते और पढ़ते भी थे. बापू ने लिख दिया कि हिंदी में कोई रविंद्र नाथ टैगोर नहीं है. बापू का यह कथन पढ़कर निराला से रहा नहीं गया. वह बापू से मिलने इलाहाबाद पहुंच गए. बापू स्वराज भवन में ठहरे थे. निराला जी स्वराज भवन पैदल जा रहे थे. रास्ते में एक तांगे पर बकरी जाती दिखी. निराला जी ने साथ चल रही महादेवी से कहा- हिंदी का कवि पैदल जा रहा है और बकरी तांगे पर. जरूर यह बापू की बकरी होगी. था भी ऐसा ही. बापू बकरी का दूध पीते थे और वाकई में तांगे पर वह बकरी बापू के लिए ही ले जाई जा रही थी. “बापू की बकरी” के नाम से निराला जी का यह संस्मरण काफी चर्चित भी हुआ.
33 वर्ष पुराने एक साक्षात्कार में महादेवी जी बताती है-“रास्ता पूछते-पूछते निराला जी स्वराज भवन पहुंच गए. तब बापू और निराला एक दूसरे से अपरिचित थे. वेशभूषा से महात्मा गांधी को निराला जी के बंगभाषी होने का अनुमान हुआ. बापू ने निराला को ऊपर से नीचे तक निहारने के बाद पूछा-” आप किस प्रांत से हैं?” निराला ने प्रति प्रश्न किया-” बापू! आप तो मानते हैं भारत एक है, फिर प्रांत की बात क्यों करते हैं?” निराला के भाव समझकर बापू ने कहा-” हां! मानता तो हूं लेकिन आपकी वेशभूषा देखकर जानने की जिज्ञासा हुई”
निराला ने बापू से पूछा-“आपने लिखा है कि हिंदी में कोई रविंद्र नहीं है”. बापू बोले- “हां! लिखा तो है”. इस पर निराला जी ने पूछा- “क्या आपने निराला को पढ़ा है?” बापू ने कहा-” पढ़ा नहीं है. आप अपनी किताबें महादेव भाई को भेज दीजिए”. बापू ने कहा जरूर लेकिन निराला मन से इसके लिए तैयार नहीं हुए. वह बोले-” बापू एक कहानी सुना कर जा रहा हूं”
महादेवी वर्मा जी के मुताबिक वह किस्सा कुछ यूं था-“एक व्यक्ति घोड़े वाले के पास घोड़ा मांगने पहुंचा. घोड़े वाले ने कहा घोड़ा नहीं है. इसी बीच घोड़े के हिनहिनाने की आवाज सुनाई दी. मांगने वाले ने कहा घोड़ा तो हिनहिना रहा है. घोड़े वाले ने कहा आपने घोड़े की आवाज पहचानी पर मेरी नहीं. मैं घोड़ा देना नहीं चाहता हूं.” कहानी खत्म करते हुए निराला जी ने कहा-” बापू! मैं आपकी आवाज पहचान गया हूं. आपके घोड़े की आवाज पहचानना नहीं चाहता” यह कहते हुए निराला जी बापू के कमरे से निकल गए.
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