बेतार के तार
बुनते
सघन रिश्तों की बारीक चादर
अदेखी उंगलियाँ
रचती मखमली बेलबूटे
अनमिली निगाहें फेंकती
अवसादित रातों में
तेज सर्च लाइट
प्रामाणिक होता है हमेशा
अनकहा ही
अबोली भाषा ही
लिखती है सच का महाकाव्य !..
-डॉ जय नारायण बुधवार