नई दिल्ली। भारतीय पुलिस सेवा (IPS) में सुपर कॉप के नाम से मशहूर शिवदीप वामनराव लांडे ने अंतत: अपने पत्ते खोल ही दिए. शिवदीप लांडे ने घोषणा की कि वह बिहार में राजनीतिक पारी का आगाज करेंगे. उन्होंने इसके लिए विधिवत पार्टी भी बनाई. इस तरीके से बिहार की राजनीति में एक और चर्चित आईपीएस की एंट्री हो गई. लांडे से पहले भी कई आईपीएस राजनीति में कदम रख चुके हैं. इनमें से कुछ सफल हुए तो किसी ने असफल होने के कारण वैराग्य अपना लिया.
अपने पुलिसिंग के वक्त सुपरकॉप के नाम से मशहूर रहे शिवदीप लांडे ने लंबे अटकलों के बाद आखिरकार बिहार की राजनीति में कदम रख ही दिया. शिवदीप लांडे ने अपनी पार्टी बनाई और उस पार्टी के अध्यक्ष बन गए. लंबे वक्त से बिहार में यह बातें चल रही थी कि शिवदीप लांडे राजनीति में कदम रख सकते हैं. अंततः: इस पूरी चर्चा पर आज विराम लग गया. शिवदीप लांडे ने यह भी कहा कि वह बिहार विधानसभा की सभी सीटों पर अपने उम्मीदवारों को उतारेंगे.
गृह क्षेत्र से इंस्पायर!
दरअसल शिवदीप लांडे ने अपनी पार्टी का नाम हिंद सेना रखा है. शिवदीप मूलरूप से महाराष्ट्र के निवासी हैं. महाराष्ट्र की राजनीति में सेना शब्द का खूब इस्तेमाल होता है. महाराष्ट्र की राजनीति में शिवसेना, महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के अलावा कई अन्य पार्टियां हैं, जिनके नाम में सेना शब्द का इस्तेमाल होता रहा है. लांडे ने अपने गृह क्षेत्र और कर्मक्षेत्र, दोनों को ही मिलाकर नया प्रयोग करने की कोशिश की है.
पहले भी चुनाव लड चुके हैं आईपीएस
ऐसा नहीं है कि बिहार की राजनीति में शिवदीप पहले आईपीएस हैं, जो राजनीति में कदम रख रहे हैं. पहले भी कई ऐसे चर्चित चेहरे हैं, जिन्होंने बिहार की राजनीति में कदम रखा. हालांकि इनमें इक्का दुक्का ही नाम ऐसे हैं, जो सफल हुए. बाकी कहीं न कहीं गुमनाम हो गए. बिहार के कुछ चर्चित आइपीएस में पूर्व डीजीपी डीपी ओझा, पूर्व डीजीपी आशीष रंजन सिन्हा, पटना के एसएसपी रहे सुनील कुमार, तत्कालीन बिहार के आईपीएस तथा वर्तमान में पलामू से सांसद बीडी राम और पटना सिटी के एसपी रह चुके अजय कुमार ऐसे नाम रहे हैं. जिन्होंने राजनीति में कदम रखा. इनमें डीजीपी रहे गुप्तेश्वर पांडे का भी नाम शामिल है, जो राजनीति में आते आते रह गए.
इन्होंने लड़ा चुनाव
सीवान के बाहुबली सांसद रहे शहाबुद्दीन मामले को लेकर चर्चा में आए पूर्व डीजीपी डीपी ओझा ने सरकारी सेवा के बाद राजनीति में अपने सफर की शुरुआत की थी. 1967 बैच के आईपीएस रहे डीपी ओझा ने बेगूसराय से निर्दलीय चुनाव लड़ा. हालांकि यह बात अलग है कि उनको चुनावी सफलता नहीं मिली और वह चुनाव हार गए. बिहार के पूर्व डीजीपी आशीष रंजन भी वैसे आईपीएस में शामिल रहे हैं जिन्होंने बिहार में राजनीति करने की कोशिश की लेकिन राजनीति उन्हें रास नहीं आई.
2005 से लेकर 2008 तक बिहार के डीजीपी रहे आशीष रंजन सिंह ने रिटायरमेंट के बाद पहले राष्ट्रीय जनता दल को ज्वाइन कियाय. उसके बाद उन्होंने कांग्रेस का रुख किया. कांग्रेस पार्टी के टिकट पर उन्होंने नालंदा से लोकसभा का चुनाव लड़ा लेकिन उनको भी सफलता नहीं मिली और करीब सवा लाख वोट लेकर से वह तीसरे नंबर पर रहे.
इन्होंने अपनाया वैराग्य
हाल फिलहाल तक बिहार के डीजीपी रहे गुप्तेश्वर पांडे का नाम भी वैसे आईपीएस की सूची में शामिल है जिन्होंने बिहार में चुनावी सफर करने की पूरी कोशिश की लेकिन उनका राजनीतिक सफर शुरू होने के पहले ही खत्म हो गई. राजनीति करने के लिए गुप्तेश्वर पांडे ने तो स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति तक ले ली थी. इसके बाद उन्होंने जनता दल यूनाइटेड की सदस्यता भी हासिल की लेकिन जब उन्हें जदयू की तरफ से ठंडा रिस्पांस मिला तो उन्होंने भाजपा की तरफ भी अपने कदम बढ़ाए. वहां भी जब उन्हें कोई उत्साह जनक रिस्पांस नहीं मिला तो उन्होंने रास्ता ही बदल दिया और अब वह वैराग्य अपना कर प्रवचन देते हैं.
असम से बिहार तक का सफर
मूलरूप से बिहार के बक्सर के रहने वाले असम कैडर के आईपीएस रहे आनंद मिश्रा ने भी लोकसभा चुनाव में अपनी किस्मत को आजमाया था. लेकिन उनको भी सफलता नहीं मिली. आनंद मिश्रा ने भी स्वतंत्र रूप से पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव में अपनी किस्मत को आजमाया था लेकिन उनको भी सफलता नहीं मिली थी. हालांकि बाद में वह जन सुराज में शामिल हो गए.
कुछ ही रहे सफल
वैसे आइपीएस जिन्होंने राजनीति में अपने सफर को शुरू किया, उनमें चंद ही ऐसे नाम हैं, जिनको सफलता मिली है. इनमें सबसे अहम नाम बिहार के वर्तमान शिक्षा मंत्री सुनील कुमार का है. सुनील कुमार ने जदयू की सदस्यता ली थी. इसके बाद उन्होंने भोरे विधानसभा क्षेत्र से जदयू की टिकट पर चुनाव लड़ा और वर्तमान में शिक्षा मंत्री हैं. इसी प्रकार तत्कालीन बिहार में पटना के सिटी एसपी रहे अजय कुमार भी झारखंड बनने के बाद जमशेदपुर से कांग्रेस की टिकट पर जीत कर लोकसभा पहुंचे थे. उसी प्रकार तत्कालीन बिहार के आईपीएस रहे तथा झारखंड बनने के बाद डीजीपी रहे बीडी राम को भी सफलता मिली. वो अभी पलामू से सांसद हैं. इसके अलावा औरंगाबाद के मूल निवासी तथा दिल्ली कैडर के आईपीएस निखिल कुमार और बेगूसराय के सांसद रहे ललित विजय सिंह के नाम भी शामिल हैं.
पहचान बनाने की इनकी भी है कोशिश
वर्तमान में मूलरूप से बिहार के रहने वाले ऐसे आईपीएस भी हैं, जो वर्तमान में बिहार में अपनी राजनैतिक जमीन को तलाश रहे हैं. इनमें तमिलनाडु के डीजीपी रहे करूणा सागर, दिल्ली में डीसीपी रहे वीके सिंह के नाम भी शामिल है. तमिलनाडु के डीजीपी रहे करुणा सागर ने रिटायरमेंट के बाद राजद को ज्वाइन किया हालांकि बाद में वह कांग्रेस में शामिल हो गए. वहीं वीके सिंह ने रिटायरमेंट के बाद मुकेश सहनी की पार्टी को ज्वाइन किया और फिलहाल वह पार्टी के थिंक टैंक हैं.