नई दिल्ली : पिछले लोकसभा चुनाव (2019) में भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश में वोट शेयर के मामले में अपने इतिहास का सबसे अच्छा प्रदर्शन किया था। भाजपा को कुल मतों का 49.6 प्रतिशत मिला था। बावजूद इसके भाजपा, कांग्रेस का 34 साल पुराना रिकॉर्ड नहीं तोड़ पायी थी।
1985 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में हुए कुल मतदान का 51.3 प्रतिशत वोट मिला था। हालांकि पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने बहुत खराब प्रदर्शन किया था। पार्टी का वोट प्रतिशत 6.31 प्रतशित रह गया है।
सपा के साथ भाजपा का मुकाबला करने मैदान में उतरी कांग्रेस
लोकसभा चुनाव-2024 से कुछ सप्ताह पहले देश के सबसे ज्यादा सीटों वाले राज्य उत्तर प्रदेश में INDIA गठबंधन, अपने साथ समाजवादी पार्टी को जोड़ने में कामयाब हुई है। यूपी कांग्रेस के प्रभारी अविनाश पांडे के मुताबिक, कांग्रेस यूपी की 80 में से 17 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। शेष सीटों पर सपा समेत इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार जोर आजमाएंगे। ध्यान रहे कि सपा उम्मीदवारों की तीन सूची जारी कर चुकी है।
पिछले दो लोकसभा चुनावों (2014-2019) में भारतीय जनता पार्टी ने यूपी में विपक्ष का सूपड़ा लगभग साफ कर दिया था। 2014 और 2019 में सपा जहां पांच सीट बचाने में कामयाब हुई थी। वहीं कांग्रेस 2014 में दो और 2019 में केवल एक सीट ही बचा पाई थी। जहां तक सत्ताधारी भाजपा की बात है तो उसने 2014 में 88.8% और 2019 में 77.5% सीटों पर जीत हासिल की थी। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या सपा और कांग्रेस के साथ आने से 2024 के चुनाव में भाजपा के प्रभुत्व को चुनौती मिल पाएगी? आइए समझते हैं:
सपा के मुकाबले कहां खड़ी है कांग्रेस?
सपा ने 2019 का चुनाव बहुजन समाज पार्टी (BSP) और राष्ट्रीय लोक दल (RLD) के साथ गठबंधन में लड़ा था। सपा राज्य की 80 लोकसभा सीटों में से केवल 37 पर चुनाव लड़ी थी। आगामी लोकसभा चुनाव के लिए घोषित गठबंधन में सपा वरिष्ठ भागीदार है, जो 80 में से 63 सीटों पर चुनाव लड़ सकती है। इस तरह कांग्रेस उत्तर प्रदेश में पहली बार इतनी कम सीटों पर लोकसभा चुनाव लड़ रही है।
2009 में सपा 75 और कांग्रेस 69 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। तब सपा का वोट शेयर 23.3 प्रतिशत था और कांग्रेस का वोट शेयर 18.3 प्रतिशत था। 2014 में सपा 78 और कांग्रेस 67 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। उस चुनाव में सपा का वोट शेयर 1.1 प्रतिशत गिरकर 22.2 प्रतिशत पर पहुंच गया। वहीं कांग्रेस का वोट शेयर 10.8 प्रतिशत गिरकर मात्र 7.5 प्रतिशत रह गया।
असल में वोट शेयर के मामले में सपा का प्रदर्शन कांग्रेस के विपरीत काफी हद तक ठीक रहा है। 1998 में सपा पहला लोकसभा चुनाव लड़ी थी और उसका वोट शेयर 28.7 प्रतिशत था। पिछले लोकसभा चुनाव (2019) में वोट शेयर 10 प्रतिशत से ज्यादा गिरकर 18.0 प्रतिशत पर पहुंच गया है। वहीं कांग्रेस जिसका वोट शेयर 1985 के लोकसभा चुनाव में 51.3 प्रतिशत था, अब 6.3 प्रतिशत रह गया है।
ऐसे में कांग्रेस का गठबंधन का हिस्सा बनने के लिए सहमत होना दर्शाता है कि वह आखिरकार राज्य में अपने कम होते प्रभाव को स्वीकार कर रही है और सामंजस्य बैठाने की कोशिश कर रही है।
भाजपा की सीट घटी है लेकिन वोट बढ़ा है
पिछले दो लोकसभा चुनावों के परिणाम देखें तो उत्तर प्रदेश में भाजपा की सीटें कम हुई हैं। 2014 में भाजपा 71 सीटें जीती थी, यह कुल निर्वाचन क्षेत्रों का 88.8 % है। 2019 में भाजपा 62 सीटें जीती थी, यह कुल निर्वाचन क्षेत्रों का 77.5% है। आंकड़ों से साफ पता चलता है कि भाजपा की सीटें घटी हैं। लेकिन वोट शेयर के आंकड़े बताते हैं कि भाजपा की लोकप्रियता बढ़ी है। 2014 में भाजपा का वोट शेयर 42.3 प्रतिशत था, जो 2019 में बढ़कर 49.6 प्रतिशत हो गया। यानी भाजपा के वोट शेयर में 7.2 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। 2014 और 2019 दोनों में जिन 77 संसदीय क्षेत्रों में भाजपा ने चुनाव लड़ा, उनमें से 71 पर भाजपा का वोट शेयर बढ़ा है।