नई दिल्ली : पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों में छत्तीसगढ़ ही एक ऐसा राज्य है जहां दो चरणों में मतदान होना है। पहले चरण का मतदान 7 नवंबर को और दूसरे चरण का 17 नवंबर को होगा। साल 2003 से लेकर 2018 तक बीजेपी 15 सालों इस राज्य की सत्ता पर काबिज रही लेकिन इसके बावजूद राज्य की पांच सीटें ऐसी थी जहां पार्टी कुछ खास कमाल नहीं दिखा सकी। ये पांच सीटें हैं सीतापुर, पाली तानाखार, कोटा, मरवाही और खरसिया।
इस बार भी बीजेपी सत्ता में वापसी की हर संभव कोशिश कर रही है। साथ ही इन पांच सीटों पर किस्मत बदलने की भी कोशिश जारी है। इस बीच एक नजर डालत हैं उन पांच सीटों पर जो हमेशा बीजेपी की पकड़ से दूर रहीं। 1952 से सरगुजा संभाग का सीतापुर विधानसभा क्षेत्र कांग्रेस का गढ़ रहा है। साल 2000 में छत्तीसगढ़ के गठन के बाद से इस सीट से कांग्रेस के अमरजीत भगत लगातार जीतते रहे हैं और वह 17 नवंबर को लगातार पांचवीं बार फिर से चुनावी मैदान में उतरेंगे। वहीं बीजेपी की ओर से इस साल रिटायर्ड सैन्यकर्मी रामकुमार टोप्पो इस सीट से किस्मत आजमाएंगे।
पाली तानाखार सीट का क्या हाल?
वहीं बात करें पाली तानाखार सीट की तो इस सीट पर भी अब तक कांग्रेस का ही कब्जा रहा है। हालांकि कांग्रेस ने इस साल मौजूदा विधायक के बजाए नए चेहरे पर दाव लगाया है। इस सीट से कांग्रेस की ओर से दुलेश्वरी सिद्दर को टिकट दिया गया है जबकि बीजेपी की ओर से पूर्व विधायक रामदयाल उइके मैदान में है।
कोटा सीट से भी बीजेपी की हर बार हार
बिलासपुर की कोटा सीट पर भी बीजेपी एक बार भी जीत दर्ज नहीं कर सकी है। इस सीट पर अब तक 14 बार चुनाव हो चुका है लेकिन हर बार बीजेपी को हार का मुंह देखना पड़ा। छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री की पत्नी डॉ. रेनू जोगी कांग्रेस के टिकट पर इस सीट से विधायक बनीं. इसके बाद साल 2018 में उन्होंने जेसीसी-जे के उम्मीदवार के तौर पर जीत हासिल की। अब एक बार फिर वो इस सीट से अपनी किस्मत आजमा रहीं हैं। वहीं बीजेपी की तरफ से प्रबल प्रताप सिंह पर अपना भरोसा जताया गया है।
मरवाही क्षेत्र कांग्रेस का गढ़
मरवाही क्षेत्र को भी कांगेस का ही गढ़ माना जाता है। पहले अजीत जोगी इस सीट का प्रतिधित्व करते थे बाद उनके बेटे अमित जोगी को चुना गया। साल 2018 में अजित जोगी ने अपनी पार्टी जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ का गठन किया और इस सीट से जीत हासिल की। अब इस सीट पर कांग्रेस की ओर से केके ध्रुव और बीजेपी की तरफ से प्रणव पच्ची चुनावी मैदान में है। इसी तरह बात रायगढ़ की खरसिया सीट पर भी अभी तक कांग्रेस ने ही जीत का परचम लहराया है और ये पार्टी की पारंपरिक सीट रही है। साल 2018 में इस सीट से उमेश पटेल ने जीत हासिल की थी। इससे पहले झीरम घाटी माओवादी नरसंहार में उनके पिता नंदकुमार पटेल की हत्या कर दी गई थी।