भोपाल। मध्यप्रदेश की सबसे हाईप्रोफाइल सीटों में शामिल छिंदवाड़ा इस बार यूं तो अनेक कारणों से चर्चाओं में है, लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के अपने इस दरकते ‘किले’ को बचाने की चुनौती और भारतीय जनता पार्टी के इस संसदीय क्षेत्र के रूप में ’29वां’ कमल हासिल करने के हरसंभव प्रयासों ने इसे समूचे राज्य में सर्वाधिक चर्चाओं का कारण बना दिया है।
पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के सबसे दिग्गज नेताओं में से एक कमलनाथ के गृह क्षेत्र छिंदवाड़ा को भाजपा कई सालों से भेद नहीं पाई है। पिछले लोकसभा चुनाव में भी राज्य की 29 संसदीय सीटों में से एकमात्र यही सीट उसके हाथ से फिसली थी। यही कारण है कि हालिया विधानसभा चुनावों में प्रचंड जीत से बेहद उत्साहित भाजपा लोकसभा चुनाव में अब ये ’29वां कमल’ खिलाने और इस संसदीय क्षेत्र में समूचे राज्य के विधानसभा चुनाव जैसे परिणाम दोहराने की कोशिश में है।
हालांकि विधानसभा चुनाव में छिंदवाड़ा संसदीय क्षेत्र की सातों विधानसभाएं कांग्रेस के खाते में गई हैं, लेकिन भाजपा का दावा है कि इस सीट पर भी इस बार ‘भगवा’ ध्वज फहरने वाला है। भाजपा की इन कोशिशों को पिछले दिनों तब और बल मिला, जब इस संसदीय क्षेत्र के अमरवाड़ा विधानसभा के कांग्रेस विधायक कमलेश शाह, छिंदवाड़ा के महापौर विक्रम अहाके और इस क्षेत्र के कद्दावर नेता और पूर्व मंत्री दीपक सक्सेना ने अपने समर्थकों के साथ कांग्रेस को अलविदा कह कर भाजपा का दामन थाम लिया। ये सभी नेता श्री कमलनाथ के बेहद करीबी माने जाते हैं। ऐसे में श्री कमलनाथ के सामने अब अपने इस दरकते किले को बचाने की बड़ी चुनौती है।
आपातकाल के समय से ही श्री कमलनाथ इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते आ रहे हैं। हालांकि हवाला कांड में 1995-96 में नाम आने के बाद श्री कमलनाथ ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद 1996 में यहां से उनकी पत्नी अलकानाथ सांसद चुनी गईं। श्री कमलनाथ के हवाला कांड में बरी होने के बाद उनकी पत्नी ने सांसद पद से त्यागपत्र दे दिया। इसके बाद हुए उपचुनाव में श्री कमलनाथ को यहां भाजपा के सुंदरलाल पटवा से शिकस्त झेलनी पड़ी। हालांकि उसके बाद हुए 1998 में हुए आम चुनाव में एक बार फिर से श्री कमलनाथ सांसद चुन लिए गए। उसके बाद से ये सीट कांग्रेस के ही पास है।
कांग्रेस ने इस बार इस सीट से एक बार फिर श्री कमलनाथ के पुत्र नकुलनाथ को चुनावी मैदान में उतारा है। वहीं भाजपा यहां से भाजपा के जिलाध्यक्ष और छिंदवाड़ा विधानसभा से पार्टी के प्रत्याशी रहे विवेक बंटी साहू के भरोसे है। आदिवासी बहुल लेकिन सामान्य श्रेणी की इस सीट से इन दोनों को मिला कर कुल 15 प्रत्याशी चुनावी मैदान में हैं। यहां लोकसभा चुनाव के पहले चरण में 19 अप्रैल को मतदान होना है। ये संसदीय क्षेत्र सात विधानसभा क्षेत्रों से मिलकर बना है, जिनमें से तीन अनुसूचित जनजाति, एक अनुसूचित जाति सुरक्षित है। तीन सीटें सामान्य हैं। हालिया विधानसभा चुनाव में ये सभी कांग्रेस के खाते में गईं थीं।
छिंदवाड़ा के कांग्रेस नेताओं को भाजपा में शामिल कराने की प्रक्रिया के दौरान मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव और भाजपा की प्रदेश इकाई के अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा ने लगातार इस बात पर जोर दिया कि पार्टी इस बार ’29 कमल के फूलों की माला’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सौंपेगी। अपने इसी प्रयास को फलीभूत करने पार्टी ने अपने कद्दावर नेता और राज्य के कैबिनेट मंत्री कैलाश विजयवर्गीय को छिंदवाड़ा संसदीय क्षेत्र का जिम्मा सौंपा है। श्री विजयवर्गीय लोकसभा चुनाव की घोषणा के साथ ही छिंदवाड़ा में डटे हैं और यहां ‘हर बूथ पर कमल खिलाने’ के प्रयासों में जुटे हैं। इसके साथ ही भाजपा के पूरे संगठन का इस सीट पर खासा जोर है।
दूसरी ओर कांग्रेस इस सीट को पूरी तरह श्री कमलनाथ और उनके परिवार के भरोसे छोड़े हुए है। यही कारण है कि कांग्रेस के किसी बड़े नेता का इस संसदीय क्षेत्र में प्रचार के लिए आगमन नहीं हुआ। हालांकि श्री नकुलनाथ के नामांकन दाखिले के दौरान पार्टी की प्रदेश इकाई के अध्यक्ष जीतू पटवारी यहां आए, लेकिन उसके बाद से पार्टी का कोई बड़ा नेता यहां नहीं पहुंचा।
ये सीट दो दिन से एक बार फिर उस समय बेहद चर्चाओं में आ गई, जब कथित तौर पर भाजपा प्रत्याशी से जुड़े एक मामले को लेकर पुलिस श्री कमलनाथ के आवास पर छानबीन के लिए पहुंची। इस मामले में दो लोगों पर मामला दर्ज होने ने इस सीट से जुड़ी राजनीति को और गर्मा दिया है।
कांग्रेस का दावा है कि लोकसभा चुनाव में छिंदवाड़ा एक बार फिर कांग्रेस पर ही भरोसा जताएगा। इस संबंध में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी के मीडिया सलाहकार के के मिश्रा ने कहा कि छिंदवाड़ा को लेकर भाजपा की स्थिति देखते हुए ऐसा लग रहा है कि देश की कुल 543 सीटों में से चुनाव सिर्फ छिंदवाड़ा में ही हो रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि जिस निम्नतम स्तर पर भाजपा आ चुकी है, वह लोकतंत्र की लूट के खतरे का स्पष्ट प्रमाण है। प्रशासनिक और राजनीतिक आतंकवाद परोसकर मतदाताओं और कांग्रेस को डराया जा रहा है।