नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव अपने पूरे रंग में नजर आ रहा है। बहुत से नेता पुराने दल को छोड़ नए चुनावी रथ पर सवार हो रहे हैं। यह हाल पूरे देश में देखने को मिल रहा है। लेकिन देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश का हाल कुछ और ही नजर आ रहा है। इसी कड़ी में यूपी की भदोही लोकसभा सांसद को लेकर भी ऐसी चर्चा चल रही है कि वो जल्दी ही पाला पदल सकते हैं।
यूपी के पूर्वांचल में चुनाव आखिरी चरण यानी 1 जून को होना है। जिसको लेकर अभी नामांकन प्रक्रिया चल रही है। इसी बीच खबर आ रही है कि भदोही से बीजेपी सांसद रमेश चंद बिंद सपा में शामिल हो सकते हैं। इतना ही नहीं उम्मीद तो ये भी जताई जा रही है कि रमेश मिर्जापुर से केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल के खिलाफ सपा प्रत्याशी भी हो सकते हैं।
मंझवा से विधायक को बीजेपी ने बनाया प्रत्याशी
साल 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले पहले बीजेपी ज्वाइन करने वाले रमेश चंद बिंद को भाजपा ने भदोही से प्रत्याशी बनाया था। जहां से रमेश बसपा उम्मीदवार रंगनाथ मिश्रा को हराकर पहली बार संसद पहुंचे थे। मिर्जापुर के रहने वाले साल 2002 से लेकर 2017 तक मिर्जापुर की ही मंझवा विधानसभा से 3 बार विधायक रहे। इस बार भारतीय जनता पार्टी ने भदोही से रमेश बिंद की जगह डॉ. विनोद बिंद को प्रत्याशी बनाया है। जो वर्तमान में निषाद पार्टी से मिर्जापुर की मंझवा विधानसभा से विधायक हैं।
सपा प्रत्याशी को नामांकन करने से रोक
भदोही लोकसभा सीट को सपा ने इंडिया गठबंधन के तहत तृणमूल कांग्रेस को दी है। जहां से यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कमलापति त्रिपाठी के पोते ललितेश पति त्रिपाठी को ममता बनर्जी ने उम्मीदवार बनाया है। वहीं सपा ने मिर्जापुर से राजेंद्र एस. बिंद को प्रत्याशी बनाया है। राजेंद्र आज अपना नामांकन भी करने वाले थे। लेकिन जानकारी के अनुसार उनको पार्टी द्वारा नामांकन करने से रोक दिया गया है। जिसके बाद राजेंद्र ने रमेश बिंद पर वीडियो जारी करते हुए आरोप लगाया है कि रमेश बिंद उनका टिकट कटवा रहे हैं।
बिंद जाति का पूर्वांचल में है प्रभाव
चूंकि यूपी के पूर्वांचल में बिंद जाति का अच्छा प्रभाव माना जाता है। लोकसभा चुनाव के पहले भाजपा ने बिंद समाज से आने वाली संगीता बलवंत राज्यसभा सांसद बनाया है। इससे पहले वो गाजीपुर की सदर सीट से 2017 से 22 में विधायक थीं। जबकि रमेश बिंद की जगह पर विनोद बिंद को प्रत्याशी बनाया है। ऐसे में रमेश बिंद के बीजेपी छोड़ने से सपा को फायदा मिलने के आसार हैं। हालांकि प्रत्याशी बदलने की वजह से नकारात्मक छवि भी देखने को मिलती है।