अजय द्विवेदी की रिपोर्ट
भोपाल। लॉकडाउन की अवधि के भेजे जा रहे भारी भरकम बिजली बिल भले ही अभी जनता, उद्योगपति और व्यवसायियों को हलाकान किए हों, मगर उपचुनाव में शिव सरकार को इसका झटका लगना तय है। बिजली बिल में अनुमानित खपत के आधार पर भेजे जा रहे मनमाने बिल को लेकर जनता और उद्योगपतियों ने जहां आस्तीनें चढ़ा ली हैं, वहीं अब ‘अपने’ भी सरकार का सिरदर्द बढ़ा रहे हैं। कल तक कांग्रेस बिजली बिलों को लेकर सरकार को कोस रही थी अब भाजपा नेताओं ने भी मोर्चा खोल दिया है। दबी जुबान में तो कार्यकर्ता भी इसे सरकार के लिए संकट बता रहे हैं।
तत्कालीन कमलनाथ सरकार मध्यम और निम्न आय वर्ग वाली जनता के बीच अगर तेजी से लोकप्रिय हो रही थी तो उसमें घटे हुए बिजली के बिलों की अहम भूमिका थी। कमलनाथ सरकार ने इंदिरा गृह ज्योति अभियान के जिस फार्मूले के तहत प्रदेश के सभी उपभोक्ताताओं को बिजली के बिलों में रियायत दी उसको जनता ने तहे दिल से स्वीकार किया। कमलनाथ सरकार द्वारा उपभोक्ताओं को बिजली के बिलों में दी गई इस छूट के लाभ का आधार बनाया गया विद्युत की खपत। तत्कालीन कमलनाथ सरकार द्वारा तय किया गया कि अगर आप विद्युत की खपत कम करते हैं तो आपको बिजली का बिल भारी नहीं पड़ेगा। पर अगर आप खपत पर संयम नहीं लगाते है तो फिर तय दर पर ही आपको भुगतान करना होगा। फिर चाहे वो किसी भी श्रेणी का उपभोक्ता हो। तत्कालीन कमलनाथ सरकार की इस योजना को उपभोक्ताओं ने हाथो हाथ लिया। जिसका परिणाम प्रदेश में कम विद्युत खपत के रूप में देखा जाने लगा। कम बिल आए इस चक्कर में लोगों ने विद्युत बचत की ओर अग्रसर हुए।
प्रदेश में कमलनाथ की सरकार जाते और पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सरकार आते ही सबसे पहले जिन प्रमुख योजनाओं पर कैची चलाई गई उसमें से एक थी इंदिरा गृह ज्योति योजना। सरकार ने इस योजना को समाप्त करके लाकडाउन में ही संबल योजना की शुरूआत कर दी। ऐसे दौर में जब लोग अपने घरों में कैद थे शिवराज सरकार द्वारा चलाई गई यह योजना प्रदेश के उपभोक्ताओं पर भारी पड़ी। इसके अलावा लगातार दो महीने तक बिजली के मीटरों की रीडिंग नहीं ली गई। और बिजली के बिल को देने का आधार गत वर्ष की विद्युत खपत तय की गई है। परिणाम यह रहा कि मार्च तक जिन उपभोक्ताओं ने बिजली के बिलों का प्रतिमाह भुगतान 100 रुपये से कम कर रहे थे अब उनके घरों में विद्युत का बिल 1000 रुपये से ज्यादा आने लगा। लाकडाउन के ऐसे उपभोक्ताओं की संख्या बहुत अधिक हैं जिनके आय के सभी साधन खत्म हो चुके थे, जिनमें रेड़डी लगाने वाले, फुटपाथ में दैनिक रोजमर्रा की वस्तुओं का विक्रय करने वाले, खाने पीने की हल्की फुल्की वस्तुओं का विक्रय करने वाले लोगों की गत दो महीने से बिल्कुल भी आय नहीं हुए। इनमें भी कई वर्ग ऐसा है जो रोज कमाता और रोज खाता था। दो महीने से आय के साधन ठप होने के बाद अगर किसी उपभोक्ता के 1000 रुपये से अधिक विद्युत बिल का भुगतान करना पड़े तो प्रदेश सरकार के प्रति उनमें गुस्से का इजहार होना लाजिमी है।
अब अपने ही घेर रहे हैं शिवराज सरकार को
प्रदेश में आ रहे मनमानी के बिजली के बिल को लेकर अब अपने भी शिवराज सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रहे हैं। पिछली बार शिवराज कैबिनेट में मंत्री रहीं अर्चना चिटनीस ने बुरहानपुर कलेक्टर को पत्र लिखकर बिजली बिलों का मुद्दा उठाया है। उनका कहना है कि कृषि, उद्योग एवं घरेलू बिजली के बिलों की वसूली विपदा की इस घड़ी में समाज के साथ सामंजस्य स्थापित कर ही की जाए। भाजपा नेता गोविंद मालू ने भी महंगे बिल पर सरकार को घेरा है। सिंधिया कैंप के कुछ पूर्व विधायकों ने भी क्षेत्र में नाराजगी बढ़ने की बात कही है। अब पता नहीं बिजली कंपनी की इस कारगुजारी की जानकारी सरकार को है या नहीं।
उद्योग-धंधे दो माह से बंद
कोरोना संकट के चलते लॉकडाउन होने से पूरी तरह बंद हो चुके प्रदेश के करीब छह हजार से छोटे-बड़े उद्योगों को फिर से शुरू होने के पहले ही बिजली के बिलों ने झटका दे दिया है। यह बिल उस दौर के हैं, जब पूरी तरह से उद्योग बंद थे। यह सरकार की दोहरी नीति का परिचायक है। एक तरफ सरकार उद्योगों को फिर से खड़ा करने के प्रयास कर रही है तो वहीं दूसरी तरफ इस तरह के मनमाने बिल थमा रही है। प्रदेश में इस तरह के 700 बड़े और 5500 सूक्ष्म, लघु व मध्यम श्रेणी के उद्योग हैं। लॉकडाउन के चलते प्रदेश में मार्च-अप्रैल माह में उद्योगों में पूरी तरह से उत्पादन बंद रहा है, फिर भी बिजली विभाग द्वारा उद्योगों को लोड एग्रीमेंट्स और दूसरे चार्जेस के चलते बिजली वास्तविक खपत के हिसाब से 129 रुपए प्रति यूनिट के हिसाब से बिजली बिल थमा दिए गए हैं। मनमाने बिल मिलने के बाद अब मप्र टेक्सटाइल मिल्स एसोसिएशन, भारतीय उद्योग परिसंघ, फेडरेशन ऑफ मप्र चैंबरऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज ने राज्य सरकार के खिलाफ विरोध दर्ज कराया है और ऑनलाइन धरना देकर इरादे जता दिए हैं।
दूसरे राज्यों से सीखे सरकार
मप्र सरकार को दूसरे राज्यों से सीख लेनी चाहिए। पंजाब, हरियाणा ने फिक्स चार्ज दो माह, आंध्र प्रदेश ने तीन माह के लिए हटाया। यूपी ने फिक्स चार्ज हटाया। बिजली बिल वास्तविक खपत के आधार पर आएंगे। लीज रेंट, जल शुल्क, सीवर चार्ज 30 जून तक का माफ किया। गुजरात ने अप्रैल का फिक्स चार्ज शून्य किया, मार्च-अप्रैल के बिल जमा करने में छूट दी। ऐसा ही कई और राज्य कर चुके हैं। तो मप्र इस ओर कदम क्यों नहीं बढ़ाता।
इस मांग पर ध्यान ही नहीं
उद्योगों ने मांग की है कि जून तक विलंब शुल्क, फिक्स चार्ज और हर तरह की ड्यूटी से छूट मिले। फिक्स चार्ज, डिमांड चार्ज 22 मार्च से जून तक हटाया जाए। वास्तविक खपत के आधार पर ही बिल लें। लॉकडाउन में पावर फेक्टर गिरने से ली जाने वाली पेनाल्टी से राहत दी जाए। जून के बाद अगले तीन माह तक विलंब शुल्क न लिया जाए। बिजली बिल पर लगने वाले शुल्क अगले छह माह के लिए माफ किया जाए।
कांग्रेस पहले से ही हमलावर, कमलनाथ बोले…माफ हों बिल
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने कहा कि प्रदेश सरकार लॉकडाउन को देखते हुए प्रदेश की जनता का तीन माह का बिजली बिल तत्काल माफ करे। बिजली बिलों को लेकर हम शिवराज सरकार से कई बार मांग कर चुके हैं, लेकिन सरकार सिर्फ वाह-वाही लूटने में लगी है। उन्होंने कहा कि देश के अन्य राज्यों की तरह प्रदेश सरकार भी उद्योगों को इस संकटकाल में भी आ रहे भारी भरकम बिजली बिलों में राहत प्रदान करे। लॉकडाउन की अवधि में करीब 60 दिन से उद्योग बंद पड़े हैं, फिर भी उन्हें लाखों के बिल थोपे जा रहे हैं। फिक्स चार्ज से लेकर न्यूनतम यूनिट चार्ज, लाइन लॉस चार्ज, विलंब चार्ज सहित अन्य चार्ज में लॉकडाउन की अवधि में सरकार छूट प्रदान कर उन्हें राहत प्रदान करे।