भोपाल। हिमाचल प्रदेश और दिल्ली नगर निगम में एंटी इनकंबेंसी का असर देखने के बाद भाजपा नेतृत्व को मध्यप्रदेश में और कर्नाटक को लेकर चिंता है। दोनों ही राज्यों में एंटी इनकम्बेंसी की प्रभावी उपस्थिति मानी जा रही है। कर्नाटक दक्षिण का राज्य है वहां की स्थितियां अलग हैं, लेकिन मध्यप्रदेश को लेकर भाजपा और संघ का नेतृत्व अधिक चिंतित है। खास बात यह है कि मध्यप्रदेश में भाजपा के संगठन और सत्ता के चेहरों में अधिक बदलाव नहीं आया है। मंत्रिमंडल के 60 फीसदी से अधिक सदस्य वही हैं जो बार-बार विधायक और मंत्री बनते हैं। यही बात अन्य नेताओं के संदर्भ में भी की जा सकती है।
भाजपा ने संगठन में जरूर उम्र के फार्मूले को लागू कर नए चेहरों को मौका दिया है लेकिन सत्ता के चेहरे वही हैं जो 2003 से लगातार विधायक या मंत्री हैं। इनमें से कुछ मंत्री ऐसे हैं जो पुराने होने के बावजूद प्रभावी नहीं रह गए हैं। केंद्रीय नेतृत्व मानता है कि ऐसे सभी विधायकों और मंत्रियों के कारण एंटी इनकम्बेंसी यानी सरकार विरोधी भावना बढ़ती है। इसलिए पार्टी का नेतृत्व मध्यप्रदेश के सत्ता और संगठन में बड़ी सर्जरी करने के पक्ष में है। इस संबंध में पिछले तीन दिनों से भोपाल और दिल्ली में मुख्यमंत्री के साथ संगठन नेताओं ने कई दौर की वार्ता की है।
सूत्रों के अनुसार 2023 के विधानसभा और 2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर भाजपा की प्रदेश इकाई ने क्या रणनीति बनाई है और क्या एक्शन प्लान है। इसको लेकर केंद्रीय नेतृत्व ने फीडबैक मांगा है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा दिल्ली जाकर आए हैं। प्रदेश प्रभारी पी मुरलीधर राव, राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री शिव प्रकाश और क्षेत्रीय संगठन महामंत्री अजय जामवाल के साथ ही प्रदेश संगठन महामंत्री हितानंद भी दो दिन तक दिल्ली में थे। सत्ता और संगठन के कामकाज को लेकर क्षेत्रीय संगठन माहमंंत्री अजय जामवाल ने एक रिपोर्ट तैयार की है जो दिल्ली को सौंपी जा चुकी है। सूत्रों के अनुसार प्रदेश इकाई से अलग से फीडबैक मांगा गया है।
सूत्रों का कहना है कि केंद्रीय नेतृत्व मध्यप्रदेश में बड़े पैमाने पर बदलाव चाहता है, जैसा गुजरात मेें किया गया लेकिन भाजपा का प्रदेश नेतृत्व चौंकाने वाली बड़ी सर्जरी करने के लिए तैयार नहीं है। इस वजह से थोड़ी असमंजस की स्थिति है। इस बीच 19 दिसम्बर से चार दिन तक विधानसभा का सत्र चलेगा। सूत्रों का कहना है कि विधानसभा के शीतकलीन सत्र के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा दिल्ली जाकर चर्चा करेंगे। उसी के बाद मंत्रिमण्डल में फेरबदल किया जाएगा। उसी के बाद मंत्रिमण्डल में फेरबदल किया जाएगा। वैसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी संसद के शीतकालीन सत्र के बाद केंद्रीय मंत्रिमण्उल में भी फेरबदल करना चाहते हैं, इसके संकेत भी मिले हैं। देखना होगा कि पहले केंद्रीय मंत्रिमण्डल में फेरबदल होता है या मध्यप्रदेश के मंत्रिमण्डल में।
सूत्रों का कहना है कि आलाकमान एक दर्जन मंत्रियों की छुट्टी चाहता है। जबकि मुख्यमंत्री तीन या चार चेहरों को ही हटाना चाहते हैं। जबकि मुख्यमंत्री तीन या चार चेहरों को ही हटाना चाहते हैं। मध्यप्रदेश भाजपा का नेतृत्व मानता है कि गुजरात जैसी सर्जरी करने की मध्यप्रदेश में आवश्यकता नहीं पड़ेगी। मध्यप्रदेश के नेतृत्व को यह भी लगता है कि नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव ने यह साबित किया है कि मध्यप्रदेश में एंटी इनकम्बेंसी हिमाचल प्रदेश या दिल्ली नगर निगम जैसी नहीं है। जो थोड़ी बहुत है। उसे संगठन अपने नेटवर्क के जरिये कम कर लेगा। प्रदेश इकाई और केंद्रीय नेतृत्व के आकलन में एंटी इनकम्बेंसी को लेकर अंतर है। इस संबंध में केंद्र ने अलग-अलग रिपोर्ट्स बुलाई है। इस संबंध में केंद्रीय नेतृत्व एक बार और प्रादेशिक नेताओं से विचार-विमर्श करेगा उसी के बाद अंतिम निर्णय लिया जाएगा।