नई दिल्ली : राजस्थान का इतिहास ही राजपूतों का इतिहास रहा है. संख्या बल में अन्य जातियों से कम होने के बावजूद प्रतिनिधित्व के मामले में सभी पर भारी पड़ते रहे हैं राजपूत. यही कारण रहा है कि कोई भी पार्टी इनकी अनदेखी नहीं करती रही है. 2018 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी की हार का सबसे बड़ा कारण राजपूतों की नाराजगी ही रही.2023 में भी बीजेपी के हाल ही में लिए फैसलों से यही लग रहा है कि पार्टी राजपूत वोटों को लेकर कन्फ्यूज है या दबाव में है.
पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी के संस्थापकों में से एक रहे भैरोसिंह शेखावत के दामाद का टिकट कटने के बाद पार्टी हड़बड़ी में दिख रही है. महाराणा के वंशज विश्वराज सिंह मेवाड़ और करणी सेना के संस्थापक के पुत्र भवानी सिंह कल्वी को वोटिंग के एक महीने पहले आनन फानन में पार्टी में शामिल कराने से तो यही लगता है. तो क्या राजस्थान में बीजेपी राजपूत वोटों को लेकर संदेह में है?
राजपूत क्यों हैं निर्णायक?
राजस्थान में राजपूतों की जनसंख्या कुल 8 से 10 प्रतिशत के ही करीब है. जो अपनी प्रतिद्वद्वी जातियों जाटों और गुर्जरों के मुकाबले काफी कम है. पर राजनीतिक हैसियत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि राज्य के हर विधानसभा चुनाव में करीब 14 से 15 प्रतिशत विधायक इसी समुदाय के चुने जाते हैं. जबकि लोकसभा चुनावों में यह प्रतिशत कभी-कभी 20 प्रतिशत तक पहुंच जाता रहा है. राजस्थान के करीब 120 विधानसभा सीटों से राजपूत समुदाय के प्रत्याशी कभी न कभी अपना परचम लहरा चुके हैं. कहने का मतलब यह है कि जिन सीटों पर इस समुदाय की जनसंख्या कम है वहां से भी राजपूत चुने जाते रहे हैं.
2018 से बीजेपी को लेना चाहिए सबक
2014 में बीजेपी के कद्दावर नेता जसवंत सिंह का टिकट कटने से शुरू हुई राजपूत समाज की नाराजगी दिन प्रति दिन बढती गई.वसुंधरा सरकार के समय राजकुमारी दीया सिंह के होटल का प्रकरण, आनंदपाल के एनकाउंटर , सामराऊ प्रकरण , चतुर सिंह एनकाउंटर आदि को लेकर राजपूतों में राज्य सरकार के प्रति जो नाराजगी पैदा हुई वो 2108 के चुनावों में नजर आई थी. इसके साथ ही गजेंद्र सिंह शेखावत को प्रदेश अध्यक्ष न बनाए जाने को लेकर राजपूतों में नाराजगी रही. समुदाय में ऐसा संदेश गया प्रदेश की तत्कालीन सीएम वसुंधरा राजे के विरोध के चलते अपेक्षाकृत कम लोकप्रिय चेहरा मदन लाल सैनी को राजस्थान बीजेपी का अध्यक्ष बनाया गया.यही सब कारण रहा है कि कांग्रेस से अधिक बीजेपी ने राजपूतों को टिकट बांटा पर वोट कांग्रेस से अधिक नहीं पा सके.
2 सालों से बीजेपी राजपूतों को मनाने का कर रही थी जतन
2018 चुनावों में मिली हार के चलते बीजेपी संगठन करीब 2 साल पहले से ही राजपूत समुदाय को मनाने में जुट गया था. 2022 अगस्त में दुर्गादास राठौर और पन्ना धाय की मूर्ति का अनावरण राजनाथ सिंह से कराकर राजपूत समाज को संदेश देने की कोशिश शुरू हो गई थी. बाद में प्रदेश के तीन बार सीएम रहे भैरो सिंह शेखावत का 100वां जन्मदिन बड़े पैमाने पर करने की योजना बनाई गई. बीजेपी ने पूर्व सीएम शेखावत के जन्मशती महोत्सव से राजपूत मतदाताओं को साधने के लिए 5 महीने का वोटर कनेक्ट प्लान भी बनाया.राजस्थान विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता गुलाबचंद्र कटारिया को हटाकर उनकी जगह राजपूत समुदाय के राजेंद्र सिंह राठौर को प्रतिपक्ष का नेता बनाया गया.महारानी दीया सिंह को हर मोर्चे पर फ्रंट पर रखने का संदेश दिया जा रहा है. यह भी कहा जा रहा है कि अगर प्रदेश में बीजेपी की सरकार बनती है तो महारानी दीया सिंह मुख्यमंत्री भी बन सकती हैं. इस तरह राजपूत समुदाय को पार्टी यह संदेश दे रही है कि पार्टी के लिए वो कितना महत्वपूर्ण हैं.
चुनाव से ऐन पहले राजपूतों में बीजेपी को लेकर नाराजगी का कारण
प्रदेश के तीन बार सीएम रह चुके जिस भैरोसिंह शेखावत की जन्मशती मनाने के नाम पर प्रदेश भर में राजपूतों को फिर से पार्टी से जोड़ने का प्रयास चल रहा था कि अचानक खबर आती है कि उनके दामाद नरपत सिंह राजवी का ही टिकट कट गया है. नरपत सिंह को सिर्फ भैरो सिंह शेखावत से जोड़ना भी उनके राजनीतिक कैरियर के साथ अन्याय ही होगा. नरपत कुल 5 बार विधायक रहे हैं और प्रदेश में आरएएस-बीजेपी की जड़ जमाने वाले शिल्पकार भी रहे हैं. अचानक उनका टिकट कैसे कट गया यह समझ में नहीं आया.हो सकता है कि वसुंधरा राजे से उसकी नजदीकियां उनके टिकट कटने का कारण बन गईं हों.
राजवी की सीट से जयपुर की महारानी दीया कुमार को लड़ाया जा रहा है. दीया कुमारी को विद्याधर नगर जैसी सेफ सीट क्यों दी गई यह तो पार्टी ही बता सकती है. पर टिकट कटने पर नरपत सिंह ने अपनी नाराजगी खुलकर जाहिर की है. विद्याधर नगर से दीया कुमारी को टिकट दिए जाने पर राजवी ने कहा कि पता नहीं मुगलों के आगे घुटने टेकने वाले और महाराणा प्रताप के खिलाफ लड़ने वाले परिवार पर पार्टी क्यों मेहरबान है?
राजवी दीया कुमारी की राजनीतिक योग्यता को लेकर भी सवाल उठाते हैं. कहते हैं कि उनकी कार्यकर्ताओं से न तो पहचान है और न संवाद. उन्हें उतारकर पार्टी क्या हासिल करना चाहती है. राजवी ने दैनिक भास्कर को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि आने वाली 23 अक्टूबर को भैरोंसिंह शेखावत की जयंती पर पार्टी नेता किस मुंह से उनको श्रद्धाजंलि देंगे?
वसुंधरा को पार्टी में किनारे लगाने से राजपूत नाराज तो नहीं हैं पर अगर चुनाव के अंत तक वसुंधरा को पार्टी संभाल नहीं पाती है तो यह तय है कि वसुंधरा राजपूतों को नाराज कर सकतीं हैं. महारानी दीया कुमार और वसुंधरा राजे में बहुत बड़ा अंतर है. वसुंधरा बीजेपी की बहुत पुरानी कार्यकर्ता रही हैं. बीजेपी और राजस्थान की रग-रग से परिचित हैं. उन्होंने पार्टी को राजस्थान में खड़ा करने के लिए खून-पसीना बहाया है.और सबसे बड़ी बात खुद को क्षत्रिय की बेटी भी कहती रही हैं.