पिछले कुछ घंटे में कुश्ती का घटनाक्रम तेजी से आगे बढ़ा है. खेल मंत्री सक्रिय हो गए हैं. देर रात तक बैठकें चल रही हैं. जांच के लिए कमेटी बना दी गई है. पहलवान जंतर मंतर पर फिर पहुंच गए हैं. कुश्ती फेडरेशन के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह ने दो टूक कह दिया है कि वो इस्तीफा नहीं देंगे. पहलवान इस्तीफे से कम किसी और बात पर तैयार नहीं हैं. इस पूरे घटनाक्रम के बीच सबसे बड़ा सवाल ये है कि आखिर बृजभूषण शरण सिंह झुकने को तैयार क्यों नहीं हैं? ये मामला सिर्फ कुश्ती फेडरेशन का नहीं है बल्कि उनके राजनीतिक करियर का भी है.6 बार के सांसद रहे बृजभूषण शरण सिंह अच्छी तरह से जानते हैं कि सैक्सुअल हैरेसमेंट के आरोप का उनके राजनीतिक करियर पर कितना बुरा असर पड़ सकता है.
बावजूद इसके वो अड़े हुए हैं. इस्तीफा देने को तैयार नहीं हैं. आखिर कौन सी बातें हैं जिसके दम पर उन्होंने अपना झंडा बुलंद किया हुआ है? आखिर कौन सी बातें हैं जो उन्हें देश के स्टार पहलवानों को सीधे कटघरे में खड़े करने की ताकत दे रही हैं. ये पूरा मामला उनकी अकड़ का है या वाकई उनके पास वो तर्क हैं जो उन्हें बेकसूर साबित करते हैं. ऐसे में ये चार सवाल बहुत जरूरी हो गए हैं.
पहला सवाल- क्या खेल मंत्रालय के हाथ बंधे हुए हैं?
दरअसल, कुश्ती फेडरेशन में जरूरत से ज्यादा हस्तक्षेप सरकार नहीं कर सकती है. कुश्ती की इंटरनेशनल फेडरेशन इस पर आपत्ति कर सकती है. क्योंकि ओलंपिक चार्टर कहता है कि खेल संगठन में सरकारी हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए. बृजभूषण शरण सिंह को 72 घंटे का समय दिया गया है. इस 72 घंटे में अगर उन्होंने अपने किए गए दावों को साबित करने के लिए सबूत इकट्ठा कर लिए तो उन पर इस्तीफे का दबाव बनाना मुश्किल होगा. वो खुद से ये पद छोड़ दें तो बात अलग है. लेकिन फिलहाल बृजभूषण शरण सिंह के तेवरों से उसकी गुंजाइश दिख नहीं रही है. सरकारी स्तर पर यही किया जा सकता है कि खेल मंत्रालय कुश्ती फेडरेशन को दी जाने वाली आर्थिक सहायता को रोक सकती है. लेकिन ये सारे मामले ‘सेकेंडरी’ हैं.
दूसरा सवाल – क्या इसे विरोधी पार्टी की साजिश साबित कर पाएंगे बृजभूषण शरण सिंह?
बृजभूषण शरण सिंह ने पूरे मामले के पीछे दीपेंद्र हुड्डा का हाथ बताया है. दीपेंद्र हुड्डा कांग्रेस से हैं. वो राज्य की कुश्ती फेडरेशन से जुड़े रहे हैं. इसके अलावा 2011 के आस-पास जब बृजभूषण शरण सिंह पहली बार कुश्ती फेडरेशन में अध्यक्ष बनकर आए थे तो उन्होंने हुड्डा के खेमे को ही मात दी थी. स्पोर्ट्स फेडरेशन कोड के हिसाब से बृजभूषण शरण सिंह का 12 साल का कार्यकाल भी करीब खत्म होने वाला है. इसके बाद नया अध्यक्ष चुना जाएगा. बृजभूषण शरण सिंह इसीलिए इस विवाद की टाइमिंग पर सवाल उठा रहे हैं. उनका भाव यही है कि मुंह खोलूंगा तो सुनामी आ जाएगी. अगर ये बात वो अपनी पार्टी में साबित कर पाए तो ये उनके पक्ष में जाएगा.
तीसरा सवाल- क्या खिलाड़ी अपनी मनमानी चलाना चाहते हैं?
बृजभूषण शरण सिंह बार बार ये बात दोहरा रहे हैं कि खिलाड़ी मनमानी करना चाहते हैं. वो नेशनल प्रतियोगिताओं में नहीं खेलना चाहते हैं लेकिन बड़े इंटरनेशनल टूर्नामेंट में उतरने को तैयार रहते हैं. इसका सीधा असर नए खिलाड़ियों के मनोबल पर पड़ता है. इसके अलावा ओलंपिक कोटे को लेकर भी वो तर्क रख रहे हैं. उनका कहना है कि ओलंपिक कोटा देश का होता है खिलाड़ी का नहीं. अगर जिस खिलाड़ी ने ओलंपिक कोटा जीता है, उसकी फॉर्म या फिटनेस में गिरावट आती है तो फेडरेशन के पास दूसरे दावेदार को भेजने का अधिकार है. ये नियम दूसरी कई फेडरेशन में भी लागू है. ओलंपिक कोटा जीतने वाले खिलाड़ी को प्राथमिकता जरूर दी जाती है लेकिन फॉर्म-फिटनेस जरूरी है. ओलंपिक कोटा का आशय समझ लीजिए. किसी भी ओलंपिक से पहले कई अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताएं ऐसी होती हैं जिसमें जीत हासिल करके आप ओलंपिक में हिस्सेदारी सुनिश्चित कर लेते हैं.
चौथा सवाल- स्पॉन्सर्स की दखलंदाजी का पक्ष किसके पक्ष में जाएगा?
भारतीय पहलवानों के साथ दो कंपनियां बतौर मुख्य प्रायोजक हैं. बृजभूषण शरण सिंह की शिकायत है कि ये कंपनियां चाहती हैं कि पहलवान पर पहला अधिकार उनका हो जाए. वो उन्हें अपने इशारे पर चलाना चाहते हैं. लेकिन बृजभूषण शरण सिंह चाहते हैं कि स्पॉन्सर्स के साथ डील में फेडरेशन का भी हस्तक्षेप रहे. ये भी एक बड़ा मामला है. बृजभूषण शरण सिंह अगर ये बात साबित कर लेते हैं तो ये भी उनके पक्ष में जाएगा. आपको याद दिला दें कि ओलंपिक में विनेश फोगाट की ड्रेस पर काफी विवाद हुआ था. उनके खिलाफ ऐक्शन भी हुआ था जो बाद में वापस ले लिया गया था.